रायबरेली: फिर मिलेगा वनवास या पूरी होगी उम्मीदवारी की आस

रायबरेली। सांसद सोनिया गांधी द्वारा सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में उम्मीदवारी को लेकर हो रही देरी के चलते कयासबाजी तेज होती जा रही है। लोगों में चर्चा है कि गांधी परिवार एक बार फिर वनवास देगा या उम्मीदवारी की आस को पूरा करेगा। सभी की नजरें गांधी परिवार के निर्णय पर लगी हैं।

आपातकाल हटने के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली समेत दो जगह से चुनाव लड़ा। दोनों ही जगह पर उन्होंने जीत दर्ज की लेकिन रायबरेली से इस्तीफा दे दिया। उनके इसी के बाद उपचुनाव में परिवार के ही अरुण नेहरू चुनाव जीते लेकिन 24 साल तक गांधी परिवार का कोई भी उत्तराधिकारी रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ा।

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सांसद सोनिया गांधी ने 8 साल तक सक्रिय राजनीति में प्रवेश नहीं किया। 1999 में उन्होंने पहले चुनाव अमेठी से लड़ा और जीता। 2004 में उन्होंने रायबरेली को अपना चुनाव क्षेत्र बनाया। 24 साल बाद रायबरेली का बनवास टूटा और गांधी परिवार के उत्तराधिकारी के रूप में इंदिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी ने यहां से जीत का परचम फहराया।

दो दशक तक इस क्षेत्र की नुमाइंजिदंगी करने के बाद उन्होंने अपरिहार्य कारणों से चुनावी राजनीति को अलविदा कह दिया। उनके चुनाव का प्रबंध संभालने वाली कांग्रेस महासचिव और पुत्री प्रियंका गांधी के उनकी जगह चुनाव लड़ने की चर्चाएं शुरू से चल रही है लेकिन अधिसूचना जारी होने के बाद भी उम्मीदवारी की घोषणा न होने से तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।

कांग्रेस कार्यकर्ता और आम मतदाता चाहते हैं कि सोनिया गांधी रायबरेली से प्रियंका गांधी को ही चुनाव लड़ाएं लेकिन आधिकारिक निर्णय सामने न आने से हताशा बढ़ने लगी है। अब यह चर्चा भी तेज होती जा रही है कि रायबरेली को क्या फिर बनवास मिलेगा या प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी की आस गांधी परिवार पूरी करेगा। रायबरेली में 3 मई तक ही नामांकन होने हैं कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भरोसा है कि जल्द ही प्रियंका की उम्मीदवारी की घोषणा हो जाएगी।

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