अब भी चेतें, तभी बचा सकेंगे राज्य की अमूल्य वन संपदा 

उत्तराखंड अपनी अनूठी प्राकृतिक संपदा के लिये प्रसिद्ध है। यही कारण है कि देश-विदेश के लोग यहां खिंचे चले आते हैं, किंतु पिछले कुछ समय से उत्तराखंड की यही प्राकृतिक छटा गंभीर खतरों का सामना कर रही है। अनेक प्राकृतिक तथा मानवकृत आपदाओं के कारण जनजीवन और पारिस्थितिकी संकट में है। इन आपदाओं में वनाग्नि या फारेस्ट फायर एक ऐसी समस्या है, जो पिछले कुछ समय से लगातार अपना प्रभाव दिखा रही है। राज्यभर में इसकी तीव्रता इतनी अधिक होती है कि फायर सीजन में राज्य की लगभग पूरी मशीनरी इसको नियंत्रित करने में जुट जाती है।

एक अनुमान के मुताबिक आग लगने की घटनाओं में लगभग 63 फीसदी मानवकृत होती हैं, जबकि शेष 37 प्रतिशत ही प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न होती हैं। जो तथ्य इन दोनों में समान है, वह यह कि दोनों के परिणाम के रूप में भीषण आपदा अस्तित्व में आती है। वनों में आग लगने की घटनाएं पूरे विश्व भर में ही चिंता का कारण बनी हुई हैं। पिछले वर्षों में कैलिफोर्निया, अमेजन तथा आस्ट्रेलिया की घटनाएं इसके कुछ चर्चित उदाहरण हैं। इस समय प्रदेश सरकार जहां एक ओर पर्यटकों का लुभाने के लिए चारधाम यात्रा की तैयारियों में जुटी है, वहीं दूसरी ओर एक बार फिर से लगभग पूरे प्रदेशभर में आग लगने की खबरें आने लगी हैं। स्थिति इतनी गंभीर है कि नैनीताल के भवाली रेंज में आग बुझाने के लिये सेना हेलिकॉप्टर की सहायता लेनी पड़ी।

 वर्ष 2024 अप्रैल तक ही आग लगने की कुल 600 से अधिक घटनायें दर्ज की गई हैं, जिसमें 800 हेक्टेयर से अधिक बहुमूल्य वन संपदा खाक हो चुकी है। आग लगने की 60 प्रतिशत से अधिक कुंमाऊं में दर्ज की गईं। उत्तराखंड में कुल भूभाग का 71.5 प्रतिशत वनाच्छादित है, जिससे पता चलता है कि यहां जैव विविधता की दृष्टि से काफी समृद्धि है तथा राज्य की अर्थव्यवस्था भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वनों पर ही निर्भर है। अतः वनों में होने वाले किसी भी बदलाव का सीधा असर पारिस्थितिकी, पर्यावरण, आर्थिकी तथा इससे भी बढ़कार आम जनजीवन पर पड़ता है। गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2016 तथा 2021 में भी वनाग्नि के बेहद चिंताजनक रिकॉर्ड दर्ज किए गए।

उत्तराखंड में आग लगने की घटनाओं की निरंतरता के कारण सामान्यतया 15 फरवरी से मई के अंत तक फायर सीजन माना जाता है। इस दौरान वातावरण में शुष्कता तथा कम बारिश के कारण वनों में आग लगने की घटनाओं में एकाएक वृद्धि होती है।

2021 में किए गए एक शोध में यह तथ्य सामने आया कि इन महीनों में वातावरण में ओजोन, सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे घातक तत्वों की मात्रा एकाएक बढ़ गई, जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इस प्रकार वनों में साल के तीन से चार महीने लगातार लगने वाली आग से संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र ही नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। इसके दूरगामी परिणाम अधिक चिंतनीय हैं। उत्तराखंड इसके बाद शुरू होने वाली वर्षा ऋतु में लगातार भूस्खलनों से भी खबरों में बना रहता है। इसका भी परोक्ष रूप से कारण वनाग्नि है।

अतः वनाग्नि रोकने के त्वरित किन्तु दूरगामी समाधान खोजने की आवश्यकता है। इसके लिये बनाई जा रही रणनीतियों को दो भागों में विभाजित करने की आवश्यकता है – आपदा से पूर्व तथा आपदा के दौरान एवं पश्चात। आपदा से पहले पिछले आंकड़ों के आधार पर अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित किया जाना चाहिए, ताकि उनकी मैपिंग हो सके। सबसे जरूरी कदम के रूप में ग्रामीण स्तर पर लोगों को संसाधन तथा शक्ति संपन्न बनाने की आवश्यकता है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें