कन्नौज लोकसभा सीट से जीते तीन सांसदों ने तय किया मुख्यमंत्री तक का सफ़र

— सपा सुप्रीमो के कन्नौज से चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट से कन्नौज सीट है सुर्खियो में


मनीष दीक्षित
कन्नौज। भले ही अभी ओपचारिक रूप से देश में चुनावी बिगुल फूंकने में भले ही अभी कुछ समय हो परंतु राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियों को धार देना शुरू कर दिया है।उसी के तहत पार्टियों से गठबंधन का दौर भी शुरू हो गया है।जिसके तहत काग्रेस का सपा से हुए गठबंधन में सपा ने काग्रेस को प्रदेश में 17 सीट देने का निर्णय लिया जिसे काग्रेस ने सहर्ष स्वीकारा भी है। इसी तरह सत्ताधारी दल को जहां मोदी के नाम के साथ लाभार्थियों की लम्बी चौड़ी लिस्ट को भी प्रदेश की। 80 में से सभी 80 सीटो पर भाजपा नेताओं द्वारा जीत का दावा किया जा रहा है।छोटे दल भी समय की नजाकत के हिसाब से मौके पर चौका लगाने की जुगाड में बैठे हैं।असली बात तो यह है कि देश में आम चुनाव होने बाला हो और देश की जनता की निगाह कन्नौज लोकसभा सीट पर न हो यह तो हो ही नहीं सकता।क्यों की इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जव से कन्नौज की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया है तब से कन्नौज की सीट सुर्खियो में है।इसके अलावा उत्तर प्रदेश ने सर्वाधिक देश को प्रधानमंत्री दिए वैसे ही कन्नौज लोकसभा से जीते तीन सांसदों ने मुख्यमंत्री पद तक का सफर तय किया है। 

कन्नौज से सांसद रहने वाले 3 कद्दावर नेताओं में 1994 में सांसद बनी शीला दीक्षित 3 बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी। 1999 में कन्नौज से सांसद रहे पूर्व सपा प्रमुख गोलोकवासी मुलायम सिंह के अलावा 2009 में कन्नौज लोकसभा सीट से सांसद रहे अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। कन्नौज इत्र नगरी होने के साथ-साथ राजा जयचंद्र के समय में भी उत्तर भारत की राजधानी रहा है और 2014 में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी यहां कमल नहीं खिला सकी थी।इस कारण 2019 के चुनाव में भी सभी की निगाह कन्नौज लोकसभा सीट पर रही और समाजवादी पार्टी ने डिंपल यादव को यहां से उम्मीदवार बनाया है। तो भाजपा ने सुब्रत पाठक पर दाव खेला और परिणाम स्वरूप कन्नौज से सुब्रत पाठक ने डिम्पल को शिकस्त दे कमल खिलाया।इसके बाद से कन्नौज जो की सपा गढ़ माना जाता था वह भगवा रंग में रंग गया।और लगातार कन्नौज भाजपा का गढ़ रूपी मजबूत किले में तब्दील हो गया है।अब आगामी लोकसभा चुनाव में देखने बाली बात यह होगी कि यदि सपा मुखिया यहां से सुब्रत के खिलाफ प्रत्याशी होते है तो भाजपा अपनी सीट को कैसे बचाती है। क्यों कि यह दोनों दलों के लिए नाक का सवाल होगा।
 

— कन्नौज लोकसभा सीट का सियासी सफर

आजादी के बाद हुए पहले चुनाव 1952 में कांग्रेस के शंभू नाथ मिश्रा ने जीत दर्ज की। 1957 में शंभू नाथ मिश्रा ने दोबारा जीत दर्ज की। 1962 में मूल चंद्र दुबे, 1983 में शंभू नाथ मिश्रा एक बार फिर सांसद बने। 15 वर्षों तक कांग्रेस का परचम लहराता रहा, जिस पर समाजवादी विचारधारा के जनक डॉ राममनोहर लोहिया ने विराम लगाया और 1967 के चुनाव में कांग्रेस के शंभू नाथ मिश्रा को करारी शिकस्त देकर सांसद बने। 1971 में कांग्रेसी सत्यनारायण मिश्रा विजयी रहे। 1970 में जनता पार्टी से राम प्रकाश त्रिपाठी तो 1980 में छोटे सिंह यादव,1984 में कांग्रेस से एक बार फिर शीला दीक्षित सांसद बनीं। 1996 के चुनाव में बीजेपी से चंद्र भूषण सिंह ने पहली बार कमल खिलाकर भगवा ध्वज फहराया।

— छह लोकसभा चुनाव से सपा का कब्जा,जिसे सुब्रत पाठक ने किया ध्वस्त

1998 के चुनाव में सपा के प्रदीप यादव ने भाजपा से यह सीट छीन ली और उसके बाद लगातार 6 चुनाव से यह सीट सपा के पास है। 1999 में पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव जीते, लेकिन बाद में इस्तीफा देकर सन 2000 में हुए उपचुनाव में सांसद बने अखिलेश यादव ने सन 2004 व 2009 में लगातार जीत दर्ज कर पहली बार हैट्रिक लगा इतिहास रचा। परंतु 2012 में यूपी के सीएम बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा देकर डिंपल को निर्विरोध चुन कर लोकसभा पहुंचाया। 2014 में सपा से डिंपल यादव फिर जीतीं। 2014 में सपा की डिम्पल को 4,89164 वोट मिले। वहीं भाजपा के सुब्रत पाठक को 4,69257 वोट मिले।कांटे की टक्कर के बावजूद 19,907 वोट से डिंपल ने सपा का परचम फहराया।परंतु वर्ष 2019 में सुब्रत ने 12 हजार 353 मतों से डिम्पल यादव को शिकस्त दे सपा के गढ़ को ध्वस्त किया।
 

— तीन जिलों की 5 विधानसभा की सीटों से मिलाकर बनी है कन्नौज लोकसभा सीट

कन्नौज संसदीय सीट 3 जिलों की 5 विधानसभा सीटों से मिलाकर बनी है। इसमें कन्नौज जिले की विधानसभा सीट सदर कन्नौज, तिर्वा व छिबरामऊ शामिल हैं। इसके अलावा कानपुर देहात की रसूलाबाद,औरैया जिले की बिधूना विधानसभा सीट कन्नौज लोकसभा सीट में आती है।
 

— 10 दिनों में तीन ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने से भाजपा सांसद सुब्रत पाठक हैं चर्चा में

भाजपा के कन्नौज लोकसभा के सांसद सुब्रत पाठक वैसे तो अच्छे वक्ता के रूप में तो जाने ही जाते हैं।परंतु उनका अपने सांसदी के अब तक के कार्यकाल में विवादो से भी नाता रहने के कारण मीडिया की सुर्खियां बने और विपक्ष के निशाने पर रहे।परंतु अभी फिलहाल 10 दिनों से एक के बाद एक लगातार तीन ऑडियो वायरल होने से मीडिया के साथ आम जनमानस में भी चर्चा का विषय बने हुए हैं। तीनों ऑडियो जो सोसल मीडिया पर वायरल है उसकी दैनिक भास्कर पुष्टि नहीं करता है। कि यह आवाज किसकी है।

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