
हिंदू धर्म में स्त्रियों के सौंदर्य और सौभाग्य से जुड़े सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है। इन श्रृंगारों में चांदी की पायल का भी खास स्थान होता है, जिसे विवाहित महिलाएं पारंपरिक रूप से पैरों में धारण करती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस परंपरा के पीछे शास्त्रों में क्या गहरा अर्थ छिपा है? आइए जानते हैं चांदी की पायल पहनने के धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण।
चांदी: चंद्रमा, शीतलता और समृद्धि का प्रतीक
शास्त्रों में चांदी को चंद्रमा, शीतलता और शुद्धता का प्रतीक माना गया है। चांदी की पायल पहनने से शरीर में ठंडक बनी रहती है, जिससे मन शांत और एकाग्र रहता है। यह न केवल मानसिक तनाव को दूर करती है, बल्कि शारीरिक ऊर्जा संतुलित करने में भी मदद करती है।
घुंघरू की मधुर ध्वनि: नकारात्मकता को दूर भगाए
पायल में लगे घुंघरुओं की मधुर आवाज घर के वातावरण को सकारात्मक बनाती है। ऐसी मान्यता है कि जब महिलाएं घर में चलती हैं और पायल की आवाज गूंजती है, तो यह नकारात्मक ऊर्जा को हटाकर सकारात्मकता का संचार करती है। इससे परिवार में सुख, शांति और आनंद का माहौल बना रहता है।
धन और सौभाग्य का प्रवेश
चांदी की पायल को घर में धन और समृद्धि लाने वाला माना जाता है। यह सौभाग्य की निशानी है और विवाहित महिलाओं द्वारा इसे धारण करना ससुराल में पैसों की बरकत और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे परिवार में आर्थिक संकट नहीं आता।
पायल: स्त्री के आगमन की पावन सूचना
परंपरागत रूप से जब स्त्रियां पायल पहनकर चलती हैं, तो उससे घरवालों को यह पता चलता है कि वह आसपास हैं। यह आवाज परिवारजनों को मानसिक रूप से सुखद अनुभूति कराती है और घर के बुजुर्गों को भी संतोष और सम्मान का अनुभव होता है।
सोलह श्रृंगार का अभिन्न हिस्सा
चांदी की पायल को विवाहित स्त्रियों के सोलह श्रृंगार में से एक माना गया है। इसे पहनना सौभाग्य, प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है। यह नारी के विवाहित जीवन की सम्पन्नता और पूर्णता का सूचक है।
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