
आज सम्पूर्ण भारत में वट सावित्री व्रत श्रद्धा, भक्ति और नारी शक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जा रहा है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और परिवार की समृद्धि के लिए किया जाता है। महिलाएं इस दिन वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं, वट सावित्री व्रत कथा का श्रवण और पाठ करती हैं, और अपने पति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
वट सावित्री व्रत का महत्व
वट वृक्ष को हिंदू धर्म में अमरता, दीर्घायु और स्थायित्व का प्रतीक माना गया है। इसकी छाया में बैठकर साधना और तप करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। वट सावित्री व्रत के मूल में जो कथा है, वह केवल पौराणिक नहीं, बल्कि भारतीय नारी की शक्ति, तप, भक्ति और बुद्धिमत्ता का आदर्श उदाहरण है।
वट सावित्री व्रत कथा – अमर प्रेम और अडिग संकल्प की कहानी
बहुत समय पहले मद्र देश के राजा अश्वपति और रानी मालवती ने संतान प्राप्ति के लिए देवी सावित्री की उपासना की। उनके आशीर्वाद से एक अत्यंत सुंदर और गुणवान कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सावित्री रखा गया।
जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तो राजा ने उससे कहा कि वह अपने वर का स्वयं चयन करे। एक दिन जब महर्षि नारद और राजा अश्वपति वार्तालाप कर रहे थे, तभी सावित्री लौटकर आई और बताया कि उसने सत्यवान नामक युवक को अपना जीवनसाथी चुना है, जो राजा द्युमत्सेन का पुत्र है और वर्तमान में अपने अंधे माता-पिता के साथ वन में निवास कर रहा है।
महर्षि नारद ने बताया कि सत्यवान धर्मात्मा तो है, लेकिन वह अल्पायु है, और एक वर्ष के भीतर उसकी मृत्यु निश्चित है। राजा ने सावित्री को दूसरा वर चुनने को कहा, लेकिन सावित्री ने दृढ़ निश्चय के साथ कहा — “एक बार मन, वचन और कर्म से जिसे पति मान लिया जाए, वह जीवन भर पति होता है।”
सावित्री की तपस्या और धर्म का पालन
राजा ने सावित्री का विवाह सत्यवान से करवा दिया। वह अपने सास-ससुर की सेवा में लग गई। धीरे-धीरे एक वर्ष बीता और वह दिन आ गया जब सत्यवान की मृत्यु होनी थी। सावित्री ने तीन दिन पूर्व ही उपवास शुरू कर दिया और यम, पितरों और देवी-देवताओं की पूजा करने लगी।
जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होनी थी, उस दिन वह उसके साथ वन गई। वहां सत्यवान को अचानक सिरदर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। तभी यमराज आए और सत्यवान की आत्मा को लेने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी।
जब सावित्री ने यमराज को भी विवश कर दिया
यमराज ने उसे कई बार रोका, पर सावित्री ने कहा — “जहां पति जाए, वहां पत्नी का जाना धर्म है। उसकी सेवा करना पत्नी का कर्तव्य है।” यमराज उसकी भक्ति और ज्ञान से प्रभावित हो गए और उसे वरदान देने लगे।
सावित्री ने क्रमशः तीन वरदान मांगे:
- उसके सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्राप्त हो।
- उसके पिता को संतान का वंश मिले।
- वह सौ पुत्रों की मां बने।
यमराज ने तीनों वरदान स्वीकार कर लिए, लेकिन जब सावित्री ने कहा कि “बिना पति के मैं सौ पुत्रों की मां कैसे बन सकती हूं?” तब यमराज को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ा।
सत्यवान को मिला जीवनदान
यमराज ने सावित्री की निष्ठा, साहस और विवेक से प्रसन्न होकर सत्यवान के प्राण उसे लौटा दिए। इस प्रकार सावित्री ने अपने प्रेम, तप और धर्म से मृत्यु को भी पराजित कर दिया। उसके सास-ससुर की दृष्टि लौट आई और वह स्वयं सौ पुत्रों की मां बनी।
व्रत पूजा की विधि
- प्रातः काल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- वट वृक्ष की पूजा करें — जल चढ़ाएं, रोली, चावल, फूल, मिठाई, कच्चा सूत अर्पित करें।
- वट वृक्ष की सात या 21 बार परिक्रमा करें, और सूत लपेटें।
- व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। “सत्यवान-सावित्री की जय” का जयकारा लगाएं।
- व्रत का समापन शाम को पति के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेकर करें।
वट सावित्री व्रत का संदेश
यह व्रत न केवल पति-पत्नी के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है, बल्कि यह नारी की आत्मबल, धर्मनिष्ठा और बुद्धिमत्ता की शक्ति को भी दर्शाता है। सावित्री की तरह हर नारी में यह शक्ति निहित है, जो प्रेम, त्याग और तप से किसी भी असंभव को संभव कर सकती है।
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