क्या साथ आएंगे राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे? हिंदी पर महाराष्ट्र सरकार के फैसले के बाद जानें रुख

महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों मराठी भाषा और अस्मिता को लेकर जोरदार हलचल मची हुई है। हिंदी भाषा को स्कूलों में अनिवार्य बनाने की नीति के खिलाफ विरोध के बीच देवेंद्र फडणवीस सरकार ने ‘त्रिभाषा नीति’ पर जारी सरकारी आदेश (जीआर) को रद्द कर दिया है। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस फैसले के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की राहें एक बार फिर मिल सकती हैं?

क्या था विवाद?

फडणवीस सरकार ने राज्य के स्कूलों में पहली कक्षा से हिंदी भाषा को अनिवार्य करने का प्रस्ताव जारी किया था। इस पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने सख्त विरोध जताया। दोनों दलों ने 5 जुलाई को एक बड़ी संयुक्त रैली का ऐलान किया था, जिसमें कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट) और कई अन्य मराठी संगठनों ने भी समर्थन दिया।

अब रैली का क्या होगा?

सरकार द्वारा निर्णय वापस लेने के बाद उद्धव ठाकरे ने ऐलान किया है कि

“5 जुलाई को रैली जरूर होगी, लेकिन अब यह ‘विजय रैली’ होगी।”

ठाकरे ने कहा कि मराठी जनता की एकजुटता ने सरकार को झुकने पर मजबूर किया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे हिंदी के विरोधी नहीं, बल्कि उसके जबरन थोपे जाने के खिलाफ हैं।

उद्धव का संदेश – यह जागरूकता बनी रहनी चाहिए

अपने बयान में उद्धव ठाकरे ने कहा:

“हमारे बीच यह सवाल उठना चाहिए कि मराठी मानुष सिर्फ संकट के समय ही क्यों एकजुट होते हैं? हमें हमेशा एकजुट रहना चाहिए।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि मराठी लोगों ने इस बार बेहद परिपक्वता के साथ भाषा के सवाल पर सरकार को चुनौती दी है।

राज ठाकरे ने क्या कहा?

उधर, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:

“मराठी लोगों को अपनी भाषा के लिए एकसाथ आते देखना गर्व की बात है।”

हालांकि राज ठाकरे ने 5 जुलाई की रैली में अपने दल की भागीदारी को लेकर फिलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं की है, लेकिन उनके बयान से यह साफ है कि वे मराठी अस्मिता के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे के सुर में सुर मिला रहे हैं।

सुलह की पृष्ठभूमि तैयार?

राज और उद्धव ठाकरे की एकजुटता की यह झलक एक बड़े राजनीतिक बदलाव की ओर संकेत दे रही है। लंबे समय से रिश्तों में तल्खी के बावजूद दोनों नेताओं का एक ही मुद्दे पर साथ आना, और एक ही रैली में भागीदारी की संभावना, महाराष्ट्र की राजनीति में मराठी अस्मिता को नया केंद्रबिंदु बना सकता है।

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