क्या एक बार फिर एकजुट होगा मुलायम का कुनबा, इसलिए जरूरी है चाचा-भतीजे का साथ

लखनऊ. मुलायम कुनबे में एक बार फिर एकता की सुगबुगाहट है। चर्चा आम है कि पुराने गिले-शिकवे भुलाकर चाचा-भतीजे फिर साथ आने को तैयार हैं। ऐसी खबरें यूं ही नहीं हवा में तैर रहीं, इसकी वजह हालिया राजनीतिक घटनाक्रम है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की सहमति के बाद पार्टी ने यूपी विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर जसवंतनगर से विधायक शिवपाल सिंह यादव की सदस्यता खत्म करने की याचिका वापस ले ली है।

बीते दिनों समाजवादी पार्टी ने जसवंतनगर से सपा विधायक शिवपाल यादव की विधानसभा सदस्यता खत्म करने के लिए याचिका दायर की थी। पार्टी का कहना था कि दलबदल विरोधी कानून के तहत शिवपाल की विधानसभा सदस्यता खत्म की जाये, क्योंकि उन्होंने सपा से अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया नाम से नया दल बना लिया है। हालांकि, अब सपा के नये कदम से शिवपाल यादव की घर वापसी के कयास लगाए जा रहे हैं।

नाम न छापने की शर्त पर एक न्यूज वेबसाइट से यूपी विधानसभा के बड़े अधिकारी ने बताया कि जसवंतनगर से विधायक शिवपाल सिंह यादव की याचिका वापस करने के संबंध में नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी का एक पत्र मिला है। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बाद लॉकडाउन के चलते फिलहाल सचिवालय बंद चल रहा है। कार्यालय खुलने के बाद ही समाजवादी पार्टी की याचिका पर कोई निर्णय लिया जाएगा।

इटावा के सैफई में इसी मार्च महीने की 10 तारीख को होली पर मुलायम कुनबा एकजुट दिखा था। कार्यक्रम में मुलायम सिंह यादव व के अलावा शिवपाल और अखिलेश भी पहुंचे थे। साथ-साथ मंच साझा किया और ग्रुप तस्वीर भी खिंचवाई। चाचा को सामने देखते ही अखिलेश लपककर शिवपाल यादव के पैर छू लिये। उसी समय से परिवार में एकता की संभावना दिखने लगी थी। लेकिन, अब समाजवादी पार्टी द्वारा याचिका वापस लेने की अपील के बाद मुलायम कुनबे में एका की अटकलों को और बल मिल रहा है।

इसलिए जरूरी है चाचा-भतीजे का साथ

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियों में जुटी समाजवादी पार्टी के लिए चाचा-भतीजे का साथ जरूरी हो गया है। अलग-अलग रहकर दोनों का ही नुकसान हुआ है। शिवपाल से अलग होने के बाद से समाजवादी पार्टी लगातार चुनाव हार रही है, कमोबेश यही हाल शिवपाल और उनकी पार्टी का भी है। अलग दल बनाने वाले प्रसपा प्रमुख न तो किसी भी दल से गठबंधन करने में कामयाब हो पाये और न ही राजनीतिक प्रतिद्वंदिता पेश कर पाये। अलबत्ता, एकाध सीटों पर उनकी वजह से सपा प्रत्याशी जरूर चुनाव हार गया। उधर, पार्टी की बागडोर संभालने के बाद से अखिलेश यादव ने कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल से गंठबंधन करके देख लिया, लेकिन उनके सारे राजनीतिक प्रयोग विफल रहे। ऐसे में अब अखिलेश यादव के पास एक ही विकल्प है कि कार्यकर्ताओं पर मजबूत पकड़ रखने वाले चाचा शिवपाल को वह पार्टी में वापस ले लें। हालांकि, शिवपाल यादव सपा से गठबंधन के इच्छुक हैं, जबकि अखिलेश चाहते हैं वह पार्टी का विलय कर लें।

समाजवादी पार्टी के एक बड़े एक नेता का कहना है कि मुलायम के बाद शिवपाल ही हैं, जो पार्टी की जड़ों तक समाहित हैं। उनके न रहने से पार्टी को काफी नुकसान हो रहा है। अगर वह पार्टी में आ जाते हैं, तो निश्चित तौर से पार्टी को मजबूती मिलेगी। पूरे मामले पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि इस बारे में अंतिम निर्णय सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ही लेंगे।

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