भारतीय संस्कृति में क्यों है कुंभ का महत्व ? जानें कितने होते हैं ‘कुंभ’

भारतीय संस्कृति और परंपराओं में कुंभ मेले का अत्यधिक विशेष महत्व है। यह अद्वितीय मेला चार पवित्र स्थानों पर ही आयोजित किया जाता है, इसमें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक शामिल हैं। यह न केवल एक धार्मिक आयोजन है बल्कि इसमें खगोलीय घटनाओं का भी गहरा प्रभाव माना जाता है। साल 2025 में महाकुंभ 13 जनवरी से आरंभ हो रहा है और 26 फरवरी 2025 को इसका समाप्त होगा। यह कुंभ मेला पूरे 45 दिनों तक चलेगा।

धा​र्मिकविद् डॉ. ओंकारनाथ त्रिपाठी ने बताया ​कि कुंभ मेले के चार प्रकार होते हैं, कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ। इन सभी के बीच समयावधि, धार्मिक महत्व और खगोलीय कारणों के आधार पर विभिन्नताएं होती हैं। अक्सर लोगों के इनके बीच काफी दुविधा रहती है। आइए इनके बीच के अंतर और ग्रहों के गोचर से इनके संबंध के बारे में विस्तार से समझते हैं।

कुंभ मेला

कुंभ मेला हर 12 वर्ष में आयोजित होता है और इसे चारों तीर्थ स्थलों पर बारी-बारी से मनाया जाता है। इसका आयोजन तब होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह विशिष्ट खगोलीय स्थिति में होते हैं। इस अवधि में गंगा, क्षिप्रा, गोदावरी और संगम का जल विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।

अर्धकुंभ मेला

पहले अर्धकुंभ के बारे में जानते हैं, दरअसल अर्धकुंभ मेला हर 6 वर्ष के अंतराल पर आयोजित किया जाता है। यह भारत में सिर्फ दो जगहों हरिद्वार और प्रयागराज में लगता है। अर्ध का अर्थ आधा होता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ लगता है, इसलिए इसे कुंभ मेला के मध्य चरण के रूप में देखा जाता है।

पूर्णकुंभ मेला

पूर्णकुंभ 12 साल में एक बार लगता है। पूर्णकुंभ मेला केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। हालांकि पूर्णकुंभ को भी महाकुंभ कहते हैं। इस बार यानी 2025 में 12 साल बाद प्रयागराज में पूर्णकुंभ लगने वाला है। इसे धार्मिक उत्सव का उच्चतम स्तर माना जाता है।

महाकुंभ मेलामहाकुंभ की बात करें तो यह 144 साल में सिर्फ एक ही बार लगता है। इसका आयोजन केवल प्रयागराज में होता है। महाकुंभ को अत्यंत दुर्लभ और विशिष्ट धार्मिक आयोजन माना जाता है, जो 12 पूर्णकुंभ के बाद होता है। महाकुंभ को लाखों श्रद्धालुओं का महासंगम और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन माना जाता है।

महाकुंभ लगाने के लिए कैसे होता है स्थान का चयन?महाकुंभ लगने का निर्णय देवताओं के गुरु बृहस्पति और ग्रहों के राज्य सूर्य की स्थिति के हिसाब से किया जाता है। आइए जानते हैं किस स्थान पर मेला लगेगा, इसका निर्णय कैसे होता है।

हरिद्वार- जब देवगुरु बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्यदेव मेष राशि में होते हैं तब हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।

उज्जैन- जब सूर्यदेव मेष राशि में और बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में होते हैं कुंभ मेले का आयोजन उज्जैन में किया जाता है।

नासिक- जब बृह​स्पति ग्रह और सूर्य देव दोनों ही सिंह राशि में विराजमान रहते हैं तो महाकुंभ मेले का आयोजन स्थल नासिक होता है।

प्रयागराज- जब गुरु ग्रह बृहस्पति वृषभ राशि में और ग्रहों के राजा मकर राशि में होते हैं तो महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है।

डॉ ओंकारनाथ त्रिपाठी ने कहा कि कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने का अवसर भी प्रदान करता है। कुंभ में स्नान करने से पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह धार्मिक आयोजन सामाजिक और सांस्कृतिक समागम का भी प्रतीक है।

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