कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामने वाले नेताओं को क्यों नहीं मिली कोई बड़ी जिम्मेदारी, उदासी का आलम…कौन हैं ये नेता?

जयपुर । राजस्थान की राजनीति में सत्ता परिवर्तन के साथ कई दिग्गज नेता कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन तो थाम लिया, लेकिन 17 महीने बाद भी वे भाजपा में कोई खास पहचान नहीं बना पाए हैं। विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इन नेताओं के भाजपा में शामिल होने को बड़ी सियासी हलचल माना गया था, मगर अब यही नेता संगठन में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि राज्य में भजनलाल शर्मा सरकार को डेढ़ साल से अधिक हो चुका है, लेकिन कांग्रेस से आए इन नेताओं को न तो कोई संगठनात्मक जिम्मेदारी मिली है और न ही वे पार्टी के अभियानों में सक्रिय दिख रहे हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि मलाईदार पद पाने की उम्मीद में पार्टी बदलने वाले ये नेता अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। इन नेताओं में अब उदासी का आलम साफ देखा जा सकता है।

कौन हैं ये नेता?
कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी में शामिल होने वालों में कई चर्चित नाम शामिल हैं, इनमें पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा, पूर्व कैबिनेट मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय, गिर्राज सिंह मलिंगा, दर्शन सिंह गुर्जर, सुभाष मील, रमेश खींची, पूर्व कृषि मंत्री लालचंद कटारिया, पूर्व गृह राज्य मंत्री राजेंद्र यादव, रिछपाल मिर्धा, आलोक बेनीवाल, खिलाड़ी लाल बैरवा, पूर्व विधायक जेपी चंदेलिया प्रमुख हैं। इनमें से कई नेताओं को भाजपा में शामिल तो कर लिया गया, लेकिन इन्हें कोई बड़ी या ठोस जिम्मेदारी नहीं दी गई है, जिसके चलते उनकी भूमिका पार्टी में बेहद सीमित हो गई है।

क्या कहते हैं सूत्र?
सूत्रों के मुताबिक, कुछ नेता तो भाजपा कार्यालय का रुख तक नहीं कर रहे हैं, जबकि कुछ नेताओं की उपस्थिति सिर्फ दिखावटी रह गई है। वहीं, कुछ नाम ऐसे भी हैं जो लगातार प्रदेश मुख्यालय से संपर्क में हैं, लेकिन उन्हें अब तक कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी में पहले से मौजूद नेताओं का दबदबा, नए नेताओं के प्रति अविश्वास और ‘बाहरी’ नेताओं को प्राथमिकता न दिए जाने की संस्कृति ने इन नेताओं के कद को सीमित कर दिया है। साथ ही, पार्टी के भीतर के गुटों और संगठनात्मक संतुलन को साधने के चलते भी इन्हें पीछे रखा गया। अब सवाल उठता है कि क्या भाजपा इन नेताओं को भविष्य में कोई भूमिका देगी, या ये नेता एक बार फिर अपनी सियासी जमीन तलाशने को मजबूर होंगे?

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