कौन हैं IAS संजीव हंस? रेप केस से हुए बरी, 16 महीने बाद फिर से मिली पोस्टिंग

IAS Sanjeev Hans : बिहार प्रशासनिक महकमे में मंगलवार को बड़े पैमाने पर तबादलों का सिलसिला हुआ, जिसमें 10 भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों को नई जिम्मेदारियां सौंपी गईं। इन फेरबदल में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय 1997 बैच के वरिष्ठ IAS अधिकारी संजीव हंस को लेकर है, जिन्हें करीब 16 महीने बाद फिर से पोस्टिंग दी गई है। उन्हें राजस्व पर्षद विभाग का अपर सदस्य बनाया गया है, जो बिहार सरकार की अधिसूचना के अनुसार, पदस्थापना की प्रतीक्षा कर रहे थे।

संजीव हंस का नाम उस समय सुर्खियों में आया था जब उन पर गैंगरेप, आय से अधिक संपत्ति और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर आरोप लगे थे। हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने उन्हें गैंगरेप के मामले में बरी कर दिया था, लेकिन अभी भी प्रवर्तन निदेशालय (ED) इन मामलों की जांच कर रहा है।

उन पर लगे आरोपों के अनुसार, उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और काली कमाई से जुड़े सबूत भी सामने आए थे। जांच एजेंसियों ने हंस और विधायक गुलाब यादव के ठिकानों से कई दस्तावेज बरामद किए थे, जिसमें बड़े पैमाने पर लेनदेन और संपत्तियों का विवरण था। ED ने इन मामलों से जुड़े 20 से अधिक ठिकानों पर छापेमारी कर जरूरी साक्ष्य जुटाए हैं, और जांच चल रही है।

उनके करियर का विवादास्पद पहलू

संजीव हंस बिहार कैडर के वरिष्ठ IAS अधिकारी हैं। कार्यकाल के दौरान वे ऊर्जा, नगर विकास, आवास और अन्य महत्वपूर्ण विभागों में पदस्थापना कर चुके हैं। उनके कार्यकाल में कई बड़े प्रोजेक्ट्स भी जुड़े, लेकिन विवादों ने उनके करियर पर गहरा असर डाला।

गैंगरेप केस के दौरान ही उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और ब्लैक मनी से जुड़े तथ्यों के सामने आने का दावा किया गया था। पीड़िता ने आरोप लगाया कि संजीव हंस और विधायक गुलाब यादव ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया और गर्भपात कराए जाने का भी आरोप लगाया। हालांकि, अदालत से बरी होने के बाद भी अन्य मामलों में उलझे रहने के कारण उनकी स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है।

16 महीने बाद नई पोस्टिंग और विवाद

करीब 16 महीने बाद मिली इस पोस्टिंग को प्रशासनिक हलकों में अहम माना जा रहा है। सरकार का यह फैसला सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा माना जा रहा है, लेकिन राजनीतिक एवं प्रशासनिक गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि जांच के दायरे में चल रहे अधिकारी को इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी क्यों दी गई।

विपक्ष और विपक्षी दल इस फैसले को लेकर सरकार पर सवाल उठा रहे हैं, तो वहीं कुछ लोग इसे जांच एजेंसियों की कार्रवाई से जोड़कर देख रहे हैं। फिलहाल, संजीव हंस की नई भूमिका और जांच एजेंसियों की कार्रवाई- दोनों पर राजनीतिक और प्रशासनिक नजर बनी हुई है।

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