वक्फ कानून विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- 14वीं सदी की मस्जिदें कैसे होंगी रजिस्टर?

नई दिल्ली : वक्फ संशोधन कानून, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को दो घंटे तक चली अहम सुनवाई में कई बड़े सवाल उठाए गए। अब तक इस कानून के खिलाफ 100 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, लेकिन कानून के प्रभावी क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगाई गई है।

क्या है याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां?

1. वक्फ बनाने की प्रक्रिया में धर्म का दखल?

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि नए कानून में कहा गया है कि वक्फ वही बना सकता है जो कम से कम 5 वर्षों से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा हो।

“राज्य कैसे तय करेगा कि कोई मुसलमान है या नहीं?” — सिब्बल

2. सदियों पुरानी संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन कैसे?

सिब्बल बोले कि 300-400 साल पुरानी वक्फ संपत्तियों की रजिस्ट्री या डीड आज कैसे लाई जाएगी?
CJI संजीव खन्ना ने भी सवाल किया:

“14वीं और 16वीं शताब्दी की मस्जिदों के पास कौन-से दस्तावेज होंगे? उन्हें वक्फ बाय यूजर (By Use) के तौर पर मान्यता क्यों नहीं दी जा सकती?”

3. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य?

सिब्बल ने आपत्ति जताई कि अब वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम भी नियुक्त किए जा सकेंगे।

“ये अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक अधिकारों में सीधा हस्तक्षेप है।”
जस्टिस पीवी संजय कुमार ने पलटकर पूछा:
“क्या तिरुपति देवस्थानम बोर्ड में गैर-हिंदू सदस्य होते हैं?”

केंद्र सरकार की दलीलें

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा:

“वक्फ की रजिस्ट्री 1995 के पुराने कानून में भी अनिवार्य थी। ये कोई नया प्रावधान नहीं है।”

उन्होंने यह भी कहा कि हिंसा का इस्तेमाल कानून को प्रभावित करने के लिए नहीं होना चाहिए।

“ऐसा संकेत नहीं जाना चाहिए कि हिंसा से न्यायपालिका पर दबाव डाला जा सकता है।”

बात बढ़ती जा रही है…

  • 4 अप्रैल को वक्फ संशोधन बिल संसद से पारित हुआ था
  • 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली
  • 8 अप्रैल से अधिनियम लागू कर दिया गया
  • इसके बाद देशभर में प्रदर्शन और विरोध की लहर चल पड़ी

अब आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई गुरुवार, 2 बजे तय की गई है। कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि संविधान के अनुच्छेद 26, धार्मिक अधिकारों और पुरानी विरासत संपत्तियों के संरक्षण जैसे मुद्दों पर गहराई से विचार किया जाएगा।

क्या यह कानून केवल प्रशासनिक सुधार है या धार्मिक दायरे में दखल?

सवाल बड़ा है, और इसका जवाब आने वाले फैसलों में देश की धार्मिक और संवैधानिक दिशा तय कर सकता है।

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