
वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्तियों, सरकारी एवं निजी जमीनों पर कब्जा करने की नीति पर लगाम कसने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक प्रस्तावित किया है। इस विधेयक को इसी बजट सत्र में पेश किए जाने की उम्मीद है। हालाँकि, मुस्लिम संगठन से लेकर मुस्लिम नेता तक इस बिल का विरोध कर रहे हैं। दिल्ली
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने मुस्लिमों से इस बिल के विरोध में बाँह पर काली पट्टी बाँधकर नमाज पढ़ने की अपील की है। इस बिल के खिलाफ उसने दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि भाजपा के नेतृत्व वाली NDA सरकार इस बिल के जरिए मुस्लिमों की मस्जिदों और उनकी संपत्तियों को अपने नियंत्रण में ले लगी। AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी इसी तरह की बात कह चुके हैं।
हालाँकि, मुस्लिम संगठन और नेता चाहे जितने दावे कर रहे हों, सच्चाई यही है कि विभिन्न राज्यों में वक्फ बोर्डों ने हजारों एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा किया है। अगर इन कब्जों को एक तरफ हटा दें तो वो भारतीय रेलवे और भारतीय सेना के बाद देश में सबसे अधिक ‘लैंड बैंक’ रखने वाली संस्था है। इसके पास देश भर में 9 लाख एकड़ से अधिक की भूमि है और ये कुल रकबा कई देशों के क्षेत्रफल से भी अधिक है।
वक्फ बोर्ड ने सरकार सरकारी इमारतों, मकानों, ऐतिहासिक विरासतों, किलों और यहाँ तक कि हिंदुओं के मंदिरों और गाँवों पर भी अपना दावा ठोक रखा है। कर्नाटक और तमिलनाडु के कई गाँवों के किसानों को तो जगह खाली करने का नोटिस तक भेज दिया गया था। कमोबेश यही हाल देश के हर राज्यों में है। वक्फ पर अपनी इस विस्तृत सीरीज़ के अपने पुराने लेखों में हमने बताया है कि वक्फ बोर्ड किस तरह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करता है और इन बेलगाम शक्तियों को प्रदान करने कॉन्ग्रेस सरकार ने कैसी भूमिका निभाई थी?
इसके अलावा, हमने देश भर में वक्फ बोर्डों की संपत्ति के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार आदि राज्यों में उसके द्वारा विभिन्न सरकारी एवं निजी संपत्तियों पर किए जाने दावों के बारे में भी बताया था। हमने बताया था कि उत्तर प्रदेश में ताजहमल से लेकर लखनऊ के बड़ा इमामबड़ा तक और हिंदू मंदिरों से लेकर सरकारी सड़कों एवं तालाबों पर भी वक्फ ने किस तरह अपना दावा ठोक रखा है।
इसी तरह बंगाल में राजभवन से लेकर रॉयल कोलकाता गोल्फ क्लब और इडेन गार्डन्स भी कथित तौर पर वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी हैं (वक्फ बोर्ड के दावे के अनुसार) ये ऐसी संपत्तियाँ हैं, जो भारत सरकार की हैं। वक्फ बोर्ड द्वारा दावा किए जा रहे इनमें से ज्यादातर संपत्तियों पर उसका अवैध कब्जा है। अधिकांश को लेकर मामला कोर्ट में भी है।
इसके बावजूद वक्फ बोर्ड प्रतिदिन नए-नए दावे करता जा रहा है। इन बेजा दावों पर लगाम लगाने के लिए जरूरी था कि इसकी शक्तियों पर लगाम लगाई जाए और इसीलिए केंद्र सरकार ये अहम बिल लाने की तैयारी में है।
अब तक हमने आपको वक्फ बोर्ड की कुछ चौकाने वाली कारगुजारियों के बारे में बताया था, तो वहीं आज इस लेख में हम दिल्ली में वक्फ बोर्ड द्वारा की जाने वाले दावों की जानकारी देंगे। अवैध तरीके से संपत्तियों पर कब्जा करने के मामले में दिल्ली वक्फ बोर्ड भी देश के दूसरे वक्फ बोर्ड्स से अलग नहीं है।
कई सरकारी और ऐतिहासिक विरासतों पर उसका कब्जा है, जबकि कइयों पर उसने दावा ठोक रखा है। इनमें कुतुब मीनार, वहां मौजूद प्रसिद्ध लौह स्तंभ, फिरोजशाह कोटला, पुराना किला, हुमायूं का मकबरा, जहांआरा बेगम की कब्र, इल्तुतमिश का मकबरा, अग्रसेन की बावड़ी, सुंदरवाला महल, बाराखंभा, पुराना किला, लाल बंगला, जामा मस्जिद सहित आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) द्वारा संरक्षित 75 अन्य स्मारक भी शामिल हैं। ये सब भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय महत्व की इमारतें हैं।
दरअसल, वक्फ संशोधन बिल के JPC के पास जाने के बाद यह बात खुलकर सामने आई कि दिल्ली में दो अलग-अलग केंद्रीय सरकारी एजेंसियों के नियंत्रण वाली 200 से अधिक संपत्तियों को वक्फ बोर्ड ने अपनी मिल्कियत घोषित कर दिया है। जिन संपत्तियों को वक्फ घोषित किया गया है, उनमें से 108 भूमि एवं विकास कार्यालय (एलएंडडीओ) के नियंत्रण में हैं, जबकि 138 संपत्तियाँ विकास प्राधिकरण (DDA) के नियंत्रण में हैं।
शहरी मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों ने JPC पैनल को बताया था कि राजधानी को कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट करने के लिए सन 1911 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भूमि अधिग्रहण की थी। उस समय अंग्रेजों ने कुल 341 वर्ग किलोमीटर भूमि का अधिग्रहण किया था। देश आजाद हुआ तो ये संपत्तियाँ भारत सरकार के पास गईं।लेकिन इसके बाद वक्फ बोर्ड ने सन 1970 से सन 1977 के बीच 138 संपत्तियों पर दावा कर दिया।
बाद में केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2023 में वक्फ के दावे वाले 123 संपत्तियों का अधिग्रहण कर लिया। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने इन संपत्तियों के सन 1911-1914 के बीच वक्फ संपत्ति होने का दावा किया था, जबकि इन संपत्तियों का म्यूटेशन भारत सरकार के नाम पर हुआ है। संपत्तियों में मस्जिद, दरगाह और मुस्लिम कब्रिस्तान शामिल हैं।
इनमें दिल्ली के बेहद पॉश इलाके जोरबाग़ में स्थित कर्बला मैदान की हजारों करोड़ रुपए वाली 10 एकड़ ज़मीन भी शामिल है। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में कॉन्ग्रेस की सरकारों ने सरकारी संपत्तियों को मुस्लिमों को देना शुरू कर दिया। सन 1984 में भारत सरकार ने खुद वक्फ बोर्ड को कुछ संपत्तियों के हस्तांतरण का आदेश जारी किया था, लेकिन विश्व हिंदू परिषद ने इसे चुनौती दी थी, जिसके बाद अगस्त 1984 में हाईकोर्ट की खंडपीठ ने संपत्तियों के संबंध में एक स्टे ऑर्डर जारी किया था।
इतना ही नहीं साल 2023 में वक्फ बोर्ड ने दिल्ली के 6 प्राचीन मंदिरों पर अपना दावा ठोका दिया। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में दावा किया गया कि ये सभी 6 मंदिर वक्फ बोर्ड की जमीनों पर बनाए गए हैं। हालाँकि, मंदिरों के प्रशासन ने इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि ये मंदिर बेहद प्राचीन हैं, ऐसे में वक्फ का दावा हास्यास्पद है।
जिन संपत्तियों पर वक्फ ने दावा किया, उनमें दिल्ली के बीके दत्त कॉलोनी में स्थित सनातन धर्म मंदिर भी शामिल है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर की जमीन साल 1958 में भारत सरकार से खरीदी गई थी। इसके बाद साल 1961 में यहाँ पर मंदिर का शिलान्यास हुआ था।
दरअसल, 2019 में अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट में दावा किया गया कि बीके दत्त कॉलोनी में स्थित सनातन धर्म मंदिर के अलावा दिल्ली के मंगलापुरी स्थित प्राचीन शिव मंदिर और शमशान घाट भी वक्फ बोर्ड की जमीन पर बनाए गए हैं। मंगलापुरी में ही स्थित शिव शक्ति काली माता मंदिर का निर्माण भी वक्फ की जमीन पर होने का दावा किया गया।
इसी तरह दिल्ली स्थित शाही ईदगाह पार्क को भी मुस्लिमों ने वक्फ संपत्ति बताते हुए इसमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति स्थापित करने पर बवाल कर दिया था। इतना ही नहीं, उत्तर-पूर्व भारत के कद्दावर मुस्लिम नेता और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद बदरुद्दीन अजमल ने तो यहाँ तक दावा कर दिया कि दिल्ली में स्थित संसद भवन और उसके आसपास का पूरा इलाका वक्फ संपत्ति पर बना हुआ है।
उन्होंने वसंत विहार से लेकर एयरपोर्ट तक के क्षेत्र को भी वक्फ की संपत्ति बता दिया। इसी तरह वक्फ बोर्ड ने दिल्ली की चार लेन की एक सड़क को भी ये कहते हुए वक्फ संपत्ति बता दिया कि सड़क असल में वक्फ बोर्ड की जमीन है और इस पर सरकारी एजेंसियों ने अतिक्रमण किया है। DDA के दफ्तर, डीटीसी बस अड्डा यहाँ तक कि MCD के कूड़ाघर को भी वक्फ बोर्ड अपनी प्रॉपर्टी बता रहा है।
दिल्ली वक्फ बोर्ड की कारगुजारियों के ये कुछ चंद उदाहरण हैं, लेकिन ये बताते हैं कि आख़िर वक्फ बोर्ड की मनमानी पर रोक लगाने की ज़रूरत क्यों है? और इस पर क़ानून बनाया जाना क्यों जरूरी हो चुका है।