
उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल की रामलीला मंचन का इतिहास तकरीबन 165 साल पुराना माना जाता है। उत्तर प्रदेश में प्रचलित रामलीला की तरह कुमाऊं अंचल में प्रचलित रामलीला नाटक का कथानक पूरी तरह संत तुलसीदास रचित रामचरित मानस पर आधारित दिखायी देती है। देश के विविध प्रान्तों में रामलीला का मंचन नाट्य रुप में अलग-अलग तरीकों से किया जाता है। कुमाऊं अंचल की बात करें तो यहां की रामलीला में रामचरित मानस की दोहा-चौपाइयों का समावेश बहुलता के साथ हुआ है। कुमाऊं अंचल की रामलीला मुख्यतया गीत-नाट्य शैली में प्रस्तुत की जाती है। मौखिक परंपरा पर आधारित यहां की रामलीला पीढ़ी दर पीढ़ी समाज में रचती-बसती रही है।
संस्कृति के जानकार लोगों के अनुसार कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की सर्वप्रथम शुरुआत 1860 में मानी जाती है, जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्व. देवीदत्त जोशी को दिया जाता है। स्व. देवीदत्त जोशी ने पहली रामलीला अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मन्दिर में मंचित करवाई। रामलीला के जानकार लोग यह भी बताते हैं कि अल्मोड़ा से पहले 1830 में स्व. देवीदत्त जोशी ने पारसी नाटक के आधार पर उत्तर प्रदेश के बरेली अथवा मुरादाबाद में कुमाउनी तर्ज पर रामलीला आयोजित करवायी(श्री शिवचरण पाण्डे, 2011)।
बाद में अल्मोड़ा से यह रामलीला शनैः-शनैः कुमाऊं के अन्य नगरों कस्बों तक पहुंची। नैनीताल, बागेश्वर व पिथौरागढ़ में क्रमश1880, 1890 व 1902 में रामलीला नाटक का मंचन किया गया (डॉ. मथुरादत्त जोशी, 2007)। बीसवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में कुमाऊं के अलावा गढ़वाल अंचल के भी कुछ स्थानों में रामलीला का मंचन होने लगा था। पौड़ी नगर में सर्वप्रथम 1906 में स्व. पूर्णानंद त्रिपाठी,डिप्टी इन्सपैक्टर के सहयोग से रामलीला के आयोजन का उल्लेख मिलता है(श्री शिवचरण पाण्डे, 2011)। उत्तराखण्ड के सामाजिक इतिहासकार डॉ. योगेश धस्माना ने अपने रामकथा मंचन और पर्वतीय रामलीला नामक आलेख में श्री बाबुलकर के कथन और लोक प्रचलित मान्यता को आधार मानकर लिखा है कि देवप्रयाग में 1843 में रामलीला खेली गयी थी।
कुमाउनी रामलीला के संदर्भ में एक विशेष बात यह भी रही कि अल्मोड़ा नगर में 1940-41 के दौरान विख्यात नृत्य समा्रट पं0 उदयशंकर ने भी रामलीला का मंचन किया। इस रामलीला में उन्होंने छाया चित्रों के माध्यम से नवीनता लाने का प्रयास किया।
कुमाऊं में रामलीला से संबंधित कई जानकार लोगों ने रामलीला नाटक भी लिखे हैं। डॉ. पंकज उप्रेती के अनुसार सबसे पुराना रामलीला नाटक 1886 में देवीदत्त जोशी ने लिखा था, जो अब अप्राप्त है। इसके अलावा 1927 में कुंदन लाल साह, पं. रामदत्त जोशी ज्योर्तिविद,1959 में गोविन्दलाल साह ‘मैनेजर’ तथा 1927 में नंदकिशोर जोशी द्वारा भी रामलीला नाटकों की रचना की गई।
कुमाऊं अंचल में रामलीला मंचन की यह परम्परा अल्मोड़ा नगर से विकसित होकर बाद में आसपास के अनेक स्थानों में चलन में आयी। शुरुआती दौर में सतराली, पाटिया, नैनीताल, पिथौरागढ, लोहाघाट ,बागेश्वर, रानीखेत, भवाली, भीमताल, रामनगर हल्द्वानी, व काशीपुर के अलावा पहाड़ी प्रवासियों द्वारा आयोजित मुरादाबाद, बरेली, जयपुर,लखनऊ, मुंबई, दिल्ली जैसे नगरों में भी रामलीलाएं आयोजित की जाती रहीं।
कुमाऊं अंचल की रामलीला को आगे बढ़ाने में स्व. पं. रामदत्त जोशी ज्येार्तिविद, स्व.बद्रीदत्त जोशी स्व. कुन्दनलाल साह, स्व. नन्दकिशोर जोशी स्व. बांकेलाल साह, नृत्य सम्राट स्व. पं. उदयशंकर व स्व. ब्रजेन्द्रलाल साह सहित कई दिवंगत व्यक्तियों व कलाकारों का अद्वितीय योगदान रहा है। 1970 व 80 के दशक में लखनऊ आकाशवाणी के ‘उत्तरायण’ कार्यक्रम ने भी कुमाऊं अंचल की रामलीला को प्रसारित कर आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।















