उत्तराखंड: नम आंखों से मां नंदा को किया कैलाश विदा

उत्तराखंड की अधिष्ठात्री मां नंदा की कैलाश की ओर भावपूर्ण विदाई के साथ तीन दिवसीय लोक पर्व नंदा अष्टमी का समापन हो गया। सीमांत पैनखंडा क्षेत्र के साथ ज्योर्तिमठ के डाडों गांव में स्थित प्राचीन नंदा मंदिर में भी नंदा अष्टमी के मेले की धूम रही।

स्थानीय पुरोहित ऋषि प्रसाद सती ने बताया कि सोमवार से शुरू हुए नंदा अष्टमी के इस पौराणिक मेले के प्रथम दिन प्रातः बेला में गांव के बारी दार फुलारी रिंगाल की कंडियां और देवी देवताओं का आशीर्वाद प्रसाद लेकर समुद्र तल से लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित उच्च हिमालयी शिखर की तरफ ब्रह्म कमल दोहन के लिए रवाना हुए। रात भर फलाहार के सहारे रहने के बाद दूसरे दिन मंगलवार को प्रातः बेला मे स्नानादि करने के बाद बुग्याल के देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर ब्रह्म कमल को अपनी रिंगाल की कंडियों में सजाकर देर शाम को नंदा मंदिर पहुंचे। यहां पहुंचने पर ढोल दमाऊं और भ्वांकरे बजाकर व रातभर दीप जलाकर कीर्तन भजन कर रही महिलाओं ने मां नंदा के जागर और भजनों से फुलारियों का स्वागत किया।

फुलारियों के मंदिर प्रांगण में पहुंचने पर मां नंदा और अन्य देवी देवता अपने-अपने अवतारी पुरुष (पश्वे) पर अवतरित हुए और ब्रह्म कमल से भरी रिंगाल की कंडियां लेकर मंदिर प्रांगण में पहुंचे फुलारियों को आशीर्वाद दिया। इसके बाद गांव के अन्य बारीदारों और मंदिर के पुजारी द्वारा आए हुए ब्रह्म कमलों से मंदिर के गर्भ गृह मे कोठ सजाई गई और मां नंदा की पूजा अर्चना की गई। इसके बाद स्थानीय महिलाओं ने अपने-अपने दीपक उठाकर प्रसाद इत्यादि लेने के बाद घरों को प्रस्थान किया। नंदा अष्टमी मेले के अंतिम दिन बुधवार को पूजा अर्चना करने के बाद ग्रामीणों ने मां नंदा को नम आंखों से उनके ससुराल कैलाश के लिए यह वचन देकर विदा किया कि अगले वर्ष इसी समय पर मां नंदा को पुनः न्योता देंगे और पूजा अर्चना करेंगे।

ध्यांण के रूप में पूजी जाती है नंदा
उत्तराखंड में मां नंदा को ध्यांण (बेटी) के रूप में पूजा जाता है। जब भी नंदा अष्टमी का पर्व होता है तो मां नंदा को उनके ससुराल उच्च हिमालयी कैलाश से ब्रह्म कमल के रूप में मायके लाया जाता है। पूजा पाठ करने और अपनी बेटी से मिलने के बाद गांव के लोगों द्वारा मां नंदा को पुनः उनके ससुराल कैलाश के लिए नम आंखों से विदा कर दिया जाता है। मान्यता है कि जब ब्रह्म कमल के रूप में मां नंदा कैलाश से अपने मायके आतीं हैं तो इसी के साथ पहाड़ों में ठंड का मौसम भी लौट आता है। कुछ पौराणिक दंत कथाएं ऐसी भी हैं कि जब उच्च हिमालय क्षेत्र से ब्रह्म कमल दोहन कर फुलारी अपने-अपने नंदा मंदिरों की तरफ प्रस्थान करते हैं तो ब्रह्म कमल की इन कंडियों में ब्रह्म कमल के रूप में बर्फ भी आ जाती है और सर्दी का एहसास होने लगता है।

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