
वॉशिंगटन : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) के बीच गर्मजोशी भरे रिश्तों को नई ऊंचाई देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठने वाला है। ट्रंप ने शुक्रवार को एयर फोर्स वन पर सवार होकर पत्रकारों से खुलासा किया कि वह सऊदी अरब को लॉकहीड मार्टिन के निर्माणाधीन अत्याधुनिक F-35 स्टील्थ लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हरी झंडी दिखाने पर विचार कर रहे हैं। यह डील न केवल सऊदी की सैन्य ताकत को मजबूत करेगी, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का फायदा पहुंचाएगी।
ट्रंप ने कहा, “सऊदी अरब ढेर सारे विमान खरीदना चाहता है। मैं इस पर विचार कर रहा हूं। उन्होंने मुझे इस पर सोचने को कहा है। वे ’35’ विमान खरीदना चाहते हैं – लेकिन वास्तव में उससे भी ज्यादा लड़ाकू विमान।” यह बयान ऐसे समय आया है जब MBS की व्हाइट हाउस यात्रा मंगलवार (19 नवंबर) को निर्धारित है। इस दौरान दोनों नेता आर्थिक और रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाले हैं, जिसमें F-35 की बिक्री के अलावा आपसी रक्षा गारंटी और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) खरीद का सौदा शामिल है। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि MBS का स्वागत राज्य-स्तरीय समारोह के साथ किया जाएगा – साउथ लॉन पर आगमन समारोह, ओवल ऑफिस में द्विपक्षीय बैठक, कैबिनेट रूम में साइनिंग और ईस्ट रूम में फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप द्वारा आयोजित भोज। हालांकि यह आधिकारिक राज्य यात्रा नहीं है, लेकिन इसका वैभव इससे कम नहीं।
F-35 डील का महत्व: सऊदी एयर फोर्स में क्रांति, लेकिन विवादास्पद
सऊदी अरब ने वर्ष की शुरुआत में ही ट्रंप से सीधे 48 F-35 जेट्स खरीदने की इच्छा जताई थी, जो दो स्क्वाड्रन के बराबर है। यह अनुरोध पेंटागन के प्रमुख बाधा को पार कर चुका है और अब कैबिनेट स्तर की मंजूरी, ट्रंप के हस्ताक्षर तथा कांग्रेस को सूचना के इंतजार में है। अनुमानित मूल्य कई अरब डॉलर का है, जो सऊदी की ‘विजन 2030’ आर्थिक-सैन्य आधुनिकीकरण योजना का हिस्सा बनेगा। वर्तमान में सऊदी एयर फोर्स बोइंग F-15, यूरोपीय टॉरनेडो और टाइफून जैसे विमानों पर निर्भर है, लेकिन F-35 की स्टील्थ तकनीक ईरान जैसे क्षेत्रीय खतरों से निपटने में क्रांतिकारी साबित होगी।
मई 2025 में ट्रंप की रियाद यात्रा के दौरान ही अमेरिका ने सऊदी को 142 अरब डॉलर का ऐतिहासिक हथियार पैकेज बेचा था, जिसे व्हाइट हाउस ने “इतिहास का सबसे बड़ा रक्षा सहयोग समझौता” बताया। इसमें हवा-मिसाइल रक्षा प्रणालियां, ड्रोन और प्रशिक्षण शामिल थे। F-35 डील इसकी अगली कड़ी होगी, जो सऊदी को मध्य पूर्व का दूसरा देश (इजराइल के बाद) बनाएगी जो इस विमान को उड़ाएगा। ट्रंप प्रशासन के एक अधिकारी ने ब्लूमबर्ग को बताया, “यह समझौता सऊदी-अमेरिकी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करेगा।”
अब्राहम समझौते की उम्मीद, लेकिन फिलिस्तीन मुद्दा बाधा
ट्रंप ने MBS के साथ बैठक को “मुलाकात से कहीं ज्यादा” बताते हुए कहा, “हम सऊदी अरब का सम्मान कर रहे हैं।” उन्होंने उम्मीद जताई कि सऊदी जल्द अब्राहम समझौते में शामिल होगा, जो इजराइल और मुस्लिम देशों के बीच संबंध सामान्य बनाने का ट्रंप का फ्लैगशिप प्रोजेक्ट है। मई 2025 में रियाद में गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल शिखर सम्मेलन के दौरान ट्रंप और MBS ने इसी पर चर्चा की थी। लेकिन रियाद ने फिलिस्तीनी राज्य के स्पष्ट रोडमैप के बिना सामान्यीकरण से इनकार किया है। ट्रंप के दामाद और सलाहकार जेरेड कुश्नर ने हाल ही में रियाद में MBS से गाजा पथ पर बात की, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इजराइल-सऊदी सामान्यीकरण अभी दूर है।
चिंताएं: चीन को तकनीक का खतरा, इजराइल की सैन्य श्रेष्ठता पर सवाल
यह डील विवादों से घिरी हुई है। न्यूयॉर्क टाइम्स की गुरुवार की रिपोर्ट के अनुसार, डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (DIA) की एक गोपनीय रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि F-35 की उन्नत तकनीक सऊदी के माध्यम से चीन के हाथ लग सकती है। पेंटागन अधिकारी चिंतित हैं कि चीनी जासूसी या सऊदी-चीन सुरक्षा साझेदारी से यह संभव है। ट्रंप प्रशासन ने सऊदी को F-35 देने से पहले इजराइल की “क्वालिटेटिव मिलिट्री एज” (क्षेत्रीय सैन्य श्रेष्ठता) सुनिश्चित करने का वादा किया है, लेकिन कुछ अमेरिकी सांसदों को खशोगी हत्या (2018) और मानवाधिकार उल्लंघनों के कारण संदेह है।
फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज के ब्रैड बोमन ने कहा, “सऊदी अमेरिकी सुरक्षा साझेदार है, लेकिन F-35 बिक्री से इजराइल की बढ़त प्रभावित न हो।” कांग्रेस में डील पर समीक्षा होगी, जहां कुछ सदस्य रियाद को हथियार बेचने का विरोध कर सकते हैं।
व्यापक प्रभाव: मध्य पूर्व की शक्ति संतुलन में बदलाव
यह समझौता अमेरिका-सऊदी संबंधों को नई मजबूती देगा, जो 2019 के ईरानी हमलों के बाद से कमजोर पड़े थे। सऊदी रक्षा मंत्री प्रिंस खालिद बिन सलमान ने सोमवार को वॉशिंगटन में विदेश मंत्री मार्को रुबियो और रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ से मिलकर जमीन तैयार की। ट्रंप ने इसे “क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद विरोध” का हिस्सा बताया। लेकिन विशेषज्ञ चेताते हैं कि चीन का बढ़ता प्रभाव और इजराइल की चिंताएं डील को जटिल बना सकती हैं।
MBS की यह अमेरिका यात्रा 2018 के खशोगी कांड के बाद पहली है, जो ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में मध्य पूर्व नीति का टेस्टकेस बनेगी। यदि डील फाइनल हुई, तो यह न केवल सैन्य, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी $600 अरब के सऊदी निवेश का द्वार खोलेगी। दुनिया की नजरें व्हाइट हाउस पर टिकी हैं।















