US-India Relations : भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव के ये है वो 5 कारण, यहाँ पढ़ें पूरी डिटेल

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हालिया बयान – “अमेरिका ने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है” – इस समय के बदलते भू-राजनीतिक समीकरण का सटीक चित्रण है। यह सिर्फ एक स्वीकारोक्ति नहीं, बल्कि यह अमेरिका की विदेश नीति की विफलता का सबूत है। बीते दो वर्षों में भारत-अमेरिका संबंध जिस तरह तनावपूर्ण हुए हैं, उसके पीछे केवल बीजिंग की चालें नहीं बल्कि वॉशिंगटन के अपने फैसले भी हैं। 

भारत एक उभरती शक्ति है जो अब किसी भी वैश्विक ताकत के सामने सिर झुकाने को तैयार नहीं। यही कारण है कि अमेरिका की गलतियों ने भारत को नए विकल्प तलाशने पर मजबूर कर दिया है। 

ट्रंप का टैरिफ वार – दोस्ती में पीठ पर वार

अमेरिका ने भारत के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को “सबसे ऊंचा टैरिफ” लगाकर चोट पहुंचाई। 50% तक टैरिफ भारतीय स्टील, एल्युमिनियम, फार्मा और टेक्सटाइल पर लगाया गया। 25% अतिरिक्त टैक्स रूस से खरीदे गए कच्चे तेल पर लगाया गया।

अमेरिकी ITC (International Trade Commission) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार 2023 में $191 बिलियन तक पहुंचा था, लेकिन 2024 की पहली छमाही में इसमें लगभग 8% की गिरावट आई है। ट्रंप का यह फैसला भारत के लिए आर्थिक झटका ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक संदेश भी था कि वॉशिंगटन भारत को “पसंदीदा साझेदार” के बजाय एक प्रतिस्पर्धी मानने लगा है।

मुनीर के साथ व्हाइट हाउस में डिनर

भारत के लिए यह सबसे बड़ा झटका था जब पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर को व्हाइट हाउस बुलाकर राष्ट्रपति ट्रंप ने उनके साथ लंच किया। यह वही मुनीर हैं जिन्होंने फरवरी 2024 में परमाणु हमले की धमकी दी थी। मई 2024 में भारत-पाक सीमा पर हुई झड़प में 10 भारतीय जवान शहीद हुए थे।

ऐसे समय में यह मुलाकात भारत के लिए संकेत थी कि अमेरिका पाकिस्तान को फिर से बराबरी की स्थिति में खड़ा कर रहा है। भारत को यह संदेश गया कि अमेरिका की दक्षिण एशिया पॉलिसी में “डुअल बैलेंस” अभी भी जिंदा है – यानी इस्लामाबाद को खुश रखने की कोशिशें।

युद्धविराम का क्रेडिट हथियाने की कोशिश

ट्रंप ने कई बार दावा किया कि मई के युद्धविराम में उनकी भूमिका थी और उन्होंने मोदी सरकार पर दबाव बनाया था। उन्होंने कहा कि अगर युद्ध नहीं रुकता तो कोई ट्रेड डील नहीं होगी। भारत ने इसे पूरी तरह खारिज किया और कहा कि यह एक “बाइलेटरल” (द्विपक्षीय) निर्णय था।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यहां तक कहा कि “भारत की संप्रभुता में किसी तीसरे देश की कोई भूमिका स्वीकार्य नहीं है।” यह बयानबाजी भारत की कूटनीतिक स्वायत्तता पर हमला मानी गई और इसने नई दिल्ली में अविश्वास पैदा किया।

पीटर नवारो के जहरीले बयान

इसके अलावा ट्रंप के मुख्य ट्रेड सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर लगातार हमले किए। उन्होंने कहा कि “यूक्रेन युद्ध दरअसल मोदी का युद्ध है।” भारत के रूस से तेल खरीदने पर कहा कि यह पुतिन की वॉर मशीन को ईंधन दे रहा है।

सबसे विवादित बयान में उन्होंने कहा कि “रूसी तेल खरीद से भारत में ब्राह्मण मुनाफा कमा रहे हैं।” यह बयान भारत में जातीय राजनीति पर हमला समझा गया। भारतीय उद्योग मंडल (CII) और कई सांसदों ने इसे “रेसिस्ट और अस्वीकार्य” कहा।

अमेरिकी वाणिज्य मंत्री की धमकी

अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक का बयान कि “भारत को अगले दो महीने में माफी मांगनी होगी” ने आग में घी का काम किया। यह बयान भारत के लिए कूटनीतिक तौर पर अपमानजनक था। भारतीय मीडिया और थिंक टैंक ने इसे “साम्राज्यवादी मानसिकता” बताया।

भारत की नई कूटनीतिक रणनीति

अमेरिका की इन नीतियों के बाद भारत ने खुद को “नो-नॉनसेंस मोड” में डाल दिया और अपनी विदेश नीति को और संतुलित किया।

ऊर्जा सुरक्षा – रूस पर दांव

भारत ने रूस से तेल आयात बढ़ाया। जानकारी हो कि 2021 में रूस से तेल का आयात सिर्फ 1% था। लेकिन, 2024 में यह बढ़कर 27% हो गया। इससे भारत को 30-35% सस्ता कच्चा तेल मिला, जिससे मुद्रास्फीति को काबू करने में मदद मिली।

बहुध्रुवीय कूटनीति – चीन को बैलेंस

भारत ने क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) में अपनी भूमिका जारी रखी लेकिन BRICS और SCO में भी सक्रिय रहा। BRICS समिट 2024 में भारत ने “डॉलर पर निर्भरता घटाने” पर जोर दिया। SCO समिट 2024 में पीएम मोदी ने आतंकवाद पर कड़ा रुख अपनाया और चीन को सीधे संदेश दिया कि भारत अपनी सीमाओं पर किसी दबाव में नहीं आएगा।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता

भारत ने $15 बिलियन के रक्षा उत्पादन अनुबंध स्वदेशी कंपनियों को दिए। HAL, BEL जैसी कंपनियों को नए ऑर्डर मिले। अमेरिकी हथियार आयात में 2023 की तुलना में 12% गिरावट आई।

वैश्विक साउथ की अगुवाई

भारत ने G20 अध्यक्षता का उपयोग कर “ग्लोबल साउथ” देशों को एकजुट किया। अफ्रीका को G20 में स्थायी सदस्यता दिलाई। यह संकेत था कि भारत सिर्फ अमेरिका या यूरोप का सहयोगी नहीं, बल्कि दक्षिणी देशों का नेतृत्वकर्ता भी है।

भारत की दिशा तय – सम्मान या दूरी

अमेरिका को समझना होगा कि भारत अब आदेश लेने वाला देश नहीं है। वह बराबरी के रिश्ते की मांग करता है। अगर अमेरिका भारत को दबाव में रखने की कोशिश करेगा तो नई दिल्ली अपने विकल्प रूस, चीन, यूरोप और ग्लोबल साउथ में तलाशेगी। अगर वॉशिंगटन साझेदारी और सम्मान की भाषा बोलेगा तो भारत उसका सबसे विश्वसनीय सहयोगी बन सकता है। भारत ने साफ कर दिया है कि उसकी विदेश नीति का मंत्र है – “राष्ट्रहित पहले, गठबंधन बाद में।”

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