गज़ब है बाबूशाही! लाखों की जांच, अठन्नी की आंच, तीन साल में पांच जांचें और एक रुपये का ‘महा-गबन’

औरैया। यह कोई साधारण प्रशासनिक रिपोर्ट नहीं, बल्कि सरकारी व्यवस्था के भीतर चलने वाले उस कल्पित नाटक की पटकथा है, जहाँ आरोप करोड़ों जैसे भारी-भरकम हों और फैसला अठन्नी से भी हल्का। उत्तर प्रदेश के औरैया जिले की बिधूना तहसील स्थित खानजहांपुर चिरकुआ ग्राम पंचायत का यह मामला अब प्रशासनिक लोककथा बन चुका है, जिसे लोग “लाखों के आरोप बनाम एक रुपये का न्याय” कहकर याद कर रहे हैं।

हाई-वोल्टेज शुरुआत: जब लगा था ‘मेगा स्कैम’ का सायरन

कहानी की शुरुआत होती है दिसंबर 2022 से। ग्राम पंचायत सदस्य कुलदीप शर्मा ने प्रशासन के दरवाजे पर दस्तक देते हुए सनसनीखेज आरोप लगाए। शिकायत में कहा गया कि हैंडपंप मरम्मत, स्ट्रीट लाइट, सड़क निर्माण और स्कूल कायाकल्प जैसे विकास कार्यों के नाम पर ग्राम पंचायत में 25 से 30 लाख रुपये का बड़ा घोटाला किया गया है।

यह महज एक शिकायत नहीं थी, बल्कि उस ग्राम पंचायत के लिए वित्तीय भूकंप की चेतावनी मानी गई। कागजों में विकास, ज़मीन पर सवाल और सिस्टम के लिए एक बड़ी परीक्षा।

जांच पर जांच: तीन साल की प्रशासनिक मैराथन

शिकायत के बाद जो शुरू हुआ, वह किसी लंबी दूरी की दौड़ से कम नहीं था। एक नहीं, दो नहीं, बल्कि पूरे पाँच जांच अधिकारी बदले गए। हर नई जांच के साथ उम्मीद जगी कि अब सच्चाई सामने आएगी, लेकिन हर बार मामला अधूरा रह गया।

तीन साल तक फाइलें चलीं, नोटशीटें बदलीं, रिपोर्टें आईं और लौटाई गईं। प्रशासनिक मशीनरी घूमती रही, लेकिन निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सकी।

चौथी जांच: जब प्रधान के अधिकार हुए सीज

सितंबर 2024 में चौथी जांच ने पूरे मामले को नया मोड़ दे दिया। इस बार जांच रिपोर्ट में अनियमितता की पुष्टि की गई। नतीजा यह हुआ कि ग्राम प्रधान शकुंतला देवी के वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार तत्काल प्रभाव से सीज कर दिए गए।

इस कार्रवाई से लगा कि अब लाखों का घोटाला सचमुच उजागर होने वाला है। गांव में चर्चाएं तेज हो गईं और प्रशासनिक सख्ती की मिसाल दी जाने लगी।

क्लाइमेक्स: एक रुपये का ‘महा-गबन’

फिल्मी कहानी की तरह असली ट्विस्ट आता है 4 जून 2025 को। पांचवीं और अंतिम जांच ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के अधिशासी अभियंता द्वारा पूरी की गई। रिपोर्ट जब सामने आई, तो उसने न सिर्फ पूरे मामले की दिशा बदली, बल्कि सिस्टम पर भी सवाल खड़े कर दिए। निष्कर्ष चौंकाने वाला था।

हैंडपंप मरम्मत के भुगतान में ₹59,500 की जगह ₹59,501 का भुगतान हुआ।

यानी, सिर्फ ₹1 (एक रुपया!) का गबन। तीन साल, पाँच जांचें और लाखों के आरोप… सबका निचोड़ एक रुपये पर आकर थम गया।

प्रशासनिक पंचलाइन: मानवीय भूल और चेतावनी

जब यह रिपोर्ट जिलाधिकारी डॉ. इंद्रमणि त्रिपाठी के समक्ष प्रस्तुत की गई, तो इसे “मानवीय भूल” मानते हुए समाप्त कर दिया गया।

सजा के नाम पर ग्राम प्रधान और सचिव को केवल चेतावनी दी गई।

इतना ही नहीं, पहले सीज किए गए ग्राम प्रधान के सभी अधिकार तत्काल बहाल कर दिए गए।

सीडीओ का बयान: एक रुपया जमा, अधिकार बहाल

मामले में मुख्य विकास अधिकारी संत कुमार ने बताया कि जांच अधिकारी द्वारा एक रुपये के गबन की बात कही गई थी। उसी आधार पर वह एक रुपया सरकारी कोष में जमा कराकर डीपीआरओ को ग्राम प्रधान के अधिकार बहाल करने के निर्देश दिए गए।

सीडीओ ने यह भी स्पष्ट किया कि पिछली जांचों के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है, केवल इतना पता है कि किसी कारणवश जांच पूरी नहीं हो सकी थी, जिसे अब अंतिम रूप दिया गया है।

निष्कर्ष: घोटाला रुपये का या व्यवस्था का

आज यह मामला ग्राम पंचायत से लेकर प्रशासनिक गलियारों तक में चर्चा और व्यंग्य का विषय बना हुआ है।

ग्रामीण सवाल कर रहे हैं।

क्या वाकई लाखों का घोटाला एक रुपये में सिमट गया। या फिर यह उस व्यवस्था का घोटाला है, जिसमें तीन साल का समय, पाँच अधिकारियों की ऊर्जा और सरकारी संसाधन सिर्फ एक रुपये की जांच में खर्च हो गए।

यह कहानी सिर्फ एक रुपये की नहीं, बल्कि भारतीय बाबूशाही की विडंबनाओं की वह तस्वीर है, जो सिस्टम पर गहरे सवाल छोड़ जाती है।

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