दो बार के ओलंपिक पदक विजेता ललित उपाध्याय बोले- यूरोप जाने से पहले ही संन्यास के बारे में सोच लिया था

183 मैच, 67 गोल और दो ओलंपिक पदक — ये संख्याएं सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि उस मेहनत, जुनून और जज्बे की कहानी बयां करती हैं जो ललित उपाध्याय ने भारतीय हॉकी को दी। एफआईएच प्रो लीग के यूरोप चरण के बाद इस अनुभवी मिडफील्डर ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास का ऐलान कर दिया। लेकिन यह सिर्फ मैदान छोड़ने की घोषणा है, खेल से रिश्ता अब भी बरकरार रहेगा।

“शिखर पर रहकर विदा लेना चाहता था”

ललित ने साफ कहा कि यह फैसला उन्होंने खुद लिया, किसी दबाव में नहीं। उन्होंने बताया, “करीब 32 साल की उम्र हो गई है। लिगामेंट की चोट के बावजूद मेरी फिटनेस और फॉर्म बनी रही, लेकिन अब मैं खुद को खींचना नहीं चाहता। हरमनप्रीत जैसे कई साथियों ने रोका, लेकिन मैंने मन बना लिया था। मैं बनारसी फक्खड़ हूं, जो सोच लिया, फिर सोच लिया।”

बचपन का सपना था मां-बाप की मदद करना

जब पहली बार हॉकी थामी थी, तब मकसद सिर्फ इतना था कि बेरोजगार पिता और सिलाई कर घर चलाने वाली मां का सहारा बन सकें। ललित कहते हैं, “पापा की कपड़ों की छोटी दुकान बंद हो गई थी, मां सिलाई करती थीं। हॉकी इसलिए चुनी कि नौकरी मिले और घर संभल सके। तब ढाई-तीन सौ रुपये की छात्रवृत्ति से मां को सिलाई मशीन दिलाई थी।”

करियर की सबसे कड़वी याद – स्टिंग ऑपरेशन

ललित का नाम करियर की शुरुआत में ही एक स्टिंग ऑपरेशन में आ गया था, जो उनके लिए बेहद दर्दनाक अनुभव रहा। वह बताते हैं, “मैं 17 साल का था और एक टीवी चैनल ने आईएचएफ सचिव को रिश्वत देने का नाटक किया था जिसमें मेरा नाम सामने लाया गया। इसके बाद टीम से बाहर कर दिया गया, चार साल तक लोगों की शक भरी नजरों और तानों का सामना किया। मां ने कहा – ‘अगर सही हो तो हॉकी मत छोड़ना।’ तभी तय किया कि अब भारत के लिए ही खेलूंगा।”

ललित की दूसरी शुरुआत

एयर इंडिया से दोबारा शुरुआत करने वाले ललित की प्रतिभा पहचानी जाने लगी। 2011 में उन्हें वो मौका मिला जिसने उन्हें अंदर तक छू लिया — महान ओलंपियन मोहम्मद शाहिद से मुलाकात। “बनारस के एक प्रदर्शनी मैच में शाहिद भाई, धनराज पिल्लै और दिलीप तिर्की के साथ एक तस्वीर खिंचवाई थी। तब लगा था, तस्वीर अधूरी है क्योंकि मैं ओलंपियन नहीं था। अब लगता है, तस्वीर पूरी हो गई।”

उपलब्धियां जो याद रहेंगी

  • ओलंपिक में दो कांस्य पदक (टोक्यो, पेरिस)
  • एशियाई खेल 2022 में स्वर्ण पदक
  • 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक
  • 183 इंटरनेशनल मैच, 67 गोल

अब कोच की भूमिका में सेवा देना चाहते हैं

ललित ने कहा, “अगर हॉकी इंडिया चाहे तो मैं कोचिंग के लिए तैयार हूं। पीआर श्रीजेश, तुषार खांडेकर और शिवेंद्र सिंह की तरह मैं भी नई पीढ़ी को तैयार करना चाहता हूं।”

अब वक्त है थोड़ा सुकून का

फिलहाल ललित का इरादा बनारस लौटकर कुछ समय अपने शहर और परिवार के साथ बिताने का है। वे कहते हैं, “2024 में शादी के वक्त आठ दिन रहा था, लेकिन अब काशी में कुछ दिन रुकूंगा। दशाश्वमेध घाट पर बैठूंगा और बाबा विश्वनाथ के दर्शन करूंगा।

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