
- लापरवाह सिस्टम के CCTV कैमरे नदारद हैं, और जो लगे हैं, वे अक्सर खराब रहते हैं
बरेली। एक बार फिर लापरवाह व्यवस्था और गैरजिम्मेदाराना सिस्टम ने एक मासूम जान को निगल लिया। किला पुल, जो अक्सर तेज रफ्तार वाहनों की दौड़ का अखाड़ा बना रहता है, सोमवार को एक और दर्दनाक हादसे का गवाह बना। एक अज्ञात तेज रफ्तार वाहन ने बाइक सवार युवक को इतनी जबरदस्त टक्कर मारी कि उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
युवक की उम्र महज 35 साल थी — यानी ज़िंदगी की उस दहलीज़ पर, जहां जिम्मेदारियां सिर पर होती हैं और घरवालों की उम्मीदें आंखों में तैर रही होती हैं।किला पुल अब सिर्फ एक ओवरब्रिज नहीं रहा — ये मौत का पुल बन चुका है। यहां रफ्तार की कोई सीमा नहीं, और पुलिस की मौजूदगी महज़ कागज़ों तक सीमित है। CCTV कैमरे नदारद हैं, और जो लगे हैं, वे अक्सर खराब रहते हैं या चालू नहीं होते। नतीजा ये कि हादसा होता है, लाशें उठती हैं, और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे तमाशा देखता है।
इस हादसे में जिस अज्ञात वाहन ने युवक को कुचला, वो फरार हो गया। पुलिस के पास न तो गाड़ी का नंबर है, न ही कोई फुटेज, न चश्मदीद। सवाल ये है कि आखिर शहर के इतने संवेदनशील पुल पर कोई तेज रफ्तार वाहन कैसे बेधड़क निकल जाता है? क्या ये पुल पुलिस की निगरानी से बाहर है? क्या बरेली प्रशासन ने इसे बेलगाम ड्राइवरों के हवाले कर दिया है ?
हादसे के बाद जो सबसे शर्मनाक पहलू सामने आया, वो था सिस्टम की संवेदनहीनता। युवक की शिनाख्त उसकी जेब में मिले कागजों से हुई — यानी सिस्टम इतना लाचार है कि पहचान के लिए मृतक की जेब खंगालनी पड़ी। पुलिस ने शव को जिला अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिया और परिजनों को सूचना दी, लेकिन अब वो सूचना किस काम की? जिस बेटे, भाई या पिता के लौटने की उम्मीद घरवाले लगाए बैठे थे, उसका शव मोर्चरी में पड़ा है।
पुलिस ने “रूटीन कार्रवाई” करते हुए मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। लेकिन यह जांच किस दिशा में जाएगी? किसे सज़ा मिलेगी? और सबसे बड़ा सवाल — अगली जान कब जाएगी? क्योंकि इस पुल पर हादसों का सिलसिला कोई नया नहीं है। आए दिन यहां मौत मंडराती है, लेकिन शासन-प्रशासन की आंखें नहीं खुलतीं।