PM Modi Trinidad Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2025 में त्रिनिदाद और टोबैगो की राजकीय यात्रा के दौरान एक खास रात्रि भोज में हिस्सा लिया. इस डिनर को खास बना दिया उस तरीके ने, जिसमें भोजन परोसा गया पारंपरिक, बड़े और चमकदार हरे रंग के सोहरी पत्तों पर. पीएम मोदी ने बाद में सोशल मीडिया पर इस अनुभव को साझा करते हुए कहा कि यह पत्ता त्रिनिदाद के भारतीय मूल के लोगों के लिए गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है.
यह छोटा-सा लेकिन भावनात्मक रूप से महत्वपूर्ण दृश्य त्रिनिदाद की इंडो-कैरेबियन विरासत को दर्शाता है, जहां आज भी भोजन परोसने के लिए इन पत्तों का इस्तेमाल एक परंपरा के रूप में जीवित है. पीढ़ियों से चली आ रही इस परंपरा में न केवल प्रकृति से जुड़ाव है, बल्कि भारत से आए पूर्वजों की स्मृतियों को सहेजने का भाव भी है.
The dinner hosted by Prime Minister Kamla Persad-Bissessar had food served on a Sohari leaf, which is of great cultural significance to the people of Trinidad & Tobago, especially those with Indian roots. Here, food is often served on this leaf during festivals and other special… pic.twitter.com/KX74HL44qi
— Narendra Modi (@narendramodi) July 4, 2025
सोहरी पत्ता का पौधीय और ऐतिहासिक परिचय
सोहरी पत्ता कैलाथिया लुटिया पौधे से प्राप्त होता है, जो एक उष्णकटिबंधीय पौधा है और अदरक की प्रजातियों से संबंधित है. इस पत्ते को आमतौर पर बिजाओ या सिगार प्लांट भी कहा जाता है. यह पौधा कैरेबियाई, मध्य और दक्षिण अमेरिका के गर्म और आर्द्र इलाकों में पाया जाता है और इसकी ऊंचाई लगभग 10 फीट तक पहुंच सकती है.
इसके चौड़े और मोमी सतह वाले पत्ते, जिनकी लंबाई एक मीटर से अधिक हो सकती है, भोजन परोसने के लिए आदर्श माने जाते हैं. खासकर गर्म और तैलीय व्यंजनों के लिए, ये पत्ते बिना टूटे या रिसे काफी मजबूत साबित होते हैं.
त्रिनिदाद में भोजन परोसने में सोहारी पत्ते का इस्तेमाल
“सोहारी” शब्द की जड़ें भोजपुरी भाषा में हैं, जिसका अर्थ होता है “देवताओं का भोजन”. मूल रूप से यह शब्द एक प्रकार की घी में बसी हुई रोटी (फ्लैटब्रेड) को संदर्भित करता था, जिसे धार्मिक अनुष्ठानों में पुजारियों को अर्पित किया जाता था.
धीरे-धीरे उस पत्ते को भी “सोहारी पत्ता” कहा जाने लगा, जिस पर यह रोटी और अन्य प्रसाद परोसे जाते थे. वर्तमान में, त्रिनिदाद में यह पत्ता धार्मिक आयोजनों, शादियों, सामूहिक भोजों और दिवाली जैसे पर्वों में बड़े पैमाने पर उपयोग होता है. एक संपूर्ण पारंपरिक थाली जिसमें चावल, चना, सब्ज़ियां, मिठाई आदि होते हैं एक ही सोहारी पत्ते पर परोसी जाती है.
स्थानीय सांस्कृतिक शोधकर्ताओं के अनुसार, त्रिनिदाद में हर महीने 1 लाख से अधिक सोहरी पत्तों का उपयोग केवल हिंदू आयोजनों में होता है. यह दर्शाता है कि यह परंपरा आज भी कितनी व्यापक और जीवंत है.
सोहारी पत्ते का सांस्कृतिक महत्व
सोहारी पत्ते पर भोजन करना सिर्फ एक व्यावहारिक समाधान नहीं, बल्कि इतिहास से जुड़ाव का प्रतीक है. इंडो-त्रिनिदादियनों के लिए यह पत्ता भारत में बसे पूर्वजों की स्मृतियों से जुड़ा है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसे एक “भावनात्मक और सांस्कृतिक सेतु” बताया जो भारत और कैरेबियाई द्वीपों की संस्कृति को जोड़ता है.
सोहरी पत्ता यहाँ सिर्फ एक प्लेट नहीं, बल्कि एक परंपरा है जो भारतीय मूल के लोगों की पहचान और उनकी विरासत को सम्मान देती है. यह परंपरा इस बात का प्रमाण है कि भारत की सांस्कृतिक जड़ें कितनी दूर तक फैली हैं और कैसे उन्होंने विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ी है.
सोहारी पत्ते से जुड़ी कुछ खास बातें
- अर्थ: “सोहरी” शब्द भोजपुरी से आया है, जिसका अर्थ है “देवताओं का भोजन”.
- संस्कृतिक उपयोग: इंडो-त्रिनिदादियाई हिंदू समाज में 100 वर्षों से अधिक समय से धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में इसका उपयोग हो रहा है.
- पौधीय स्रोत: यह Calathea lutea नामक पौधे से प्राप्त होता है, जो कैरेबियन का स्थानीय पौधा है और अपने मजबूत, चौड़े पत्तों के लिए जाना जाता है.
- स्थायित्व और प्रकृति-मैत्री: यह परंपरा न केवल पर्यावरण-संवेदनशील है, बल्कि प्लास्टिक-फ्री भोजन संस्कृति का उदाहरण भी है.