एक बीवी ऐसी भी : पैरों से लाचार पति को पीठ पर बैठाकर हरिद्वार से लाई कांवड़, 9 दिन में चली 170KM, बच्चे रहे संग

नई दिल्ली। एक तरफ पिछले कई सालों से जहाँ पति पत्नी के रिश्तों में ऐसी दरार पड़ती जा रही है कि दुनिया भी हैरान है तो वहीं वर्तमान में दरक रहे पति-पत्नी के रिश्तों के लिए आशा-सचिन का समर्पण एक मिसाल है। दिल्ली एनसीआर के गांव बखरवा निवासी आशा देवी पैरों से लाचार पति सचिन को पीठ पर बैठाकर हरिद्वार से कांवड़ लेकर आईं। सचिन का एक साल पूर्व रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन हुआ था। ऑपरेशन के बाद सचिन चलने-फिरने से लाचार हो गए थे। आशा देवी सचिन के स्वास्थ्य और नौकरी की कामना के लिए कांवड़ लेकर आईं। मंगलवार को गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने ढोल की थाप पर फूल-मालाओं से आशा देवी और सचिन का जोरदार स्वागत किया।
वर्तमान में दरक रहे पति पत्नी के पवित्र और अटूट रिश्ते के लिए आशा-सचिन समाज के लिए मिसाल बन गए। गांव बखरवा निवासी सचिन पेशे से ठेकेदार थे। एक साल पहले बीमारी के कारण सचिन की रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन हुआ था। ऑपरेशन के बाद सचिन पैरों से लाचार हो गए। वह अपने नित्यकर्म के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो गए। काम बंद हो गया और पैसों की किल्लत हो गई। पत्नी आशा ने सिलाई कर परिवार का पालन शुरू किया। श्रावण मास आया तो शिवभक्त सचिन के मन में पूर्व की भांति कांवड़ लाने की इच्छा हिलोर मारने लगी। मगर आर्थिक तंगी और शारीरिक दुर्बलता के कारण वह चुप बैठ गए। पत्नी आशा को जैसे ही इस बात को अहसास हुआ तो वह पति सचिन और दोनों छोटे बच्चों के साथ हरिद्वार पहुंच गईं। आशा ने बताया कि उसने पति सचिन को पीठ पर बैठाकर हरिद्वार के धर्मस्थलों के दर्शन कराए।
वहीं उसने भगवान आशुतोष से पति के स्वास्थ्य की कामना की और सचिन को पीठ पर बैठाकर हर की पैड़ी से गंगाजल के साथ कांवड़ यात्रा शुरू कर दी। आशा नौ दिन में 170 किमी की दूरी तय कर मंगलवार को गांव बखरवा पहुंचीं। वह पहले भी 13 बार कांवड़ ला चुके हैं। इस बार पैरों से लाचार होने के कारण कांवड़ न लाने का मलाल सचिन को कचोट रहा था।आशा ने बताया कि कांवड़ यात्रा में उन्हें कई परेशानियों सामना करना पड़ा। थकान, मौसम और शारीरिक बोझ। मगर भगवान औधड़दानी की कृपा और दृढ़ इच्छा शक्ति ने उन्हें कभी रुकने नहीं दिया। आशा का कहना है कि परेशानी और कठिनाई हर काम में होती है। अगर इंसान में समर्पण, त्याग, श्रद्धा और आस्था हो तो कोई भी परेशानी फिर बाधा नहीं बनती और न ही रास्ता लंबा लगता।
आशा ने पति सचिन को पीठ पर बैठाकर नौ दिन में लगभग 170 किमी की दूरी पैदल तय की। इस दौरान जैसे ही लोगों को आशा और सचिन की कांवड़ यात्रा के बारे में पता लगता तो देखने वालों की भीड़ लग जाती। रास्ते में करीब दो सौ स्थानों पर उनका स्वागत सम्मान किया गया। आशा ने पति के उपचार के लिए सरकार से आर्थिक मदद और नौकरी की अपील की है। वहीं आशा के इस समर्पण से सचिन बेहद भावुक हैं। सचिन का कहना है कि आशा की हिम्मत है कि उसने उन्हें पीठ पर बैठाकर कांवड़ यात्रा पूरी की। भावुक हुए सचिन ने कहा कि जैसे वह लाचार हुए भगवान ऐसा किसी को न करें। मुस्कान और सोनम जैसी चर्चित घटनाओं के बीच आशा बनीं मिसाल
वर्तमान में पति-पत्नी के पवित्र और अटूट बंधन को शर्मसार व कलंकित करने वालीं घटनाएं देशभर से लगातार सामने आ रही हैं। मेरठ की मुस्कान रस्तोगी और इंदौर की सोनम रघुवंशी समेत कई विवाहिताओं द्वारा अपने पति की हत्या की घटनाओं से पति-पत्नी के रिश्ते पर कालिख पुती। मगर बेहद साधारण महिला आशा देवी ने अपने समर्पण और आस्था से साबित कर दिया है कि आज भी पति-पत्नी का रिश्ता उतना ही मजबूत, श्रद्धा, सेवा और प्रेम से भरा हो सकता है, जितना सत्यवान सावित्री के समय होता था।

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