निजी संपत्तियों के मनमाने अधिग्रहण पर अंकुश लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में है बहुत कुछ, जानें…

-संविधान के अनुच्छेद 39(बी) पर सुनवाई करते हुए दिया गया फैसला

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने 5 नवंबर को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए सरकार को निजी संपत्तियों को अधिग्रहण करने और उन्हें सामुदायिक संसाधन मानकर बांटने पर रोक लगा दी। यह निर्णय निजी संपत्तियों के अधिग्रहण पर सरकार की शक्ति का दायरा तय करता है। संविधान पीठ ने यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 39(बी) पर सुनवाई करते हुए दिया। यह निर्णय 7:2 के बहुमत से आया, जिसमें जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस धूलिया ने असहमति व्यक्त की थी। सुप्रीम कोर्ट की पीठ के सामने दो अहम मुद्दे थे पहला, क्या अनुच्छेद 31-सी अब भी लागू है, जो संपत्ति के अधिकार से संबंधित है, दूसरा, अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या। संविधान का अनुच्छेद 31-सी, जिसे 25वें संविधान संशोधन (1971) के तहत जोड़ा गया था, सरकार को सामाजिक कल्याण के लिए संपत्ति अधिग्रहण करने की अनुमति देता है, परंतु इसे सीमित रूप से ही लागू करने की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि अनुच्छेद 39(बी) का उपयोग सभी निजी संपत्तियों के सामुदायिक पुनर्वितरण के लिए नहीं किया जा सकता। शुरुआत में संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार था, लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1978) में इसे मौलिक अधिकार से हटा दिया गया और अनुच्छेद 300-A के तहत इसे विधिक अधिकार बनाया गया। अब सरकार भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत संपत्ति अधिग्रहण कर सकती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मनमाने अधिग्रहण पर अंकुश लगाता है।

फैसले का असर कई क्षेत्रों पर पड़ने का अनुमान
विशेषज्ञों के अनुसार, इस फैसले का असर कई क्षेत्रों पर पड़ सकता है, जिनमें वक्फ संपत्तियां और कोयले के राष्ट्रीयकरण से जुड़े कानून शामिल हैं। यह निर्णय हाल के प्रॉपर्टी विवादों, विशेष रूप से वक्फ संपत्तियों को लेकर विवादों पर रोक लगाने का काम करेगा और सरकार को निजी संपत्ति के अधिग्रहण में अधिक सावधानी बरतने के लिए प्रेरित करेगा।

अनुच्छेद 39(बी) के तहत सरकार को संसाधनों का इस प्रकार बंटवारा करना होता है कि वे समाज के लाभ के लिए काम आ सकें। इस सिद्धांत के आधार पर सरकार संपत्ति पर नियंत्रण रखने के लिए नीतियां बनाती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सुनिश्चित करता है कि यह नीति सभी निजी संपत्तियों पर लागू न हो। यह फैसला संपत्ति के अधिकार और सरकारी नीतियों के संतुलन को बनाए रखने में एक अहम कदम माना जा रहा है।

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