
Sitapur : आज सीतापुर कलेक्ट्रेट का नज़ारा कुछ और ही था! न बंद दरवाजे, न बाहर खड़े पहरेदार, न अंदर जाने के लिए पर्ची का इंतज़ार। था तो बस फरियादियों का एक ‘जन-सैलाब’, जो सीधे डीएम साहब के दफ्तर तक पहुँच गया। जी हाँ, सीतापुर के इतिहास में शायद पहली बार किसी डीएम के दरबार के दरवाजे आम जनता के लिए इस कदर खुले देखे गए।
गुलदस्ते रह गए हाथ में, पहले सुनी ‘ग़रीब की फ़रियाद’
सुबह से ही दफ्तर में भीड़ उमड़नी शुरू हो गई थी। एक तरफ वो लोग थे जो नए साहब को गुलदस्ता देकर स्वागत करना चाहते थे, तो दूसरी तरफ वो सैकड़ों आम लोग थे जिनकी आँखों में उम्मीद और हाथ में शिकायतें थीं। लेकिन इस नए डीएम ने आते ही अपनी प्राथमिकता साफ़ कर दी। स्वागत के लिए गुलदस्ते लेकर खड़े लोग बाहर ही खड़े रह गए, और साहब ने पहले उन पीड़ितों की पुकार सुनी जो बरसों से इंसाफ के लिए भटक रहे थे। यह नज़ारा देख वहां खड़े लोग भी हैरान रह गए।
”पहले तो गेट पर ही रोक देते थे…”
मौके पर मौजूद कई बुजुर्गों ने कहा कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी में ऐसा मंज़र नहीं देखा। उन्होंने वो दौर भी देखा है जब डीएम के दरबार के कपाट आम जनता के लिए लगभग बंद ही रहते थे। अंदर जाना तो दूर, गेट पर खड़ा होमगार्ड या सिपाही जब पर्ची अंदर ले जाता, तभी एंट्री मुमकिन थी। वरना फरियादी बाहर से ही टरका दिए जाते थे।
जनता गदगद! बोली- “ये डीएम नहीं, फ़रिश्ता है!”
लेकिन आज, जब डीएम ने खुद दरवाजे खोलकर एक-एक पीड़ित की शिकायत सुनी, तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दरबार से बाहर निकले एक पीड़ित ने भावुक होकर कहा, “साहब ने हमारी पूरी बात सुनी। ऐसा डीएम पहली बार आया है जो आम आदमी का दर्द समझता है।” लोगों के बीच यही चर्चा गर्म है कि सीतापुर को एक ‘जनसेवक’ मिल गया है।
सुबह 8 से रात 1 बजे तक ‘ऑन ड्यूटी’ हैं नए डीएम!
यही नहीं, साहब के काम करने का जज़्बा भी पूरे ज़िले में चर्चा का विषय बना हुआ है। ये वो डीएम हैं जो सुबह 8 बजे अपनी कुर्सी पर बैठते हैं और रात के 12 से 1 बजे तक जनता की फाइलों से जूझते रहते हैं। 18-18 घंटे काम करने वाले इस डीएम ने पहले ही दिन साफ़ कर दिया है कि सीतापुर में अब ‘सिस्टम’ बदलने वाला है!
क्या यह नई कार्यशैली सीतापुर में बदलाव की सुनामी लाएगी? यह तो वक़्त बताएगा, लेकिन एक बात तय है कि इस डीएम ने आते ही जनता का दिल जीत लिया है!










