जोधपुर की मंडोर पहाड़ियों में है रावण मंदिर….जहां दशहरे पर मनाया जाता है शोक ! जाने क्यों ?

जोधपुर : जोधपुर की मंडोर पहाड़ियों में स्थित रावण का यह मंदिर अपनी अनोखी कथा और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। मंदिर का संबंध रावण और उनकी पत्नी मंदोदरी की पौराणिक कथा से है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, मंडोर वह स्थान है जहाँ रावण ने मंदोदरी से विवाह किया था। इसलिए इसे रावण का ससुराल और मंदोदरी का पीहर माना जाता है।

रावण के वंशज और दशहरे की परंपरा

कहा जाता है कि रावण की मृत्यु के बाद उनके वंशज लंका से मंडोर आए और यहीं बस गए। जोधपुर के गोधा श्रीमाली ब्राह्मण समाज के लोग आज भी रावण को अपना दामाद मानते हैं। दशहरे के दिन, जब अन्य स्थानों पर रावण दहन होता है, ये परिवार शोक मनाते हैं, स्नान करते हैं, जनेऊ बदलते हैं और भगवान शिव एवं रावण की पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर में रावण की कुलदेवी मां खरानना की मूर्ति भी स्थापित है।

मंदिर का निर्माण और विशेषताएं

  • मंदिर 2008 में मेहरानगढ़ किले के पास बनाया गया।
  • इसमें 11 फीट ऊंची, 2000 किलो वजनी जोधपुरी पत्थर से बनी रावण की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति में रावण को शिवलिंग पर जल अर्पित करते हुए दर्शाया गया है।
  • रावण के सामने मंदोदरी की प्रतिमा भी स्थापित है।
  • मंदिर रावण की शिवभक्ति, विद्वत्ता और भक्ति को दर्शाता है।

दशहरे पर शोक और सांस्कृतिक महत्व

पुजारी बताते हैं कि दशहरे के दिन रावण के वंशज मंदिर में रहकर विशेष पूजा-अर्चना और तर्पण करते हैं। जोधपुर में करीब 100 परिवार और फलोदी में 60 परिवार खुद को रावण का वंशज मानते हैं। वे रावण को विद्वान, संगीतज्ञ और शिवभक्त के रूप में पूजते हैं।

यह परंपरा दशहरे को शोक दिवस बनाती है, जबकि बाकी देश में यह विजय का प्रतीक माना जाता है। मंडोर की यह अनोखी परंपरा जोधपुर की सांस्कृतिक विविधता का हिस्सा है, जहां रावण को दानव नहीं, बल्कि दानव नहीं, पूज्यनीय दामाद माना जाता है। पर्यटक भी मंडोर की चवरी और मंदिर देखने आते हैं, जो पौराणिक कथाओं का जीवंत प्रमाण है।

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