गोंडा के गौ आश्रय केंद्रों की दयनीय हालत : एक डॉक्टर पर 18 केंद्रों का बोझ, सौ से ज्यादा पशुओं की मौत

गोंडा : गुणवत्तापूर्ण भोजन के साथ गौवंशीय पशुओं को समय-समय पर इलाज की दरकार है। बड़े सांड छोटे पशु पर चढ़ते हैं तो उनका पैर टूट जाता है। कुछ जानवर उम्रदराज हैं, जिनके स्वास्थ्य की देखभाल की सख्त जरूरत है और ऐसा न होने पर गोंडा में आये दिन पशु मरते हैं। छह माह में करीब सौ जानवर मर चुके हैं और इनकी संख्या की तस्दीक गौशालाओं में जाकर की जा सकती है।

दैनिक भास्कर ने कुछ गौ आश्रय केंद्रों का दौरा किया, जहां ठंड से बचाव के संसाधन मौके पर नहीं मिले। इन गौ आश्रय केंद्रों पर हरी घास की भी व्यवस्था नहीं है।

जिले में कुल 113 गौ आश्रय केंद्र हैं। इनमें 4 वृहद गौशालाएं, 10 काजी और 3 कांहा गौशालाएं हैं। इनका संचालन जिला पंचायत, नगर पंचायत व ग्राम पंचायतें कर रही हैं। यहां गौ आश्रय केंद्र पर केयर टेकर की जिम्मेदारी भूसा, चोकर, हरी घास और समय पर स्वच्छ पानी मुहैया कराना है। ठंड के लिए गौ आश्रय केंद्र पर पुवाल, जूट के बोरे और खुइयां की व्यवस्था की जानी है, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।

इसके लिए सीडीओ कार्यालय से बीडीओ, ईओ, उपमुख्य पशु चिकित्साधिकारी व डॉक्टरों को 4 नवंबर को पत्र भेजा गया, जिसमें गौ आश्रय केंद्रों की व्यवस्था सही करने के निर्देश दिए गए।

झंझरी के हारीपुर में राशन और भूसा रखने की जगह नहीं है। यहां 148 जानवर हैं। अधिकारी कुछ समझने को तैयार नहीं हैं कि गौ आश्रय केंद्र रमवापुर गोविदा में एक पशु बीमार है।

डीपीआरओ लालजी दुबे का कहना है कि सभी व्यवस्थाओं के निर्देश दिए गए हैं।
सीवीओ डॉ. शशि कुमार शर्मा ने बताया कि जिले में 18 डॉक्टरों की कमी है। एक डॉक्टर के जिम्मे 18–20 गौ आश्रय केंद्र आते हैं, जिनकी देखरेख रोजाना संभव नहीं।

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