दिल्ली कार ब्लास्ट केस में रहस्य गहराया, 5 प्वॉइंट्स पर अटकी पुलिस और फॉरेंसिक टीम, जानिए अब तक क्या-क्या हुआ…

Delhi Red Fort Car Blast Mystery: दिल्ली के दिल लाल किला के पास सोमवार को हुई कार ब्लास्ट की घटना अब एक पहेली बन चुकी है. आठ लोगों की मौत और कई के घायल होने के बाद भी जांच एजेंसियां अब तक यह तय नहीं कर पा रही हैं कि आख़िर ये धमाका हुआ कैसे? कार के चिथड़े उड़ गए, आसपास की खिड़कियां टूट गईं, पर पारंपरिक विस्फोट जैसी तस्वीरें यहां नहीं दिखीं. अब जांच टीम के हाथ पांच ऐसे सुराग लगे हैं, जो इस पूरे केस को और उलझा रहे हैं.

1. न कोई गड्ढा, न धमाके का पारंपरिक निशान

धमाका स्थल पर सबसे बड़ी हैरानी यही रही कि जमीन पर कोई गड्ढा नहीं बना. किसी भी सामान्य बम ब्लास्ट में विस्फोटक दबाव से मिट्टी फट जाती है और गहरा क्रेटर बन जाता है, लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ. धमाका इतना तेज़ था कि दूर तक आवाज़ गूंजी, पर साइट पर ऐसा कोई भौतिक सबूत नहीं मिला जो ‘हाई-इंटेंसिटी ब्लास्ट’ की ओर इशारा करे.

2. घायलों और मृतकों के शरीर पर कोई जलने या कालेपन के निशान नहीं

धमाके में मारे गए लोगों के शरीर पर न तो जलने के निशान हैं, न ब्लैकनिंग (जो बारूद या विस्फोटक से होती है). फॉरेंसिक टीम के मुताबिक, यदि यह हाई-टेम्परेचर ब्लास्ट होता, तो शरीर के ऊपरी हिस्से झुलस जाते, कपड़े जल जाते, लेकिन यहां शरीर लगभग ‘सामान्य स्थिति’ में हैं. इससे यह शक गहराया है कि शायद यह रासायनिक या गैस-आधारित विस्फोट नहीं था.

3. न कील, न छर्रे, न मेटल शार्पनल

आमतौर पर आतंकवादी हमलों में कील या छर्रे बम के साथ लगाए जाते हैं ताकि नुकसान ज़्यादा हो, लेकिन इस कार ब्लास्ट में न किसी शरीर में छर्रे मिले, न आसपास से कोई धातु के टुकड़े. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि धमाका लोगों को मारने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि किसी तकनीकी या रहस्यमय कारण से हुआ हो सकता है.

4. धमाका कार के पिछले हिस्से में, पर ईंधन टैंक सुरक्षित

जांच रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि विस्फोट कार के रियर सेक्शन में हुआ, पर ईंधन टैंक फटा नहीं. सामान्यतः कार ब्लास्ट में पेट्रोल या डीजल टैंक फटने से आग भड़कती है, पर यहां ऐसा नहीं हुआ. इससे यह संभावना बनती है कि धमाका वाहन के अंदर रखे किसी यंत्र, सिलेंडर या उपकरण से हुआ हो, जो असामान्य ऊर्जा रिलीज़ कर गया.

5. आसपास की कारों के शीशे टूटे, पर आग नहीं फैली

ब्लास्ट इतना शक्तिशाली था कि 100 मीटर दूर तक कारों के शीशे टूट गए, दुकानों की खिड़कियां हिल गईं. परंतु, आग एक वाहन तक सीमित रही, आस-पास के वाहनों या दुकानों में आग नहीं फैली. फायर ब्रिगेड को भी यह अजीब लगा, क्योंकि सामान्यत: किसी ऑयल-बेस्ड या पेट्रोल-एक्सप्लोजन में आग तेजी से फैलती है.

जांच एजेंसियां उलझन में क्यों हैं?

  • विस्फोटक का कोई रासायनिक अवशेष नहीं मिला – न RDX, न TNT, न पेट्रोल-डीजल के धुएं के कण
  • फॉरेंसिक पैटर्न मेल नहीं खा रहा – न blast wave, न heat pressure, न combustion residue
  • तकनीकी विस्फोट की संभावना – जांच टीम यह भी देख रही है कि क्या किसी ‘लिथियम बैटरी’, ‘हाइड्रोजन टैंक’ या ‘गैस कनवर्टर’ से यह धमाका हुआ
  • आतंकी लिंक का कोई ठोस सबूत नहीं – अभी तक किसी संगठन ने जिम्मेदारी नहीं ली है
  • मृतकों की पहचान से भी रहस्य बढ़ा – दो शव ऐसे मिले हैं जिनकी पहचान अब तक पूरी नहीं हो पाई है, जबकि कार नंबर फर्जी पाए जाने की बात भी जांच में सामने आई है.

क्या यह आतंकवादी हमला था या तकनीकी दुर्घटना?

जांच एजेंसियां, दिल्ली पुलिस, एनआईए और एफएसएल, तीन मुख्य थ्योरी पर काम कर रही हैं:
  • पहली, यह किसी कम-शक्ति वाले विस्फोटक उपकरण का प्रयोग हो सकता है, जिसे टेस्ट के रूप में इस्तेमाल किया गया.
  • दूसरी, तकनीकी फॉल्ट या बैटरी एक्सप्लोजन की संभावना, जैसे इलेक्ट्रिक कार या कन्वर्टेड वाहन में हो सकता है.
  • तीसरी, किसी नई तकनीक के गैर-पारंपरिक विस्फोटक का प्रयोग, जो साधारण विस्फोटकों से अलग प्रतिक्रिया देता है.
लाल किला क्षेत्र में हुआ यह धमाका सिर्फ एक सुरक्षा चुनौती नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक पहेली भी बन गया है. जब पारंपरिक विस्फोट के सारे संकेत गायब हों, न गड्ढा, न कील, न बारूद, तो सवाल उठता है कि आखिर यह धमाका हुआ किससे? दिल्ली पुलिस, एनआईए और फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स फिलहाल सभी एंगल पर जांच कर रहे हैं. सवाल यह भी है- क्या यह किसी नई तकनीक का परीक्षण था, या एक छिपा संदेश?        

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें