धर्मपाल सिंह
गढ़मुक्तेश्वर। उत्तर प्रदेश के जनपद हापुड़ के गढ़ क्षेत्र का बना मूढ़ा भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे लोगों की बैठकों और बड़ी-बड़ी कोठियों की शान बना हुआ है। लेकिन कच्चे माल की कमी और प्रदेश सरकार की अंदेखी के कारण आज गढ़मुक्तेश्वर का मूढ़ा उद्योग लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। हर वर्ष दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले ट्रेड फेयर व्यापार मेला में गढ़ का मूढ़ा दर्शकों को अत्यधिक पसंद आता है। वहां मूढ़ो की एक प्रदर्शनी भी लगाई जाती है और वहां से लिए गए ऑर्डरों के आधार पर देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कई शहरों में भी सप्लाई किये जाते है। जिस कारण आज गढ़ का मूढ़ा उद्योग विश्व पटल पर हेण्डीक्राफ्ट इंडस्ट्री में अपनी एक अलग और खास पहचान बनाये हुए है। लेकिन आज प्रदेश सरकार की अंदेखी और शासन – प्रशासन की उपेक्षा के चलते अब हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर का मूढ़ा उद्योग धीरे – धीरे लुप्त होता नजर आ रहा है।
कच्चे माल की कमी बन रही मूढ़ा उद्योग के लुप्त होने का मुख्य कारण- मूढ़ा बनाने वाले कारीगर सचीन व राजेश ने जानकारी देते हुए बताया कि पहले गंगा के किनारे हजारो बीघा खाली पड़ी जमीन में झाड़ – झुण्ड खुद ही पैदा होते थे। जिसे वहां के ग्रामीण काटकर, सुखाकर उसमें से सेटा, बींड, फूस, मूज आदि तैयार कर मूढ़ा बनाने वाले कारीगरों को सस्ते दामो पर बेच देते थे। लेकिन आज के समय में प्रशासन की अंदेखी के कारण गंगा किनारो की ग्राम समाज की जमीनों पर भूमाफियाओं ने अवेध कब्जे कर खेती शूरू कर दी है। जिस कारण मूढ़ा बनाने में प्रयोग होने वाला कच्चा माल आसानी से नहीं मिल पाता। जिसे दूर दराज के इलाको से मगाना पड़ता है। जो अब ट्रांसपोर्ट सहित काफी महंगा पड़ता है। मूज़ के बान न मिलने कारण पलास्टिक के बानो का इसतेमाल करना पड़ता है, जो बहुत महगें हो गये है। जिस कारण काफी कारीगरों ने मूढ़ा बनाने का काम बंद कर दिहाड़ी मजदूरी शूरू कर दी है।
कारीगरों को नहीं मिल पाती उनकी महनत की मजदूरी- मूढ़ा बनाने वाले कारीगर बब्लू, रोहित व राम निवास ने जानकारी देते हुये बतया कि एक दिन में बडा मूढ़ा एक ही व छोटे मूढ़े दो ही तैयार हो पाते है। कच्चे माल की कमी व पलस्टिक के बानो के दामो में आई तेजी के कारण पुरे दिन की महनत के बाद भी २०० से ३०० रूयपे तक का ही काम हो पाता है। जिस कारण कारीगरों को उनकी मेहनत की मजदूरी भी नहीं मिल पाती है। इसलिए यह उद्योग बढऩे की वजह कम होता दिखाई पड़ रहा है।
एक समय ऐसा भी था- हरियाणा के पुर्व मुख्यमंत्री देवीलाल ने अपने शासनकाल में पूरे प्रदेश की ग्राम पंचायतों और न्याय पंचायतों पर गढ़ के बने मूढ़े और कुर्सी के सेट व मेज वहां मंगाए थे. गढ़मुक्तेश्वर से कई कई ट्रक मूढा तैयार कर हरियाणा ले जाया गया था, जहां आज भी चौपालों, पंचायत घरों और न्याय पंचायतों में लोग उन पर बैठकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं।
क्या बोले मूढ़ा व्यवसायी- सरकारी स्तर पर मूढ़ा उद्योग से जुड़े लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए कोई योजना नहीं है। मूढ़ा कारीगरों की बात करें तो उनका हाल दिहाड़ी वाले मजदूरों से भी बदतर है। कच्च माल खरीदने से लेकर ट्रांसपोर्टेशन में आने वाली लागत जुटाने के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ती है।