झांसी : स्थायी छत और सम्मान की आस में लोहापीटा समुदाय की गुहार हमें भी चाहिए समाज में एक जगह

झाँसी : मोंठ तहसील क्षेत्र के समथर, पूंछ, मोंठ और चिरगांव के दर्जनों लोहापीटा समुदाय के लोगों ने मंगलवार को मोंठ तहसील पहुंचकर उपजिलाधिकारी से मुलाकात की। फटे कपड़ों और भीगी आँखों के साथ ये परिवार अपने लिए सिर्फ एक छोटी-सी ज़मीन और स्थायी छत की आस लेकर आए थे, ताकि वे भी इस समाज में इज्ज़त और आत्मसम्मान से जी सकें।

लोहापीटा समुदाय वर्षों से समाज की परिधि पर रहकर अपनी ज़िन्दगी गुजारता आया है। कभी गांव-गांव जाकर लोहे के औजार बनाना और उन्हें पीट-पीट कर जीवन यापन करना ही इनका जरिया था। लेकिन समय बदला, तकनीक बदली और यह समुदाय कहीं पीछे छूट गया। अब न उनके पास स्थायी रोजगार है और न ही रहने के लिए अपनी ज़मीन।

झोपड़ियों में बीत रही ज़िंदगी

इन लोगों ने बताया कि वे सड़कों के किनारे झोपड़ियों में रहते हैं। बरसात में झोपड़ी टपकती है, गर्मियों में आग जैसी गर्मी और सर्दियों में कंपकपाती ठंड उनके बच्चों की नींद और सेहत छीन लेती है। विगत दिनों पूंछ क्षेत्र में तेज आंधी और बारिश के दौरान एक विशाल पेड़ उनकी झोपड़ी पर गिर गया था। पूरा परिवार बाल-बाल बचा, लेकिन उनका सारा सामान बर्बाद हो गया। उनके पास दोबारा सब कुछ खरीदने के लिए पैसे भी नहीं बचे।

माँ की पीड़ा और बच्चे का सपना

रानी रोते हुए बोली,
हम भी अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं। हमारे बच्चे भी डॉक्टर, मास्टर बनना चाहते हैं, लेकिन जब हर रोज़ बरसात में उनका बिस्तर भीगता है और रात भर मच्छरों से लड़ते हुए नींद आती है, तो वे कैसे पढ़ेंगे स्कूल जाने से पहले उन्हें कीचड़ से भरी गलियों में चलना पड़ता है।

उनके पास न राशन कार्ड है, न आय प्रमाण पत्र और न ही निवास प्रमाण पत्र, क्योंकि इनके लिए स्थायी पता होना ज़रूरी है।
हमें बस एक छोटा-सा पट्टा चाहिए, जहाँ हम अपनी झोपड़ी की जगह एक पक्का कमरा बना सकें, उन्होंने एसडीएम से गुहार लगाई।

समाज की मुख्यधारा में जुड़ने की चाह

लोहापीटा समुदाय अब खुद को बदले हुए भारत में शामिल देखना चाहता है। वे भिक्षा नहीं मांगते, न ही दया, बस एक मौका चाहते हैं एक छत, एक सम्मान और एक भविष्य। उनकी आंखों में उम्मीद की चमक है और दिल में वह दर्द, जो सालों से दबा हुआ था।

सरकार और समाज अगर इन्हें हाथ थामने को आगे आएं, तो शायद अगली बरसात उनके लिए किसी नई सुबह की शुरुआत बन जाए न कि फिर एक डरावनी रात की कहानी।

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