ब्रह्मांड के रहस्यों पर से उठेगा पर्दा, भारत का मिनी कंप्यूटर खोलेगा कॉस्मिक डॉन का राज, जानें क्यों है खास

नई दिल्ली । भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नन्हों कंप्यूटर बनाया है, जो चांद का चक्कर लगाते हुए कॉस्मिक डॉन के रहस्यों से पर्दा उठाएगा। यहां सवाल उठ सकता है कि आखिर यह कॉस्मिक डॉन क्या है और इसके कौन से रहस्य हैं, जिन्हें भारत में बना नन्हां कंप्यूटर उजागर करने में सक्षम साबित हो सकता है।

दरअसल ब्रह्मांड की वह पहली सुबह जबकि सबसे पहले तारे ने और आकाशगंगाओं ने जन्म लिया, उसे कॉस्मिक डॉन से जाना जाता है। यह रहस्यमयी दुनिया का पहला वह दौर है जिसने ब्रह्मांड के चेहरे को ही हमेशा के लिए बदल दिया। अनेक वैज्ञानिक मानते हैं कि ब्रह्मांड के इसी प्रथम दौर में छिपे है वर्तमान वाले ब्रह्मांड के अनेक रहस्य। इन्हें देखना और समझना सदा से ही बहुत मुश्किल रहा है, क्योंकि इसकी एक झलक पाने वाले संकेत भी बेहद कमजोर हैं। बहरहाल कॉस्मिक डॉन वह दौर माना जाता है जब पहली बार तारे और आकाशगंगाएं अस्तित्व में आए और ब्रह्मांड का स्वरूप बदला। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसी समय के अध्ययन से वर्तमान ब्रह्मांड की संरचना को बेहतर समझा जा सकता है।

ब्रह्मांड की सबसे रहस्यमयी शुरुआत कॉस्मिक डॉन के ऐसे ही रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए भारत के वैज्ञानिकों ने एक अनोखा प्रयोगात्मक कंप्यूटर तैयार किया है। बताया जा रहा है कि रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने प्रतूश (प्रॉबिंग रिओनिजेशन ऑफ द यूनिवर्स यूजिंग सिग्नल फ्रॉम हाईड्रोजन) नामक विशेष उपकरण बनाया है, जो चांद की परिक्रमा करके अरबों साल पहले जन्मे तारों और आकाशगंगाओं के संकेत खोजेगा।

इस मिशन का लक्ष्य है हाइड्रोजन परमाणुओं से निकलने वाली बेहद कमजोर 21 सेंटीमीटर रेडियो तरंगों को पकड़ना। ये तरंगें बताएंगी कि अरबों साल पहले तारे कैसे बने और उन्होंने ब्रह्मांड को कैसे परिवर्तित किया। चूंकि पृथ्वी पर रेडियो तरंगों का शोर बहुत अधिक है, इसलिए यह यान चांद के उस हिस्से की परिक्रमा करेगा जो धरती से छिपा और शांत है।

प्रतूश की खासियत है इसका अति-लघु डिजिटल रिसीवर सिस्टम। इसमें क्रेडिट कार्ड जितना छोटा रास्पबेरी पाई कंप्यूटर लगाया गया है, जो एंटीना, रिसीवर और विशेष चिप को नियंत्रित करता है। इतना छोटा होते हुए भी यह कंप्यूटर पूरी प्रणाली को सटीक रूप से संचालित करेगा। भारत का यह प्रयास ब्रह्मांड विज्ञान में नई दिशा दिखा सकता है और अंतरिक्ष अनुसंधान की वैश्विक दौड़ में देश की अहम भूमिका को और मजबूत करेगा।

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