
मैदान में उतरे ‘सियासी खिलाड़ी’, किसकी चाल, किसका दाँव?
हरिओम अवस्थी
सीतापुर। बेसिक शिक्षा अधिकारी को उनके ही दफ्तर में प्रधानाध्यापक द्वारा बेल्ट से पीटने का सनसनीखेज मामला अब महज एक विभागीय विवाद नहीं, बल्कि सियासी ‘दंगल’ का अखाड़ा बन चुका है। राजनेताओं ने इस गरमागरम प्रकरण पर ऐसे छलांग लगाई है, मानो शिक्षा विभाग के गलियारों में नहीं, बल्कि आगामी चुनावों की बिसात पर कोई ‘कब्ड्डी-कबड्डी’ का खेल चल रहा हो। सीतापुर का यह ‘बेल्ट कांड’ अब उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में आ गया है। जिस तरह से एक-एक कर पक्ष और विपक्ष के दिग्गज इस मामले में कूद पड़े हैं, उससे साफ है कि उन्हें शिक्षक के प्रति उमड़ी जन-भावना में बड़ा राजनीतिक लाभ नजर आ रहा है।
विपक्ष का ‘ट्वीट बम’
सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस ‘प्रकरण’ पर ट्वीट-बम फोड़ा था। उन्होंने सरकार पर ‘समर्पित शिक्षकों’ को प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए इसे ‘बहुत बड़ा अन्याय’ बताया। इससे साफ हो गया कि समाजवादी पार्टी इस मामले को सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेगी।
स्थानीय नेताओं की ‘दौड़
समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक महमूदाबाद नरेंद्र वर्मा और पूर्व पालिकाध्यक्ष सीतापुर आशीष मिश्र तुरंत प्रधानाध्यापक बृजेंद्र वर्मा के समर्थन में खड़े हो गए। वहीं, जिला पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि शिव कुमार गुप्ता ने भी नदवा स्कूल पहुंचकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
सत्तारूढ़ दल की मुश्किल
सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय विधायक आशा मौर्या के लिए यह स्थिति ‘साँप-छछूंदर’ जैसी हो गई। जब वह नदवा स्कूल गईं और बच्चों की पढ़ाई शुरू करवाने के लिए ताला तुड़वाया, तो उन्हें बच्चों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। बच्चे अपने ‘गुरु जी’ के लिए नारेबाजी करते रहे। इस बीच, बीजेपी की सहयोगी पार्टी के कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल ने भी कार्रवाई को ‘एकतरफा’ बताते हुए प्रधानाध्यापक का समर्थन किया और निष्पक्ष जांच की मांग की।
कौन पिस रहा है इस ‘कबड्डी’ में?
इस पूरे राजनीतिक ड्रामे में सबसे बुरी तरह शिक्षा विभाग और बच्चों का भविष्य पिस रहा है। राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की इस होड़ में बीएसए और शिक्षक के बीच की मूल समस्या कथित भ्रष्टाचार, महिला शिक्षिका की उपस्थिति/लापरवाही कहीं दब गई है। नेता अपने वोट बैंक की गणित को साधने में व्यस्त हैं, जबकि महमूदाबाद के नदवा स्कूल में बच्चों ने पढ़ाई छोड़कर ताला लगा रखा है और न्याय की गुहार लगाते हुए रैली निकाल रहे हैं। यह ‘बेल्ट कांड’ अब महज एक मारपीट का मामला नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की जर्जर हालत और प्रशासनिक अराजकता का जीवंत उदाहरण बन गया है, जिस पर हर नेता अपनी-अपनी तरह से सियासी ‘मिर्च-मसाला’ डाल रहा है।











