
यूपी में शिक्षक भर्ती पर संकट छाने वाला है। उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या में कटौती और मर्ज करने की तैयारी तेज हो गई है। करीब 5 हजार से अधिक स्कूल, जहां छात्र संख्या 50 से कम है, उन्हें एक साथ मिलाने का प्रस्ताव है। इससे स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के पद भी कम हो जाएंगे, जिससे बेरोजगारी और भर्ती की संभावना पर असर पड़ने का अनुमान है।
सरकार का तर्क है कि यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और संसाधनों का बेहतर उपयोग करने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है, लेकिन शिक्षक संघ इसके विरोध में हैं।
बेसिक शिक्षा के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आदेश जारी कर कहा है कि 50 से कम छात्र वाले परिषदीय स्कूलों का विलय किया जाए। स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने सभी जिलों के बीएसए से ऐसे स्कूलों का ब्यौरा मांगा है। इन स्कूलों को आसपास के स्कूल में विलय किया जाएगा, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि रास्ते में कोई नदी, नाला, हाईवे या रेलवे ट्रैक न हो ताकि सुरक्षा का ध्यान रखा जा सके।
सरकार का तर्क है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (एनसीएफ) के अनुरूप, स्कूलों के बीच सहयोग और संसाधनों का साझा उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए। इसके साथ ही, प्रदेश में हर जिले में एक मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट विद्यालय (कक्षा 1 से 8 तक) खोले जाने की योजना है, जो आधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे। इन स्कूलों में स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर रूम, पुस्तकालय, शौचालय, मिडडे मील, सीसीटीवी, वाई-फाई, ओपन जिम जैसी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी।
साथ ही, हर जिले में एक मुख्यमंत्री मॉडल कंपोजिट स्कूल (कक्षा 1 से 12 तक) भी स्थापित किया जाएगा, जिसकी लागत लगभग 30 करोड़ रुपये आएगी। इन स्कूलों में 1500 से अधिक छात्रों के लिए स्मार्ट क्लास, साइंस लैब, डिजिटल लाइब्रेरी, खेल मैदान और कौशल विकास केंद्र की व्यवस्था होगी।
विरोध कर रहे शिक्षक संघों का कहना है कि इससे बच्चों का नुकसान होगा। उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ की अध्यक्ष सुलोचना मौर्य का तर्क है कि गांव में बच्चों की दूरी और बढ़ जाएगी, जिससे उनका स्कूल आना मुश्किल हो जाएगा। गरीब माता-पिता वैन की सुविधा नहीं होने के कारण बच्चों को दूर स्कूल भेजने से डरेंगे, और इससे पढ़ाई छोड़ने या प्राइवेट स्कूल में जाने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
उत्तर प्रदेश प्राइमरी शिक्षक संघ के अध्यक्ष योगेश त्यागी ने कहा है कि यह कदम बाल संरक्षण अधिनियम और शिक्षा अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है। उनका भी तर्क है कि कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को मर्ज करने से शिक्षकों को नुकसान होगा, खासकर प्रधानाध्यापकों के पद की कटौती और प्रमोशन के अवसर खत्म होने का खतरा है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो 2017-18 में करीब 1.58 लाख स्कूल थे, जिनमें से 1 लाख 13 हजार स्कूल ही प्राइमरी थे। इन स्कूलों में से करीब 28 हजार स्कूलों को कम छात्र संख्या के कारण पड़ोसी स्कूल में मर्ज किया गया है, जिससे 28 हजार प्रधानाध्यापकों के पद भी समाप्त हो गए।
साथ ही, प्रदेश में बीस वर्षों से अधिक समय से प्रधानाध्यापकों के पदों पर पदोन्नति नहीं हुई है। महेंद्र कुमार ने बताया कि लगभग 70 प्रतिशत स्कूलों में कार्यवाहक हेड मास्टर हैं, जिन्हें कोई अतिरिक्त भत्ता नहीं दिया जाता।
यह पूरे प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था की जटिलताओं को उजागर करता है और शिक्षक संगठनों की चिंता को भी दर्शाता है कि शिक्षा का ढांचा कैसे प्रभावित हो सकता है।