शिक्षक से कैसे बने आंदोलनकारी? कभी पीएम मोदी को कहा था- धन्यवाद! जानिए सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी तक का सफर

Sonam Wangchuk Arrested : लेह में बुधवार को हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद शुक्रवार को शिक्षाविद और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को उनके गांव उलेटोक्पो से गिरफ्तार कर लिया गया है। लेह एपेक्स बॉडी के वकील हाजी मुस्तफ़ा ने बीबीसी से इस खबर की पुष्टि की है।

इंजीनियर, इनोवेटर, शिक्षाविद और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक बीते साल से अलग-अलग मौकों पर लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए आमरण अनशन और दिल्ली तक मार्च कर चुके हैं।

बीते साल मार्च में, उन्होंने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इसे छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए 21 दिनों तक भूख हड़ताल की थी। वहीं, अक्तूबर 2024 में, इसी मांग को लेकर उन्होंने लद्दाख से दिल्ली तक पैदल मार्च निकाला था, जिसे दिल्ली पुलिस ने सिंघु बॉर्डर से हिरासत में ले लिया था।

हाल ही में, 35 दिन की उनकी भूख हड़ताल के 15वें दिन, 24 सितंबर को लेह में हिंसक प्रदर्शन हुआ, जिसमें 4 लोगों की मौत हो गई और लगभग 50 लोग घायल हुए।

साल 2019 में, केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था। लद्दाख की अधिकांश जनता ने इस फैसले का स्वागत किया था, क्योंकि उनकी पुरानी मांग थी कि वह जम्मू-कश्मीर से अलग हो। सोनम वांगचुक ने भी इस फैसले का समर्थन किया था। उन्होंने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कार्यालय का धन्यवाद किया था, लिखते हुए, “शुक्रिया प्रधानमंत्री। लद्दाख के लंबे समय से देखे जा रहे ख्वाब को पूरा करने के लिए धन्यवाद।”

उन्होंने आगे कहा था, “पूरे 30 साल पहले अगस्त 1989 में, लद्दाखी नेताओं ने केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे के लिए आंदोलन शुरू किया था। इस लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में मदद करने वाले सभी लोगों का धन्यवाद।”

हालांकि, हिंसक प्रदर्शनों के बाद सोशल मीडिया पर उनकी आलोचनाएं हो रही हैं। कुछ लोग उनकी देशभक्ति पर सवाल उठा रहे हैं, तो कोई उन्हें ‘चीनी एजेंट’ कह रहा है। यहाँ तक कि, उनके इस साल फरवरी में पाकिस्तान जाने की खबर और बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस से गले मिलने वाली पुरानी तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं।

सोनम वांगचुक पहले भी चर्चा में आए हैं, ‘थ्री इडियट्स’ फ़िल्म के किरदार ‘रेंचो’ से प्रेरित होने का दावा किया गया था, जिसे उन्होंने एक इंटरव्यू में खारिज किया था।

सोनम वांगचुक को एक शिक्षाविद, इनोवेटर और पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बताया कि कैसे वे अपने दूर-दराज़ के गांव से निकल कर एक प्रसिद्ध शिक्षाविद बने।

उनका जन्म 1966 में लेह के उलेटोक्पो गांव में हुआ था। नौ साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए थे, जिसके कारण उन्होंने घर पर ही स्थानीय भाषा में पढ़ाई की।

उनके पिता सोनम वांग्याल एक राजनेता थे। नौ साल की उम्र में, सोनम को श्रीनगर के स्कूल में दाखिला मिला।

उन्होंने बताया कि स्कूल में अंग्रेज़ी की किताबें उनके लिए नई थीं, और शिक्षक उन्हें पीछे की सीट पर या बाहर खड़ा कर दिया करते थे। इससे तंग आकर, 12 साल की उम्र में वे दिल्ली भाग आए और वहां स्कूल में दाखिला लिया।

इसके बाद, उन्होंने इंजीनियरिंग की तैयारी की और श्रीनगर के राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान (एनआईटी) में दाखिला लिया।

उनका सपना था कि वे मैकेनिकल इंजीनियर बनें, लेकिन पिता उन्हें सिविल इंजीनियरिंग की सलाह देते थे। जब उन्होंने मैकेनिकल पढ़ने का फैसला किया, तो उनके पिता ने फीस देने से इनकार कर दिया।

उन्होंने खुद के खर्चे पर पढ़ाई का जिम्मा लिया और दो महीने में ही तीन साल की फीस जुटाई।

सोनम वांगचुक ने 1988 में ‘स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ़ लद्दाख’ (सेकमोल) की शुरुआत की।

सेकमोल ने सरकारी स्कूल सिस्टम में सुधार के लिए काम किया और पारंपरिक पढ़ाई के बजाय प्रकृति में रहकर प्रैक्टिकल शिक्षा पर जोर दिया।

1994 में, उन्होंने ‘ऑपरेशन न्यू हॉप’ का शुभारंभ किया, जो अब तक 700 शिक्षकों और 1000 ग्राम शिक्षा समितियों को प्रशिक्षित कर चुका है।

सोनम वांगचुक का मानना है कि उनकी शिक्षा व्यवस्था में किए गए प्रयासों ने लद्दाख में बदलाव लाया है।

वह बताते हैं कि, 1996 तक, केवल 5% दसवीं क्लास के छात्र पास होते थे, जो अब बढ़कर 75% हो गया है।

उन्होंने अपने मिशन को विश्वविद्यालय स्तर पर ले जाने का प्रयास किया, और लगभग सात साल पहले ‘हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ़ अल्टर्नेटिव्स लद्दाख’ (एचआईएएल) की स्थापना की।

उनका कहना है कि सेकमोल में किए गए शोध को हयाल में आगे बढ़ाया गया है, जिसमें सौर ऊर्जा से कमरों को गर्म करने का आविष्कार शामिल है।

यह आविष्कार सेना के कैंपों के लिए चीन सीमा पर भी इस्तेमाल हुआ और अफगानिस्तान में भी इसका प्रयोग किया गया।

सोनम वांगचुक को 2018 में शिक्षा क्षेत्र में उनके योगदान के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

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