
New Delhi : सहारा इंडिया समूह की कंपनियों के हजारों कर्मचारियों का लंबे समय से लंबित वेतन भुगतान का मामला आज सुप्रीम कोर्ट में गूंजेगा। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच (जिसमें जस्टिस एस.यू. खान और जस्टिस ए.एस. ओक शामिल हैं) सोमवार को कर्मचारियों की अंतरिम याचिकाओं पर सुनवाई करेगी, जहां वे कई महीनों से अटकी सैलरी और एरियर्स की मांग कर रहे हैं। यह सुनवाई सहारा इंडिया कमर्शियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SICCL) की मुख्य याचिका के साथ जुड़ी हुई है, जिसमें समूह ने अपनी 88 प्रमुख संपत्तियों को अदाणी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को बेचने की अनुमति मांगी है एक कदम जो इन संपत्तियों से उत्पन्न फंड से निवेशकों के पैसे लौटाने और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने का रास्ता खोल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ही इस मामले को 17 नवंबर के लिए सूचीबद्ध किया था, और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर वित्त व सहकारिता मंत्रालयों को पार्टी बनाते हुए जवाब मांगे हैं।
सहारा-SEBI विवाद की पृष्ठभूमि: 2012 से चला आ रहा लंबा कानूनी युद्ध
यह मामला 2012 से चल रहा है, जब सेबी ने सहारा समूह की दो कंपनियों SICCL और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन पर वैकल्पिक निवेश योजना (AIS) के तहत 2.4 करोड़ निवेशकों से अवैध रूप से 25,000 करोड़ रुपये जुटाने का आरोप लगाया। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में ही इन योजनाओं को बंद करने और पैसे लौटाने का आदेश दिया, लेकिन सहारा ने इसे चुनौती दी। 2014 में कोर्ट ने 15,000 करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया, जो अब 42,000 करोड़ से अधिक हो चुका है (ब्याज सहित)।
सहारा समूह पर प्रतिबंध के कारण इसकी कंपनियां जिनमें रियल एस्टेट, इंश्योरेंस, मीडिया और फाइनेंशियल सर्विसेज शामिल हैं आर्थिक संकट में हैं। कर्मचारियों का कहना है कि जुलाई 2024 से सैलरी नहीं मिली, जिससे हजारों परिवार आर्थिक तंगी झेल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एक समिति गठित की थी जो फंड्स के वितरण की निगरानी कर रही है, लेकिन संपत्ति बिक्री पर रोक ने प्रक्रिया को लटका दिया है।
आज की सुनवाई का एजेंडा: वेतन भुगतान और संपत्ति बिक्री पर फोकस
SICCL की याचिका 14 अक्टूबर को दाखिल हुई थी, जिसमें 88 संपत्तियों जिनमें मुंबई, दिल्ली, लखनऊ और अन्य शहरों की प्रीमियम प्रॉपर्टीज शामिल हैं को अदाणी ग्रुप को बेचने की मंजूरी मांगी गई। सहारा का दावा है कि इससे 20,000 करोड़ रुपये जुटेंगे, जो निवेशकों को रिफंड और कर्मचारियों के वेतन के लिए इस्तेमाल होंगे। कोर्ट ने सेंट्रल गवर्नमेंट, सेबी और अन्य हितधारकों से जवाब मांगा था।
शुक्रवार (15 नवंबर) को वकीलों ने चीफ जस्टिस से आग्रह किया कि कर्मचारियों की अंतरिम याचिकाओं को भी आज ही सुनें, क्योंकि कई कर्मचारी बिना सैलरी के गुजारा कर रहे हैं। कोर्ट ने सहमति जताई और एमिकस क्यूरी (न्यायमित्र) वरिष्ठ वकील शेखर नफड़े को इन 88 संपत्तियों का विस्तृत ब्योरा जुटाने का निर्देश दिया। साथ ही, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की सलाह पर वित्त मंत्रालय और सहकारिता मंत्रालय को पार्टी बनाया गया, जिन्हें आज तक जवाब दाखिल करने को कहा गया है। कोर्ट ने एमिकस को कर्मचारियों के वेतन और एरियर्स की जांच करने को भी कहा, ताकि सुनवाई के दौरान इसका समाधान हो सके।
कर्मचारियों की दुविधा: ‘महीनों से बिना सैलरी, परिवार पर बोझ’
सहारा ग्रुप में करीब 1 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें से कई रियल एस्टेट और फाइनेंशियल सेक्टर से जुड़े हैं। याचिकाओं में कहा गया है कि बकाया सैलरी 6-12 महीनों की है, जो बेसिक पे, DA, PF और बोनस सहित लाखों रुपये प्रति व्यक्ति है। एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमने समूह की वफादारी निभाई, लेकिन अब कर्ज लेकर गुजारा हो रहा है। संपत्ति बिक्री से ही राहत मिलेगी।” ट्रेड यूनियंस ने भी कोर्ट से तत्काल अंतरिम राहत की मांग की है, जिसमें मासिक वेतन जारी रखने का आदेश शामिल है।
संभावित परिणाम: अदाणी डील पर हरी झंडी से राहत की उम्मीद
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोर्ट संपत्ति बिक्री को मंजूरी देता है, तो यह सहारा के लिए टर्निंग पॉइंट साबित होगा। अदाणी ग्रुप ने पहले ही LOI (लेटर ऑफ इंटेंट) जारी किया है, और डील से उत्पन्न फंड्स SEBI की निगरानी में वितरित होंगे। हालांकि, सेबी ने चेतावनी दी है कि संपत्तियों का मूल्यांकन पारदर्शी होना चाहिए। कोर्ट के फैसले से न सिर्फ कर्मचारियों को राहत मिलेगी, बल्कि 2.4 करोड़ निवेशकों का लंबा इंतजार भी खत्म हो सकता है।
यह मामला कॉर्पोरेट गवर्नेंस और रेगुलेटरी फ्रेमवर्क पर सवाल खड़े करता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर सहारा जैसे अन्य ग्रुप्स पर भी पड़ेगा। ताजा अपडेट के लिए सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट या लाइव कवरेज फॉलो करें।















