
नई दिल्ली। विधानसभा से पारित विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने पर उच्चतम न्यायालय की पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए बिल पर निर्णय के लिए समय-सीमा निश्चित नहीं की जा सकती।
संविधान पीठ ने ये भी कहा कि उच्चतम न्यायालय
अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्ति का इस्तेमाल कर राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों को पारित घोषित नहीं कर सकता है। राज्यपाल किसी बिल को विचार के लिए अनिश्चित समय तक अपने पास नहीं रोक सकते। संविधान पीठ ने कहा अगर राज्य विधानसभा की ओर से पारित विधेयक पर फैसला लेने में राज्यपाल काफी देर करते हैं तो उच्चतम न्यायालय
हस्तक्षेप कर सकता है, राज्यपाल को दिशा-निर्देश जारी कर सकता है। संविधान पीठ ने कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति दे सकते हैं या उसे रोक कर विधानसभा को लौटा सकते हैं या उसे राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं।
संविधान बेंच ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों के समक्ष विधेयकों को प्रस्तुत करने पर संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विकल्पों पर भेजे गए रेफरेंस पर 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ ने इस मामले पर कुल 10 दिन सुनवाई की थी। संविधान पीठ ने 22 जुलाई को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। संविधान पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे।
राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत उच्चतम न्यायालय से इस मसले पर 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी थी। राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी या संवैधानिक मसले पर उच्चतम न्यायालय की सलाह लेने का अधिकार है।
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