
Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के एक अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) और एक सत्र न्यायाधीश के जमानत आदेशों में खामियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें दिल्ली ज्यूडिशियल अकादमी में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने का आदेश दिया है। यह निर्णय तब लिया गया, जब एक आदतन अपराधी दंपती को निचली अदालतों और दिल्ली हाई कोर्ट से मिल चुकी जमानत को सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एस वी एन भट्टी की बेंच ने स्पष्ट किया कि यह कदम न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करने के उद्देश्य से है, न कि किसी स्वतंत्रता के अधिकार को कमजोर करने के लिए। आरोपी दंपती पर छह आपराधिक मामलों में शामिल होने का आरोप है, जिनमें उन्होंने 1.9 करोड़ रुपये की ठगी की। यह ठगी जमीन बेचने के नाम पर की गई थी, जो पहले ही बिक चुकी थी, और इसके बाद भी पीड़ित से पैसे वापस नहीं किए गए।
2018 में, इस दंपती ने दिल्ली हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत प्राप्त की थी, जिसमें उन्होंने पैसे लौटाने का वादा किया था। हाई कोर्ट ने 2023 में उनकी जमानत रद्द कर दी। इसके बावजूद, चार्जशीट दाखिल होने के बाद, दंपती ने निचली अदालत से नियमित जमानत हासिल कर ली, जिसे उच्च न्यायालयों ने बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर भी आपत्ति जताई, क्योंकि हाई कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ सख्त टिप्पणियों के बावजूद उन्हें जमानत दी। कोर्ट ने कहा कि एसीएमएम ने हाई कोर्ट के 1 फरवरी, 2023 के आदेश को अनदेखा कर, यह तर्क दिया कि जांच जारी है और हिरासत की जरूरत नहीं है, जो कि न्यायिक प्रक्रिया का अनावश्यक सरलीकरण है। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि यह आरोपियों के आचरण और हाई कोर्ट के फैसलों को नजरअंदाज करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इन आदेशों की गंभीरता को देखते हुए, दोनों न्यायिक अधिकारियों को कम से कम सात दिनों का विशेष प्रशिक्षण लेने का आदेश दिया है। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उच्च न्यायालयों के आदेशों का उचित सम्मान किया जाए और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार हो। दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से कहा गया है कि वह दिल्ली ज्यूडिशियल अकादमी में इस प्रशिक्षण का आयोजन करें।
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