‘एक व्यक्ति दूसरे का हाथ खींचे, इस प्रथा को बंद करो’, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के माथेरान पर सुनाया बड़ा फैसला, कहा- ‘यह अमानवीय है’

Maharashta Matheran : सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को माथेरान में छह महीने के भीतर इस अमानवीय प्रथा को बंद करने और इसकी जगह ई-रिक्शा चलाए जाने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश माथेरान में हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा के इस्तेमाल पर निराशा जताते दिया।

बता दें कि महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में एक हिल स्टेशन है- माथेरान। ये इलाका ‘ईको सेंसिटिव जोन’ माना जाता है, यानी यहां पर्यावरण को बचाने के लिए गाड़ियों पर रोक है। इसलिए यहां न कोई कार,चलती है न बाइक। इसी वजह से आज भी यहां पर्यटकों को हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा में बिठाकर ले जाया जाता है। यानी एक इंसान, दूसरे इंसान को खींचकर पहाड़ी रास्तों पर ले जाता है। गौर करने वाली बात है, कि ये तस्वीर किसी पुराने जमाने की नहीं है, बल्कि आज की है, 2025 की और यही बात सुप्रीम कोर्ट को चुभ गई।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जब ये मामला सामने आया, तो देश के मुख्य न्यायाधीश बी.आर.गवई और दो अन्य जजों की बेंच ने नाराज़गी जताई। कोर्ट ने कहा, “ये बहुत ही अफसोसनाक है कि आज भी हमारे देश में एक इंसान को दूसरे इंसान को हाथ से खींचना पड़ रहा है। जब हमारा संविधान हर नागरिक को सम्मान और बराबरी का अधिकार देता है, तब ऐसा काम कैसे चल सकता है?”

जजों ने सवाल किया कि क्या हम वाकई संविधान में दिए गए सामाजिक और आर्थिक न्याय को समझते हैं? फिर खुद ही जवाब दिया- “शायद नहीं।”

45 साल पहले SC ने दिया था फैसला

कोर्ट ने इस बात की भी याद दिलाई कि 45 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के साइकिल रिक्शा चालकों के लिए एक बड़ा फैसला दिया था। उस समय कोर्ट ने कहा था कि रिक्शा चलाने वालों को बेहतर जिंदगी मिलनी चाहिए और उनका शोषण नहीं होना चाहिए।लेकिन इतने सालों बाद भी माथेरान जैसे इलाकों में हालात नहीं बदले हैं। वहां आज भी लोग रिक्शा खींच रहे हैं, ठीक वैसे जैसे गुलामी के दौर में होता था।

कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से साफ-साफ कहा कि अब और देर नहीं की जा सकती। सरकार को 6 महीने के अंदर एक योजना बनानी होगी, जिसमें हाथ से रिक्शा खींचने वालों को ई-रिक्शा देने की व्यवस्था हो। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार चाहे तो इन ई-रिक्शा को खुद खरीदकर उन लोगों को किराए पर दे सकती है। इससे उन लोगों की रोजी-रोटी भी चलेगी और उन्हें सम्मान से जीने का मौका भी मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को गुजरात की एक योजना का उदाहरण भी दिया। गुजरात में सरदार सरोवर डैम के पास “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” के आसपास सरकार ने ई-रिक्शा योजना शुरू की है। इसमें वहां की आदिवासी महिलाओं को ई-रिक्शा दिया गया है, जिससे वो खुद चलाकर पैसे कमा रही हैं। इससे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का मौका मिला है और उनका सम्मान भी बढ़ा है। कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र को भी ऐसा ही करना चाहिए।

बात सिर्फ रिक्शा की नहीं इंसानियत की है : SC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये सिर्फ एक रिक्शा चलाने वाले की बात नहीं है, बल्कि पूरे समाज की सोच की बात है। अगर आज भी हम किसी को इस तरह काम करने के लिए मजबूर करते हैं, तो हम संविधान की उस आत्मा के साथ धोखा कर रहे हैं, जो हर किसी को बराबरी और सम्मान का अधिकार देती है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “ऐसी अमानवीय प्रथाएं अब खत्म होनी चाहिए. जब हम कहते हैं ‘हम भारत के लोग’, तो इसमें हर नागरिक शामिल होता है, चाहे वो किसी भी तबके से हो।”

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