अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 24 अगस्त 2023 को एक कार्यकारी आदेश पर साइन किया, जिसका उद्देश्य फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन करने या उसका हिस्सा बनने वाले छात्रों और अन्य प्रवासियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना है। इस आदेश के अनुसार, जो लोग इजरायल के खिलाफ या फिलिस्तीन के पक्ष में प्रदर्शन करेंगे, उनका वीजा रद्द कर उन्हें देश से बाहर भेज दिया जाएगा। यह आदेश खासकर कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में पढ़ रहे विदेशियों पर लागू होगा।
यह आदेश इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के अमेरिका दौरे से कुछ दिन पहले जारी किया गया था। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह आदेश यहूदी विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने और आतंकी धमकियों से बचने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। खासकर, 7 अक्टूबर 2023 को हुए हमास के हमले के बाद, अमेरिका में यहूदी समुदाय के खिलाफ हिंसा और आगजनी की घटनाओं में वृद्धि हुई है। इस संदर्भ में, ट्रंप प्रशासन ने निर्णय लिया है कि इस तरह की घटनाओं पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
फैक्ट शीट में क्या बताया गया है?
ट्रंप प्रशासन ने इस आदेश से संबंधित एक फैक्ट शीट जारी की, जिसमें यह बताया गया कि अमेरिका में यहूदी विरोधी हिंसा को तत्काल रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे। ट्रंप ने कहा कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक स्थानों पर जो भी जिहादी समर्थक प्रदर्शन में शामिल होंगे, उन्हें चेतावनी दी जाती है कि उन्हें 2025 तक गिरफ्तार कर निर्वासित किया जाएगा। यह आदेश अमेरिका के आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी रणनीतियों को आगे बढ़ाने के दृष्टिकोण से लिया गया है।
अमेरिकी अधिकार समूहों की प्रतिक्रिया
हालांकि, ट्रंप प्रशासन का यह कदम विवादों में घिर गया है। कई अमेरिकी अधिकार समूहों और कानूनी विशेषज्ञों ने इसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है। अमेरिकी संविधान का पहला संशोधन (First Amendment) सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, जिसमें विदेशी छात्रों को भी सुरक्षा दी जाती है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के नाइट फर्स्ट अमेंडमेंट इंस्टीट्यूट के सीनियर स्टाफ अटॉर्नी कैरी डेसेल ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “प्रवासियों को उनकी राजनीतिक विचारधारा के आधार पर निर्वासित करना असंवैधानिक होगा।” उन्होंने यह भी कहा कि यदि यह आदेश लागू होता है, तो यह पूरी तरह से अमेरिकी संविधान के खिलाफ होगा, जो किसी भी नागरिक को उनके राजनीतिक विचारों के आधार पर दंडित करने की अनुमति नहीं देता।
कॉलेज कैंपस में विरोध प्रदर्शन और उसके बाद की स्थिति
अप्रैल और मई 2024 में अमेरिकी विश्वविद्यालयों में गाजा युद्ध के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन हुए थे। इन प्रदर्शनों में छात्रों ने फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज उठाई थी। इन प्रदर्शनों के बाद, कुछ विश्वविद्यालयों में हिंसक झड़पें भी हुईं, जिसके कारण पुलिस को कैंपस में तैनात करना पड़ा। कोलंबिया और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालयों में यह विरोध प्रदर्शन सबसे अधिक प्रभावी थे, जहां पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष मिनोचे शफीक ने विरोध प्रदर्शनों से निपटने के तरीके पर सवाल उठाए थे। उन्होंने अपनी आलोचना सार्वजनिक रूप से की और अगस्त 2024 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह घटनाक्रम ट्रंप प्रशासन के फैसले के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दिखाता है कि अमेरिका में विश्वविद्यालयों में फिलिस्तीन के पक्ष में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों के बाद सत्ता और प्रशासन के बीच असहमति बढ़ती जा रही है।
ट्रंप का चुनावी वादा और आगामी योजनाएं
पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 2024 के चुनावी वादों में भी इस विषय को उठाया था। उनका कहना है कि फिलिस्तीन के पक्ष में प्रदर्शन करने वालों को कोई भी सुरक्षा या सहानुभूति नहीं मिलनी चाहिए। उनका मानना है कि अमेरिका में कोई भी प्रदर्शन या आंदोलन जो आतंकवादी समूहों के समर्थन में हो, उसे पूरी तरह से दमन किया जाना चाहिए। यह कदम 2025 में लागू होने की संभावना है, जब ट्रंप का प्रशासन इसे सख्ती से लागू करेगा।
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का अमेरिका दौरा
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू 4 फरवरी 2024 को अमेरिका दौरे पर जाएंगे। यह ट्रंप प्रशासन के लिए महत्वपूर्ण समय है, क्योंकि वे अपने दूसरे कार्यकाल में नेतन्याहू से मुलाकात करने जा रहे हैं। नेतन्याहू का यह दौरा ट्रंप के इजरायल के साथ बढ़ते रिश्तों को और मजबूत करने के लिए अहम होगा।
ट्रंप प्रशासन का यह आदेश अमेरिका में फिलिस्तीन के पक्ष में प्रदर्शन करने वाले प्रवासियों के खिलाफ एक कठोर कदम है, लेकिन इस पर संवैधानिक और कानूनी सवाल उठाए जा रहे हैं। इससे न केवल विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों की सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा होता है, बल्कि यह अमेरिका के आंतरिक राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है। इस आदेश का असर आने वाले महीनों में अमेरिकी राजनीति और वैश्विक संबंधों पर देखने को मिल सकता है।