कहीं आधा हिस्सा तो कहीं पूरी पहाड़ी गायब…अरावली के साथ अब तक क्या-क्या हुआ?

नई दिल्ली : अरावली पहाड़ियों की कहानी अरबों साल पुरानी है। जब धरती पर जीवन की पहली सांसें ली जा रही थीं, तब भी अरावली अपनी शांत मौजूदगी के साथ खड़ी थी। इसने न केवल बढ़ते रेगिस्तान को रोका बल्कि उत्तर भारत को पानी, हरियाली और जीवन की खुशहाली दी। अगर धरती की कहानी को अंतरिक्ष से देखा जाए, तो अरबों साल पहले भी अरावली की पर्वतमाला एक हरी रेखा के रूप में नजर आती थी। यह सिर्फ पहाड़ नहीं, बल्कि समय का गवाह है। इसने महाद्वीपों की हर हलचल देखी, नई सभ्यताओं को जन्म दिया और रेगिस्तान को रोककर उत्तर भारत में जीवन का संचार किया।

लेकिन आज, उसी अरावली के अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इसके पीछे है इंसानी लालच, नीति की कमजोरियाँ और कॉरपोरेट हित। सवाल यह है कि क्या हम इस जीवनरेखा को बचा पाएंगे, या इतिहास इसे एक “डेथ वारंट” के रूप में दर्ज करेगा?

पर्यावरण एक्टिविस्ट प्रणय लाल ने 2019 में अपने लेख “Aravallis: A Mountain Lost” में लिखा था कि “अरावली अब नेताओं और कंपनियों की संकीर्ण सोच के सामने जिंदा रहने के लिए जूझ रही है।” छह साल बाद, 2025 में यह चेतावनी एक बार फिर हकीकत बनकर सामने आई है।

क्यों फिर चर्चा में है अरावली?
20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने देशभर में चिंता की लहर दौड़ा दी। अदालत ने अरावली पहाड़ियों की नई और बेहद संकीर्ण परिभाषा स्वीकार कर ली। अब केवल वही पहाड़ “अरावली” माने जाएंगे, जो आसपास के इलाके से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाले हों। सरकार का तर्क था कि इससे प्रशासनिक स्पष्टता आएगी और टिकाऊ विकास योजनाएं आसान होंगी।

लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि इस फैसले से अरावली के करीब 90% हिस्से को कानूनी सुरक्षा से बाहर कर दिया गया। यानी जो निचली पहाड़ियां भूजल रिचार्ज, जैव विविधता और धूल-तूफानों को रोकने में अहम भूमिका निभाती हैं, अब वे खनन और रियल एस्टेट के लिए खुल सकती हैं। GIS मैपिंग पहले ही 3,000 से ज्यादा क्षेत्रों में खनन से हुए नुकसान को दिखा रही है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर निचली पहाड़ियों पर खनन शुरू हुआ, तो न केवल ग्राउंडवाटर स्तर गिरेगा, बल्कि राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली-NCR के एक्विफर भी दूषित होंगे। इसके अलावा, मानव–वन्यजीव संघर्ष बढ़ेगा और थार रेगिस्तान का फैलाव तेज होगा।

अरावली क्यों है उत्तर भारत की जीवनरेखा?
अरावली केवल पहाड़ नहीं हैं। यह चंबल, साबरमती और लूणी जैसी नदियों का स्रोत है। यह थार रेगिस्तान को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकता है और दिल्ली-NCR के लिए हरे फेफड़ों की तरह काम करता है। यह 650 किलोमीटर लंबी, लगभग 2 अरब साल पुरानी पर्वत श्रृंखला है। पर्यावरण कार्यकर्ता नीलम आहूजा, जो पिछले 12 सालों से People for Aravallis के माध्यम से संघर्ष कर रही हैं, का कहना है कि अगर अरावली नहीं बचेगी, तो उत्तर-पश्चिम भारत में रेगिस्तान फैल जाएगा, जिसका असर पानी, भोजन और लाखों लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा।

फैसले पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?
यह पहला मामला नहीं है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि 31 अरावली पहाड़ खनन से गायब हो चुके हैं। इसके बावजूद अदालत ने 2010 के पुराने मानक को अपनाया, जिसे पर्यावरणविद “विनाशकारी” मानते हैं। विवाद तब और बढ़ा जब केंद्र सरकार के हलफनामे में चित्तौड़गढ़ और सवाई माधोपुर जैसे संवेदनशील इलाके शामिल ही नहीं थे।

ज़मीन पर हकीकत कितनी भयावह है?
हरियाणा के भिवानी और चरखी दादरी में कई पहाड़ पूरी तरह मिट चुके हैं। महेंद्रगढ़ में भूजल स्तर 1,500–2,000 फीट नीचे चला गया है। अवैध खनन से उड़ती धूल ने सिलिकोसिस, त्वचा रोग और फेफड़ों की बीमारियों को बढ़ाया है। बच्चों की जान पर भी खतरा है। ब्लास्टिंग और उड़ते पत्थर रोज़मर्रा का खतरा बन गए हैं।

राजनीति और जनआंदोलन
इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर #SaveAravalli और #SaveAravallisSaveAQI ट्रेंड कर रहे हैं। जयपुर से दिल्ली तक प्रदर्शन हुए, और ग्रामीण समुदायों ने प्रतीकात्मक उपवास किया। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर खनन लॉबी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया। कई विशेषज्ञ सुप्रीम कोर्ट से फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं।

आखिर आगे रास्ता क्या?
नीलम आहूजा साफ कहती हैं कि अरावली को 100 मीटर के पैमाने से नहीं नापा जा सकता। यह सिर्फ पहाड़ नहीं, हमारी लाइफलाइन है। पूरे अरावली क्षेत्र को क्रिटिकल इकोलॉजिकल ज़ोन घोषित करना होगा। सवाल अब केवल कानून का नहीं है, बल्कि यह तय करेगा कि उत्तर भारत भविष्य में हरा रहेगा या रेगिस्तान में बदल जाएगा। अगर अरावली बचेगी, तो पानी, हवा और जीवन बचेगा। वरना यह फैसला इतिहास में “डेथ वारंट” के रूप में दर्ज होगा, जिसने सब कुछ बदल दिया।

ये भी पढ़े – देहरादून में छात्र एंजेल की हत्या पर नया मोड़, आरोपी का सामने आया नेपाल कनेक्शन…पिता ने पोस्टमार्टम पर उठाए सवाल

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें