स्मॉल और मिड-कैप : सिर्फ इंडेक्स से नहीं, समझ के साथ निवेश का वक्त

देविप्रसाद नायर, हेड ऑफ बिज़नेस – हेलिओस इंडिया

नई दिल्ली. अगर आप स्मॉल और मिड-कैप में निवेश करते हैं, तो केवल नियमों पर निर्भर रहना काफी नहीं होता। इस वर्ग में रफ्तार तेज़ है, बदलाव अचानक आते हैं और वैल्युएशन पलटते देर नहीं लगती। ऐसे माहौल में स्थिर और समझदार निवेश वही साबित होता है, जहां फैसले सिर्फ कीमतों और इंडेक्स वेट के आधार पर नहीं, बल्कि व्यवसाय की बुनियादी ताकत, भविष्य की कमाई की संभावना, बाज़ार धारणा और तरलता चक्र—इन सभी को साथ रखकर लिए जाएँ। यहीं सक्रिय प्रबंधन की भूमिका निर्णायक बन जाती है।

इंडेक्स और उनके नियम अक्सर बदलते नहीं। मुझे 2019–2020 के आसपास की एक बातचीत याद है जब मैंने एक इंडेक्स प्रदाता से शरिया इंडेक्स को लेकर चर्चा की थी। सवाल यह था कि एक प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनी, जिसका मूल व्यवसाय पूरी तरह शरिया अनुरूप था, फिर भी इंडेक्स में क्यों शामिल नहीं थी?

कारण वित्तीय स्क्रीनिंग नियमों में छिपा था। उद्योग में सुस्ती के कारण कंपनी की परिचालन आय कम हो गई थी, जबकि बैलेंस शीट पर जमा अतिरिक्त नकद पर मिलने वाला ब्याज बढ़ गया था। कुल आय में ब्याज का अनुपात शरिया नियमों के तय मानक से ऊपर चला गया और कंपनी इंडेक्स से बाहर हो गई।

लेकिन निवेश टीम के नजरिए से यह संकेत था कि कंपनी अपने चक्र के निचले स्तर पर है और रिकवरी की ओर बढ़ रही है। जैसे ही कारोबार सामान्य होता, आय का संतुलन खुद ठीक हो जाता। जबकि इंडेक्स नियम “उस समय की तस्वीर” को ही सच मानते हैं, वे भविष्य की दिशा, कारोबार के चक्र या सुधार की संभावना नहीं देखते — और यहीं सक्रिय व निष्क्रिय प्रबंधन का सबसे बड़ा फर्क नज़र आता है।

यही बात छोटे और मध्यम आकार की कंपनियों पर भी लागू होती है। इस क्षेत्र में जबरदस्त विकास क्षमता है, लेकिन साथ ही तेज उतार–चढ़ाव, सीमित तरलता और कुछ ही हफ्तों में बदल जाने वाली भावनात्मक वैल्युएशन भी है। ऐसे में बहुत कठोर, नियम-आधारित ढांचा कई बार जोखिम घटाने के बजाय बढ़ा देता है।

ज्यादातर स्मॉल- और मिड-कैप इंडेक्स फंड मार्केट-कैप आधारित होते हैं। जैसे-जैसे कीमतें बढ़ती हैं, उनका वज़न भी बढ़ता रहता है और पैसिव फंड्स मजबूरी में और खरीदते जाते हैं — चाहे वैल्युएशन आरामदेह हो या नहीं। जब बाज़ार पलटता है, ये फंड्स नियमों से बंधे रहते हैं, घटती कीमतों के बावजूद निवेश कम नहीं कर पाते। नतीजा — महंगी खरीद और गिरते समय मजबूरन बने रहना।

यहीं सक्रिय प्रबंधन अपनी अहमियत साबित करता है। सक्रिय निवेशक यह आंकते हैं कि किसी शेयर में उछाल उसके वास्तविक व्यवसाय, भविष्य की कमाई और स्थिरता पर टिके अवसरों के कारण है या सिर्फ भावना के कारण। इसी के आधार पर वे ऊंचे वैल्युएशन पर जोखिम घटा सकते हैं और डर के दौर में अवसर बढ़ा सकते हैं। नियमों के पीछे चलने के बजाय हालात के हिसाब से कदम बदलना बाज़ार अनुशासन बनाए रखता है।

स्मॉल-कैप सिर्फ अस्थिर नहीं, बल्कि विस्फोटक विकास क्षमता का भंडार है, जिसे बारीक नज़र चाहिए। आंकड़े बताते हैं कि ₹5,000 करोड़ से ऊपर पहुंचने वाली कंपनियों की संख्या 2017 के 112 से बढ़कर 2025 में 492 हो गई है। सबसे बड़ी स्मॉल-कैप कंपनी का मार्केट-कैप 2017 से करीब 3.54 गुना बढ़ा है — बड़ी और मिड-कैप कंपनियों से तेज।*

(स्रोत: AMFI और आंतरिक अनुसंधान। यह केवल उदाहरणात्मक उद्देश्य के लिए है। | 2017 का डेटा दिसंबर 2017 तक और 2025 का डेटा जून 2025 तक का है। | मार्केट कैप डेटा सभी एक्सचेंजों का औसत (₹ करोड़ में) है। | वर्गीकरण SEBI के 6 अक्टूबर 2017 के परिपत्र के अनुसार। पिछले प्रदर्शन भविष्य के लिए न तो संकेत है, न ही गारंटी। भविष्य के रिटर्न अलग हो सकते हैं।)

और यह सिर्फ आकार की कहानी नहीं है। स्मॉल-कैप कंपनियों ने 3 साल से अधिक के क्षितिज में 10x, 15x, यहां तक कि 25x तक मूल्य-वृद्धि दी है — जबकि बड़े शेयर आमतौर पर 3x–5x तक ही रह जाते हैं।*

(स्रोत: आंतरिक अनुसंधान। यह केवल उदाहरणात्मक उद्देश्य के लिए है। ग्रोथ मल्टीप्लायर दिसंबर 2017 से जून 2025 के बीच कंपनियों के मार्केट कैप में हुई वृद्धि को दर्शाता है। स्मॉल-कैप कंपनियों के आंकड़ों को Nifty 500 के ब्रह्मांड से पुन:संतुलित कर 100 कंपनियों के तुलनीय ब्रह्मांड में परिवर्तित किया गया है। उदाहरण के तौर पर, 15x बढ़ने वाली 4 कंपनियाँ पुन:समायोजन के बाद 2 कंपनियों के बराबर (4100/250) हो जाती हैं। पिछले प्रदर्शन भविष्य में दोहराया जाएगा, यह आवश्यक नहीं; भविष्य के रिटर्न अलग हो सकते हैं और इनकी कोई गारंटी नहीं है।)

साथ ही, स्मॉल-कैप सेगमेंट उन क्षेत्रों का मजबूत घर है जिनकी Nifty 50 में सीमित उपस्थिति है — जैसे हेल्थकेयर, केमिकल्स, कैपिटल गुड्स, कंज्यूमर सर्विसेज आदि। यह विविधता ही स्मॉल-कैप्स की असाधारण रफ्तार का बड़ा कारण है।

सेक्टरप्रतिनिधित्व

सेक्टरनिफ्टी 50निफ्टीस्मॉलकैप 250
कैपिटलगुड्स133
केमिकल्स015
कंज़्यूमरड्यूरेबल्स111
हेल्थकेयर236
कंज़्यूमरसर्विसेज111
एफएमसीजी312

स्रोत: NSE, आंतरिकअनुसंधान | डेटा 31 अक्टूबर 2025 तकका

लेकिन यह सफर सीधा नहीं होता। बीच-बीच में गिरावट, दबाव और कमज़ोरी के चरण भी आते हैं। इतिहास बताता है कि गहरी गिरावट के बाद मजबूत उछाल आता है। उदाहरण के तौर पर MSCI India में लगभग -27% की गिरावट पहले भी बड़े सुधारों का संकेत रही है। ऐसे मोड़ पहचानना और सही समय पर पोजिशनिंग करना — यही सक्रिय प्रबंधन की असली ताकत है।(स्रोत: MSCI India Index Factsheet एवं Jefferies India | डेटा 28 नवंबर 2025 तक का)

इससे सीख यही है कि पैसिव फंड्स ने निवेश की पहुंच बढ़ाई, लागत घटाई और पारदर्शिता लाई — और यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। लेकिन जब इन्हें बिना सोच–समझे स्मॉल-, मिड-कैप या थीमेटिक जैसे अस्थिर क्षेत्रों में लागू कर दिया जाता है, तो उनकी कठोरता नुकसानदेह बन सकती है।

बेहतर पोर्टफोलियो वही है जिसमें कम लागत वाले पैसिव फंड्स मजबूत आधार बनें और जटिल हिस्सों में इंसानी समझ और सक्रिय निर्णय काम करें। खासकर उन क्षेत्रों में जहां मूलभूत ताकत, तरलता चक्र और भावनात्मक व्यवहार निर्णायक भूमिका निभाते हैं — यानी मिड-, स्मॉल-, माइक्रो-कैप और थीमेटिक निवेश।

म्यूचुअल फंड निवेश बाज़ार जोखिमों के अधीन हैं। सभी योजना-संबंधी दस्तावेज़ ध्यानपूर्वक पढ़ें।

     देविप्रसाद नायर, हेड ऑफ बिज़नेस – हेलिओस इंडिया

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