
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं के घर पर 34लाख स्मार्ट मीटर लगाये गये। इन स्मार्ट मीटरों में कई तो खराब हुए। खराब होने के नाम पर हजारों की संख्या में स्मार्ट मीटर उतार लिये गये लेकिन उतारे गये स्मार्ट मीटरों की रीडिंग और स्मार्ट मीटर विभाग में जमा नहीं किये गये जिससे विभाग को हजारो करोड़ की धनराशि का चूना लगाने का मामला उजागर हुआ है।
उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में सही बिल और कई अन्य सुविधाओं के नाम पर स्मार्ट मीटर बिजली उपभोक्ताओं के घरों में लगाये गये। स्मार्ट मीटरों के लगने के बाद इसकी तेज रीडिंग चर्चा का विषय बना लेकिन बीच-बीच में स्मार्ट मीटर के खराब होने की खबरें भी तेजी से आती रहीं। विभाग ने खराब हो रहे स्मार्ट मीटरों को बदलने का आदेश दिया। प्रदेश में लग चुके 34 लाख स्मार्ट मीटरों के आने के बाद लगभग छह लाख से अधिक स्मार्ट मीटर खराब होने के नाम पर बदल दिये गये। इन खराब हो चुके स्मार्ट मीटरों को बदला तो गया लेकिन इनकी रीडिंग न तो विभाग के पास आयी और न ही विभाग को ये छह लाख से अधिक स्मार्ट मीटर जमा किये गये। अब जब कि सीतापुर,गोण्डा जैसे जिलों में स्मार्ट मीटर को लेकर एफआईआर दर्ज करवायी गयी है तो स्मार्ट मीटर के वापस आने की संख्या को लेकर विभाग में बड़ा घोटाला सामने आया है।
इसमें स्मार्ट मीटर वापस न आने पर अधिकारियों ने मौन साध रखा है लेकिन यह एक बड़े घोटाले को लेकर इशारा कर रहा है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने स्मार्ट मीटरों के विभाग को न मिलने और मीटर रीडिंग के गायब होने को लेकर बताया कि उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार लगभग 06 लाख स्मार्ट मीटर अभी तक वापस नहीं किए गए हैं। कितने लाख मीटर में पुरानी रीडिंग शून्य की गई है या नष्ट की गई है,यह एक बड़ी जांच का विषय है। स्मार्ट प्रीपेड मीटर घोटाले के चलते विद्युत वितरण निगमों का 115000 करोड़ रुपए का एरियर खटाई में पड़ सकता है ।
संघर्ष समिति ने यह भी आरोप लगाया है कि निजीकरण के लिए स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने के नाम पर बड़े पैमाने पर डाउन साइजिंग की जा रही है। पकड़ा गया स्मार्ट प्रीपेड मीटर घोटाला निजी कंपनियों और दोषी उपभोक्ताओं की मिलीभगत के साथ किसी बड़ी साजिश का हिस्सा भी हो सकता है।
स्मार्ट मीटर लगाने वाली कंपनियों की पुराने मीटर की रीडिंग शून्य करने या नष्ट करने के समाचार बहुत खतरनाक संदेश दे रहे हैं जिसे समय रहते न रोका गया तो बिजली राजस्व का बकाया वसूलना नामुमकिन हो जाएगा। इस घोटाले में बिजली विभाग के एक लाख 15 हजार करोड़ रुपए फंस सकते हैं।
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