सीतापुर : श्री हरि विष्णु ने यहीं दुर्जय नाम के राक्षस का किया था वध

सीतापुर। 88000 की पावन तपोभूमि नैमिषारण्य धाम की मान्यता पृथ्वी के मध्य बिंदु के रूप में भी है। श्रीमद् भागवत महाभारत, महाभारत पुराण, देवी भागवत पुराण आदि पुराणों में प्राप्त आख्यानों के आधार पर भगवान ब्रह्मदेव द्वारा प्रदत्त ब्रह्म मनोमय चक्र नैमिषारण्य में ही प्राप्त होना बताया जाता है। मान्यता ये भी है कि भगवान श्रीहरि विष्णु ने इसी भूमि में दुर्जय नाम के राक्षस का वध निमिष मात्र समय में अपने सुदर्शन चक्र से किया था जिसके कारण भी ये पुण्य भूमि नैमिषारण्य के नाम से जानी जाती है। आज दैनिक भास्कर अपनी विशेष सीरीज ‘तीरथवर के राम’ के चौथे भाग के माध्यम से अपने पाठकों को भगवान श्रीराम और सतयुग के प्रमुख धर्मस्थल नैमिषारण्य तीर्थ के अनकहे सनातन सम्बन्ध के बारे में परिचित कराएगा

राजगद्दी पर आसीन होने के बाद नैमिषारण्य आये थे प्रभु श्रीराम
महर्षि वाल्मीकि की कृति रामायण में वर्णन आता है कि जब प्रभु श्री राम 14 वर्ष वनवास की अवधि पूरी करने के बाद गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से राज्याभिषेक के बाद राजपाट संभालते है। इसके बाद कुशलता से राज्य का संचालन करते हुए प्रभु श्री राम अपने गुरुदेव के निर्देश पर अवध क्षेत्र में ही स्थित तीरथपर नैमिषारण्य में राजकाज देखने आए थे। उसे दौरान प्रभु श्रीराम ने तीर्थ में साधनारत ऋषियों मुनियों की वंदना कर अवध क्षेत्र सहित संपूर्ण भारतवर्ष के कल्याण का आशीर्वाद प्राप्त किया था।

भगवान लक्ष्मण भी आये है नैमिषारण्य तीर्थ
भगवान श्री राम जी को जब गुरु वशिष्ठ ने नैमिषारण्य तीर्थ में 10 अश्वमेध यज्ञ करने का निर्देश दिया है। तब भगवान श्रीराम ने सबसे पहले लक्ष्मण जी को नैमिषारण्य भूमि जाकर यज्ञ के लिए उपयुक्त स्थान चिन्हित करने की बात कही है। मान्यता है कि भगवान लक्ष्मण ने धेनुगंगा के रूप में प्रतिष्ठित मां गोमती के पावन तट पर स्थित एक घाट का चयन किया है, जो गोमती से उत्तर की दिशा में स्थित था।

10 अश्वमेघ यज्ञ का साक्षी है दशाश्वमेघ घाट
स्कंद पुराण व रामायण के अनुसार लक्ष्मण जी ने नैमिषारण्य तीर्थ अंतर्गत गोमती नदी की उत्तर दिशा में स्थित जिस स्थल का अश्वमेध यज्ञ के लिए चयन किया था। उस स्थल पर भगवान श्री राम ने अपने कुलगुरु वशिष्ठ ऋषि के निर्देशन में तीर्थ के वरिष्ठ ऋषि मुनियों के सानिध्य में 10 अश्वमेध यज्ञ किए हैं भगवान श्रीराम द्वारा इस स्थल पर 10 अश्वमेध यज्ञ किए जाने के कारण गोमती नदी के इस घाट को दशाश्वमेघ घाट के नाम से भी जाना जाता है।

अश्वमेध यज्ञ में सीता जी के न होने पर स्वर्ण प्रतिमा के साथ भगवान श्री राम ने की थी पूजा अर्चना
रामायण में वर्णन है कि जब तीर्थ में भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ का संकल्प लिया तो उस समय देवी सीता का भगवान श्री राम ने त्याग किया हुआ था। जिसके चलते ऋषियों-विशेषज्ञों के शास्त्रोक्त मत अनुसार भगवान श्रीराम ने सीता जी की स्वर्ण निर्मित मूर्ति को अपने साथ सीता के रूप में आसन पर बिठाकर पूजन कर अश्वमेध यज्ञ पूर्ण किया था। दशाश्वमेघ घाट पर आज भी राम दरबार स्मृति के रूप में मौजूद है वही भगवान राम द्वारा पूजित सिद्धेश्वर महादेव भी भक्तों की मनोकामना पूरी करते है।

55 ग्राम दान कर श्रीराम ने की थी सीतापुर की स्थापना
मान्यता है कि अश्वमेध यज्ञ के उपरांत भगवान श्री राम ने तीरथवासी ऋषियों-ब्राह्मणों को भरपूर धन-संपदा सहित 55 गांव देवी सीता की स्मृति में दान किए थे। भगवान श्री राम द्वारा दान किए गए इन्हीं गांव का समूह सीतापुर के नाम से विख्यात हुआ। कहते हैं कि दशाश्वमेघ यज्ञ के दौरान सुबह, दोपहर, शाम, रात हर समय दान का क्रम जारी रहता था। इस दौरान कोई भी याचक-ब्राह्मण खाली हाथ नहीं लौटता था।

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