सीतापुर। नैमिषारण्य तपोभूमि की महिमा बहुत ही प्राचीन और विस्तृत है। हमारी सनातन परंपरा में 9 अरण्यों का वर्णन प्राप्त होता है और इन 9 पुण्यदायी अरण्यों में नैमिषारण्य तीर्थ को प्रधानता प्राप्त है। मान्यता है कि नैमिषारण्य तीर्थ में भगवान ब्रह्मा, श्रीहरि विष्णु और शिवजी सहित समस्त 33 कोटि देव और तीर्थों का आश्रय और आशीर्वाद प्राप्त है। यहां पर स्वयं भगवान विष्णु पेड़ों के रूप में नित्य निवास करते हैं तो आखिरकार भगवान विष्णु जी के स्वरूप प्रभु श्री राम को नैमिषारण्य तीर्थ से इतना अधिक प्रेम क्यों न हों। आज दैनिक भास्कर अपनी विशेष सीरीज ‘तीरथवर के राम’ के तीसरे भाग के माध्यम से अपने पाठकों को भगवान श्रीराम और सतयुग के प्रमुख धर्मस्थल नैमिषारण्य तीर्थ के अनकहे सनातन सम्बन्ध के बारे में परिचित कराएगा। रामायण में है भगवान राम और नैमिषारण्य तीर्थ के पुनीत संबंध का अद्भुद प्रसंग
महर्षि वाल्मीकि ने अपनी अनुपम कृति रामायण में नैमिषारण्य भूमि को विशेषता से वर्णित किया है। रामायण के उत्तरकांड में महर्षि वाल्मीकि ने भगवान राम के नाम नैमिषारण्य आने की घटना का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया हैं। महर्षि वाल्मीकि कहते हैं कि भगवान श्री राम को पता था कि नैमिषारण्य की भूमि पर किया गया यज्ञ सबसे उत्तम फल प्रदान करने वाला है। भगवान राम के निर्देश पर ही नैमिषारण्य तीर्थ में विशेषज्ञ आचार्यों द्वारा पवित्र यज्ञ कुंड का निर्माण कराया गया था। उस समय आयोजित इस यज्ञ में तत्कालीन समय के सैकड़ो धर्मवेत्ता और यज्ञाचार्यों ने भाग लिया था।
आनंद रामायण में है भगवान श्रीराम की तीर्थ यात्रा प्रसंग का वर्णन आनंद रामायण में भगवान श्रीराम के तीर्थ यात्रा प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा गया है कि भगवान श्री राम का नैमिषारण्य तपोवन में आगमन हुआ है।
यहां उन्होंने आदिगंगा के रूप में प्रसिद्ध गोमती नदी में स्नान किया है साथ ही बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ महर्षि सूत जी का दर्शन किया है और शौनकादि ऋषियों की पूजा कर सभी का आशीष प्राप्त किया है।
विद्या अध्ययन के बाद प्रभु श्रीराम आए हैं नैमिषारण्य भगवान श्री राम के नैमिषारण्य आने का वर्णन योग वशिष्ठ में भी प्राप्त होता है। योग वशिष्ठ के अनुसार भगवान श्रीराम विद्या अध्ययन के बाद अपने पिता दशरथ से अनुमति लेकर पहली बार नैमिषारण्य तीर्थ आए हैं और यहां पर उन्होंने ऋषियों-संतों का दर्शन कर उनसे धर्मचर्चा की है और जीवन की सार्थकता का उपदेश प्राप्त किया है।
पद्म पुराण में है वर्णन
पद्म पुराण में वर्णन आता है कि स्वायम्भू मनु-सतरूपा ने आदि गंगा गोमती के पवित्र तट पर पुत्र प्राप्ति के लिए श्रीहरि विष्णु की कठिन तपस्या की है। मनु शतरूपा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्री हरि ने उनको अपने दिव्य स्वरूप के दर्शन दिए है और इच्छित वरदान देकर कृतार्थ किया है।
त्रेतायुग के तीर्थ के रूप में भी प्रसिद्ध है नैमिषारण्य
महाभारत पुराण में वर्णित श्लोक के अनुसार त्रेतायुग में नैमिषारण्य तीर्थ की महत्ता बताई गई है , वही कलियुग में माँ गंगा के आश्रय की विशेष महिमा कही गई है। त्रेतायुग में नैमिषारण्य तीर्थ का महत्व , भगवान श्री राम का नैमिषारण्य आगमन और 10 अश्वमेध यज्ञ का वर्णन इस तथ्य की पुष्टि करता है।