Sitapur : चमखर मेले में आस्था के नाम पर घंटों की यातना

  • नेशनल हाईवे पर ‘जाम’ की काली छाया: आस्था का पर्व बना मुसीबत का सबब
  • ​पुलिस और व्यवस्थापकों की नाकामी: क्यों हर साल बेहाल होते हैं श्रद्धालु?

Sitapur : महोली के निकट चमखर में स्थित सती जय देवी का प्राचीन और प्रसिद्ध मेला इस वर्ष फिर एक बार अव्यवस्था, अराजकता और ट्रैफिक जाम की भयावह तस्वीरों के साथ सुर्खियों में आ गया है। हर साल की तरह, इस बार भी प्रशासन की तरफ से सुरक्षा और यातायात व्यवस्था को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों की पोल खोलती नजर आई।

मेले के दौरान, महोली के नेशनल हाईवे पर वाहनों की लंबी कतारें लगी रहीं, जिसके कारण आम जनता को घंटों तक यातनापूर्ण जाम का सामना करना पड़ा। हाईवे का यह महत्वपूर्ण खंड पूरी तरह से ठप पड़ गया, जिससे न केवल चमखर आने-जाने वाले श्रद्धालु, बल्कि सामान्य यात्री और आसपास के नागरिक भी बुरी तरह प्रभावित हुए।

पुलिस की ‘खामखा’ ड्यूटी और व्यवस्था का अभाव

चमखर मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। इसके बावजूद, पुलिस प्रशासन और स्थानीय मेला व्यवस्थापकों ने इस विशाल जनसैलाब को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस और प्रभावी योजना लागू नहीं की। ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी महज औपचारिकताओं में उलझे रहे, जबकि वाहन चालकों और पैदल यात्रियों के बीच सामंजस्य बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

यातायात प्रबंधन की यह विफलता तब और भी चिंताजनक हो जाती है जब यह मेला सीधे नेशनल हाईवे पर लगता है। वाहनों की बेतरतीब पार्किंग, अस्थाई दुकानों का सड़क तक अतिक्रमण और मेले परिसर में अनियंत्रित भीड़ ने मिलकर जाम की ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि कई किलोमीटर तक लोगों को रेंगना पड़ा। एंबुलेंस या आपातकालीन सेवाओं के वाहनों के लिए भी रास्ता बना पाना लगभग असंभव हो गया था।

सुविधा शून्य, असुविधा भरपूर

स्थानीय निवासियों और दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं ने प्रशासन की इस लापरवाही पर गहरा रोष व्यक्त किया। उनका कहना है कि यह मेला दशकों पुराना है, इसके बावजूद हर वर्ष यही दृश्य दोहराया जाता है। बुनियादी सुविधाओं जैसे पेयजल, शौचालय और विशेषकर भीड़ नियंत्रण के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए जाते। आस्था के इस पर्व को सुव्यवस्थित और सुरक्षित बनाने के लिए प्रशासन को हर साल के अनुभवों से सबक लेना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि व्यवस्थापकों ने लोगों की परेशानी को अपनी नियति मान लिया है। इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए केवल खानापूर्ति नहीं, बल्कि सख्त योजना और प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

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