​Sitapur : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्ष की यात्रा

  • उपेक्षा, उपहास और विरोध से निकलकर आगे बढ़ा संघ – स्वान्त रंजन

Sitapur : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा है कि संघ ने ‘संगठन गढ़े चलो- सुपंथ पर बढ़े चलो, भला हो जिसमें देश का वह काम सब किए चलो’ की पंक्ति को मंत्र मानकर अपनी 100 वर्ष की यात्रा पूरी की है और आज विश्व के सामने एक उदाहरण के रूप में खड़ा है। उन्होंने यह बात संघ के 100 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में सीतापुर में शास्त्री नगर बस्ती द्वारा सिंघानिया पब्लिक स्कूल में विजयादशमी के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में कही।
​स्वान्त रंजन ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि किसी भी उद्देश्य को लेकर शुरू किए गए संगठन के लिए 100 वर्ष पूर्ण करना बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने बताया कि संघ की लंबी यात्रा के दौरान कई कठिनाइयाँ और उतार-चढ़ाव आए। कुछ लोगों ने संघ के कार्य को समाप्त करने का प्रयास भी किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। संघ अपने मूल विचारों के प्रति अटल रहा और हिंदू समाज के लिए कार्य करने के अपने रास्ते से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने जोर दिया कि संगठन के भीतर मतभेद होना सामान्य है, लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं ने कभी भी अलग संगठन बनाने के बारे में नहीं सोचा।
​श्री राम की तरह चुनौतियों को स्वीकार किया

प्रचारक प्रमुख ने भगवान श्री राम का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह राम ने संकटों का सामना करते हुए और सत्य, संकल्प तथा सिद्धि के बल पर रावण के कुल का विनाश किया, उसी प्रकार संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार भी सत्य और संकल्प के धनी थे, जिन्होंने दृढ़ संकल्प से संघ की स्थापना की।

​तीन चरणों में बढ़ा संघ का कार्य

​स्वान्त रंजन ने संघ के शुरुआती दिनों को याद करते हुए बताया कि संघ कार्य की प्रगति तीन चरणों में हुई।

​उपेक्षा और उपहास (1925 के आसपास)- शुरुआत में डॉ. हेडगेवार के हिंदू समाज को एकजुट करने के कार्य को देखकर लोग उन्हें ‘पागल’ कहते थे और उपहास उड़ाते हुए कहते थे कि हिंदू समाज को एकत्र करना ‘जिंदा मेंढक तौलने के समान’ है। लेकिन हेडगेवार ने इसे संभव कर दिखाया।

​विरोध और साजिश- इसके बाद कुछ विरोधियों ने संघ को समाप्त करने की साजिशें रचीं, लेकिन उनके प्रयास विफल रहे, और संघ समाज के बीच और भी अधिक मजबूती के साथ खड़ा हुआ।

​तीन बार प्रतिबंध- उन्होंने बताया कि संघ की 100 वर्ष की यात्रा में तीन बार प्रतिबंध लगे।
​1948 में महात्मा गांधी की हत्या के झूठे आरोप के बाद, जिसे स्वयंसेवकों के सत्याग्रह के बाद 12 जुलाई 1949 को बिना शर्त हटाना पड़ा।

​1975 में आपातकाल (Emergency) के दौरान, जिसका स्वयंसेवकों ने लोकतांत्रिक तरीके से विरोध किया और प्रतिबंध हटा। 1993 में अयोध्या में बाबरी ढांचा गिरने के बाद, जिसे भी राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के संकल्प बल पर हटाया जा सका।

​हिंदू समाज बच्चों को केवल पैसा बनाने की मशीन न बनाए

स्वान्त रंजन ने सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि हिंदू समाज को सामाजिक समरसता, पर्यावरण सुरक्षा, कुटुंब प्रबोधन, स्व का बोध, और नागरिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना चाहिए। उन्होंने माता-पिता से आवाहन किया कि वे बच्चों को केवल ‘रुपया पैदा करने की मशीन’ न बनाएं, बल्कि उन्हें संस्कारित करें और हिंदू संस्कार सिखाएँ।

उन्होंने बताया कि संघ अपने इस शताब्दी वर्ष में इन्हीं ‘पंच परिवर्तनों’ को लेकर समाज को जागरूक कर रहा है। उन्होंने कहा कि अब विश्व भर के लोगों को संघ की पहचान हो गई है और समाज मजबूती से संघ के साथ खड़ा है। उन्होंने स्वयंसेवकों से अपील की कि शताब्दी वर्ष में उन लोगों तक भी पहुँचना जरूरी है जो आज भी संघ का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संघ कार्य की गति बढ़ाना हम सबकी जिम्मेदारी है। कार्यक्रम के समापन पर शास्त्री नगर बस्ती में स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में पथ संचलन निकाला, जिसका बस्तीवासियों ने पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। कार्यक्रम में विभाग संघचालक डॉ. हरिपाल, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेखा वर्मा (भाजपा), जिला अध्यक्ष राजेश शुक्ला सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

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