
- कोर्ट ने विवेचक, पर्यवेक्षक और पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई के दिए आदेश
Siddharthnagar : विशेष अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट) बीरेंद्र कुमार की अदालत ने एक बहुचर्चित मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए अभियुक्त गोलू पुत्र नूर मोहम्मद को अवयस्क से छेड़खानी एवं पॉक्सो एक्ट के अपराध में दोषी ठहराते हुए चार वर्ष का कठोर कारावास और 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। हालांकि, सामूहिक दुष्कर्म के प्रयास, आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण और जान से मारने की धमकी जैसे गंभीर आरोपों में साक्ष्य के अभाव में कोर्ट ने उसे बरी कर दिया है।
इसके साथ ही न्यायालय ने मामले की विवेचना में गंभीर लापरवाही बरतने के आरोप में विवेचक और पर्यवेक्षक अधिकारी को दोषी मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई के आदेश पुलिस अधीक्षक, सिद्धार्थनगर को भेजे हैं। वहीं, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के आचरण को भी संदिग्ध मानते हुए उनके विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई के निर्देश जिलाधिकारी को दिए गए हैं।
घटना थाना कोतवाली जोगिया क्षेत्र के एक गांव की है, जो 11 जुलाई 2022 की शाम की है। अभियोजन के अनुसार, 14 वर्षीय छात्रा के पिता ने तहरीर में आरोप लगाया था कि गांव के कुछ युवक स्कूल आते-जाते समय उसकी बेटी से छेड़खानी करते और धमकाते थे। घटना के दिन जब पीड़िता अपने भाई के साथ जोगिया उदयपुर बाजार की ओर जा रही थी, तभी चार युवकों ने उसे दबोचकर कथित तौर पर दुष्कर्म का प्रयास किया। शोर सुनकर भाई और आसपास के लोग पहुंचे, तो आरोपी भाग निकले। इसके बाद पीड़िता घर आकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
मामले में सुहेल, फैयाज, साहुल और गोलू के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी, लेकिन विवेचना के बाद केवल गोलू के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया गया।
साक्ष्यों, गवाहों की गवाही, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, उम्र प्रमाण पत्र, सीडीआर एवं अन्य दस्तावेजों के आधार पर न्यायालय ने अभियुक्त गोलू को केवल छेड़खानी और पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी पाया। कोर्ट ने माना कि गंभीर धाराओं में पुख्ता साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए जा सके।
न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि विवेचक ने पूर्वाग्रह और लापरवाही के साथ विवेचना की, तथा पर्यवेक्षण अधिकारी ने भी अपना दायित्व सही ढंग से नहीं निभाया। इस कारण मामले की सच्चाई सामने आने में बाधा उत्पन्न हुई।
पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर संजय कुमार भारती द्वारा पहले मृत्यु का कारण “चोट के कारण दम घुटना” लिखा गया, बाद में इसे “फांसी से दम घुटना” बताने पर भी कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई। जिरह के दौरान उनके बयानों में विरोधाभास पाया गया, जिसे न्यायालय ने कर्तव्य में लापरवाही और संदिग्ध आचरण माना।
पीड़ित पक्ष की पैरवी विशेष लोक अभियोजक पवन कुमार कर पाठक ने की।
यह फैसला न केवल एक आपराधिक मामले का निस्तारण है, बल्कि यह जांच प्रक्रिया और चिकित्सकीय जिम्मेदारियों पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिनके जवाब अब संबंधित विभागों को देने होंगे।










