संतों की हत्या पर शिवसेना की किरकिरी

उद्ववसरकार के ढुलमुल रवैयें को लेकर देशवासियों में गुस्सा
-लाकडाउन खत्म होने के बाद देश के साधूसंतों का मुबई में होगा जमावड़ा
-पालघर में अपराधियों के सामने समर्पण की मुद्रा में दिखी पुलिस
-साधुओं की हत्या पर चुप्पी साधें है तथाकथित धर्मनिर्पेक्ष बुद्विजीवी

योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। महाराष्टï्र में इस समय शिवसेना के नेतृत्ववाली कांग्रेस और राष्टï्रवादी कांग्रेस गठबंधन की सरकार है। सरकार का नेतृत्व शिवसेना प्रमुख उद्वव ठाकरें कर रहे है। शिवसेना की छवि भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा कट्टïरहिन्दू छवि वाली पार्टी के रूप में की जानी जाती थी। मुख्यमंत्री बनने की गरज से उन्होंने शिवसेना की सारी नीतियों सिद्यांतों को तिलांजलि दे दी। उसी का नतीजा है जिस महाराष्टï्र की पहचान एक हिन्दू राज्य के रूप में जानी जाती थी वहां पिछले दिनों मुंबई से सौ किलोमीटर दूर पालघर में दो साधुओं की पीट-पीट कर निर्मम हत्या कर दी गयी। इनमें से एक साधू प्रदेश के सुल्तानपुर जनपद से था।

यह तब हुआ जब वहां उस शिवसेना के नेतृत्व की सरकार है जिसका जन्म ही हिन्दुत्व के व्यापाक प्रचार के लिए हुआ था। आज वहां भले शिवसेना नेतृत्ववाली सरकार हो लेकिन शिवसेना के एजेंडे को बालठाकरें के भतीजे और मनसे के प्रमुख राजठाकरे पूरा करने में लगे है। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि पालघर में जिन दो साधुओं की हत्या हुई उसकों लेकर देश के तथाकथित धर्मनिर्पेक्षता का लबादा ओढ़े फिल्म और राजनीतिक दलों के नामीगिरामी चेहरे खामोश है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले और मौजूदा कार्यकाल को लेकर देश में असहिष्णुता का माहौल होने का उलाहना देकर हंंगामा बरपाने वाले तथाकथित धर्मनिर्पेक्ष ताकतों की जुबान को इस समय मानो लकवा मार गया हैे।

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर पालघर की घटना को लेकर जो दो पंक्तियां चर्चा में आई कि चूडिय़ा सस्ती करदो बाजार में,हिजड़ेें आ गए है महाराष्टï्र की सरकार में,। निश्चित रूप से इनपंक्तियों को किसी भी दशा में सभ्यसमाज में जायज नहीं ठहराया जा सकता है बावजूद इसके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चलते जब दो साधुओं की निर्मम हत्या हो जाए तो मन की भावना को इसी तरह व्यक्त किया जाना कोई अपराध भी नहीं माना जा सकता है। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में जब अखिलेश यादव की सरकार थी तब दादरी में गोमांस रखने के आरोप में एक हत्या हो जाती है तो कोहराम पूरे देश मे मच जाता है।

लेकिन आज जब दो साधुओं की हत्या हुई तो किसी के मुंह से निंदा के दो शब्द भी नहीं फूट रहे। जब भी देश में एक वर्ग विशेष द्वारा किए जाने वाले दंगें और उपद्रवों पर पुलिस सख्त होती है तो देश की कुछ तथाकथित धर्मनिपेक्ष ताकते अवार्ड वापसी से लेकर लखनऊ से दिल्ली तक की सड़कों पर हांथो में मोमबत्तियां लेकर निकल पड़ते है।

फिल्मअभिनेता आमिर खान की पत्नी ने तो २०१९ के लोकसभा चुनाव से पहले इनट्रालेंस की बातकहकर डर लगने के साथ ही भारत छोडऩे तक की बात कही थी। लेकिन इस मुद्दे पर वह भी खामोश है। महाराष्टï्र की मौजूदा घटना पर शायर और संवाद लेखक जावेद अख्तर हो या आमिर खां की पत्नी किरणराव या फिर फिल्म निर्माता निर्देशक महेशभट्टï,नसीरूद्दीन शाह, या फिर लेखिका अरूध्ंांतिराय, तीस्ता सीतलवाड  ने चुप्पी साधे हुए है। इन सबके अलावा बड़ी संख्या में कांग्रेस सहित कुछ अन्य छुटभैय्ये और चिल्लर पार्टिया जो एक वर्ग विशेष के समर्थन में राज्यों की विधानसभाओ से लेकर संसद के दोनो सदनो में हंगामा काटकर अपने को नंबरवन का सेकुलर साबित करने में  लग जाती है। वे भी इस समय साइलेंटमोड में है।

हालांकि महाराष्टï्र में दो साधुओं की हत्या पर हालांकि वहां की सरकार ने डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है लेकिन वहां की मुख्यविपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी संतुष्टï नहीं है। उसका कहना है कि वहां जब दो साधुओं को बुरी तरह पीटा जा रहा था तो वहां की पुलिस आरोपियों के आगे समर्पण की मुद्रा में थी यह पहली बार हुआ है जब अपराधियों के सामने पुलिस इतनी लाचार दिखी।

राजनीतिक जानकारों की माने तो जिस तरह महाराष्टï्र में तब्लीगी जमातियों पर कार्रवाई करने से परहेज किया उसी का परिणाम रहा कि वहां बड़ी संख्या में कोराना से मौते हुई। उसके पीछे बड़ी वजह यह रही कि जमातियों और लाकडाउन तोडऩे वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में वहां सरकार में शामिल कांग्रेस और राष्टï्रवादी कांग्रेस जैसी पार्टियां है।

जिनकी पहचान शुरू से ही एक वर्ग विश्ेाष को संतुष्टï करने वाली पार्टियों में रही है। कमोबेश यही स्थिति पालघर की घटना को लेकर रही। वहां जिस तरह पुलिस समर्पण की मुद्रा में दिखी है उससे साफ है कि वहां पुलिस को कार्रवाई करने की छूट नहीं थी।  

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