गंगा नदी सदा से आस्था व पवित्रता का दिव्य स्थली है। गंगा स्नान श्रद्धालुओं के लिये अपूर्व आकर्षण का केंद्र रहता है। कुम्भ मेले के दौरान प्रयागराज के संगम जहां तीन नदियों का मिलन माना जाता है, उसमें एक छोटे से स्थान पर एक ही समय अंतराल में या मुहूर्त में लाखों लोग स्नान करते हैं। ऐसे में जल का अति प्रदूषित हो जाना प्राकृतिक है।
विख्यात वैज्ञानिक डॉ.अजय ने बताया कि जब उन्होंने गंगा जल का प्रयोगशाला में परीक्षण किया तो पाया कि माइकोबैक्टीरियम, स्ट्रेप्टोकोकस, स्यूडोमोनास जैसे तमाम रोगाणुओं की तादाद उस दौरान गंगा के जल में अपने चरम पर पहुँच जाती है। ठीक उसी समय बैक्टेरिओफेज नामक वाइरस जल में उसी अनुपात में उत्पन्न होता है और उन रोगाणुओं को नष्ट कर देता है। उन जीवाणुओं के नष्ट होते ही बैक्टेरिओफेज भी विलुप्त हो जाता है। ये बैक्टेरिओफेज सामान्यतः समुद्र में पाये जाते हैं किन्तु मीठे जल के श्रोतों में सिर्फ़ गंगा नदी में प्रमुख रूप से पाये जाते हैं। इसलिये ऐसा देखा जाता है कि गंगा जल बोतलों में भर कर ले जाते हैं वो कई बार मटमैले दिखते हैं पर उनमें बैक्टीरिया नहीं पनपते, सालों बाद भी उस जल से दुर्गंध नहीं आती।
वैज्ञानिक डॉ. अजय ने बताया कि गंगा नदी में बैक्टीरियोफेज नदी के स्व-सफाई गुणों में भूमिका निभाते हैं। गंगा में अन्य नदियों की तुलना में बैक्टीरियोफेज की संख्या सबसे अधिक है, जिसके नमूनों में लगभग 1,100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं।