Satya Pal Malik Death : विधायक से राज्यपाल तक…राजनीति में ऐसा रहा सत्यपाल मलिक का सफर

एक ऐसा चेहरा जो अब कभी नजर नहीं आएगा… और वो आवाज, जो अब हमेशा के लिए खामोश हो गई। पीछे रह गईं सिर्फ यादें — वो यादें जो राजनीति के चटपटे किस्सों, संघर्षों, महत्वाकांक्षाओं और विवादों से भरी हुई हैं। हम बात कर रहे हैं सत्यपाल मलिक की, एक ऐसे नेता की जिन्होंने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। 5 अगस्त 2025 को 79 वर्ष की उम्र में सत्यपाल मलिक का दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। अपने लंबे राजनीतिक सफर में उन्होंने जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय जैसे संवेदनशील और अहम राज्यों के राज्यपाल के रूप में सेवाएं दीं।

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र तक पहुंचे सत्यपाल मलिक ने कई राजनीतिक दलों का हिस्सा बनते हुए सत्ता और विरोध दोनों पक्षों का अनुभव किया। वे अपने बेबाक बयानों और स्पष्ट विचारों के कारण हमेशा सुर्खियों में रहे। उनका जीवन एक ऐसा सफर रहा, जिसमें प्रेरणा भी थी और विवाद भी।

आइए, जानते हैं उस नेता की पूरी कहानी जिसने देश की सियासत को कई बार सोचने पर मजबूर कर दिया।

व्यक्तिगत जीवन

सत्यपाल मलिक का जन्म जुलाई 1946 में उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावादा गांव में एक किसान परिवार में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मेरठ यूनिवर्सिटी (अब चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी) में हुई, जहां उन्होंने बीएससी की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान ही वे छात्र राजनीति की ओर आकर्षित हुए। 1965-66 में समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया की विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने मेरठ कॉलेज स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष का चुनाव लड़ा और जीता। इसके बाद वे मेरठ यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष बने, जिसने उनके नेतृत्व की नींव को और मजबूत किया।

राजनीतिक सफर

सत्यपाल मलिक का राजनीतिक करियर रंगीन और परिवर्तनशील रहा। उन्होंने अपने करियर में कई दलों के साथ काम किया और हर बार अपनी छाप छोड़ी।

1. भारतीय क्रांति दल और लोकदल

1970 के दशक में मलिक ने चौधरी चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) के साथ अपनी सियासी पारी शुरू की। 1974 में बागपत से विधानसभा चुनाव जीतकर वे पहली बार विधायक बने और पार्टी के मुख्य व्हिप नियुक्त हुए। 1975 में बीकेडी के लोकदल में विलय के बाद उन्हें लोकदल का अखिल भारतीय महासचिव बनाया गया। 1980 में लोकदल ने उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया, जिससे उनका राष्ट्रीय कद बढ़ा।

2. कांग्रेस का साथ

1984 में मलिक ने कांग्रेस का दामन थामा और 1986 में कांग्रेस के टिकट पर दोबारा राज्यसभा पहुंचे। इस दौरान वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के महासचिव रहे। हालांकि, 1987 में बोफोर्स घोटाले के बाद उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया।

3. जन मोर्चा और जनता दल

कांग्रेस छोड़ने के बाद मलिक ने अपनी पार्टी जन मोर्चा की स्थापना की, जिसे 1988 में जनता दल में विलय कर दिया गया। जनता दल में वे सचिव और प्रवक्ता बने। 1989 में उन्होंने अलीगढ़ से जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इस दौरान उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ मिलकर कांग्रेस के खिलाफ देशव्यापी अभियान चलाया।

4. बीजेपी के साथ नई पारी

2004 में मलिक बीजेपी में शामिल हुए। हालांकि, बागपत से लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन पार्टी में उनकी भूमिका बढ़ती गई। 2005-06 में वे उत्तर प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष बने, 2009 में बीजेपी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रमुख नियुक्त हुए, और 2012 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। 2014 में उन्होंने बीजेपी की घोषणापत्र समिति में कृषि मुद्दों पर उप-समिति की अध्यक्षता की।

5. राज्यपाल के रूप में कार्यकाल

2017 में बीजेपी ने मलिक को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया। अगस्त 2018 में उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया, जो उनके करियर का सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण दौर था। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दौरान उन्होंने कानून-व्यवस्था को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद वे गोवा (2019) और मेघालय (2020-2022) के राज्यपाल रहे।

विवादों से भरा रहा जीवन

सत्यपाल मलिक अपने बयानों और आरोपों के कारण हमेशा चर्चा में रहे। उनके कुछ बयानों ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई, बल्कि उन्हें विवादों के केंद्र में भी ला दिया।

1. किसान आंदोलन पर बयान

2022 में मेघालय के राज्यपाल रहते हुए मलिक ने किसान आंदोलन को लेकर एक विवादित बयान दिया। उन्होंने कहा, “दिल्ली की सीमाओं पर 700 किसान मर गए… कुत्ता भी मरता है तो दर्द होता है, लेकिन किसानों के लिए एक चिट्ठी तक नहीं आई।” इस बयान की विपक्ष ने कड़ी आलोचना की और इसे संवेदनाहीन करार दिया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले मलिक का यह बयान इसलिए भी चर्चा में रहा, क्योंकि किसान आंदोलन में इस क्षेत्र के किसानों की बड़ी भागीदारी थी।

2. पुलवामा हमले पर आरोप

मलिक ने 2019 के पुलवामा हमले को लेकर केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि हमला केंद्र की अनदेखी के कारण हुआ और बीजेपी ने इसका चुनावी फायदा उठाया। द वायर को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि जब उन्होंने पीएम मोदी से इस चूक की बात की, तो उन्हें चुप रहने को कहा गया।

3. रिश्वत के ऑफर का खुलासा

17 अक्टूबर 2021 को राजस्थान के झुंझुनू में एक कार्यक्रम में मलिक ने खुलासा किया कि जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहते हुए उन्हें दो फाइलों के साथ करोड़ों रुपये की रिश्वत ऑफर की गई थी। एक फाइल एक बड़े उद्योगपति की थी और दूसरी तत्कालीन गठबंधन सरकार के एक मंत्री की। मलिक ने इन ऑफर्स को ठुकरा दिया और दोनों डील रद्द कर दीं।

सत्यपाल मलिक की कहानी न केवल एक नेता की जीवटता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सियासत में साहस और विवाद एक साथ चल सकते हैं।

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