
प्रयागराज : बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए गए घरों के ध्वस्तकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज (6 मार्च) सुनवाई हुई। अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह की कार्रवाई न केवल गलत है, बल्कि यह एक गंभीर और चौंकाने वाला उदाहरण प्रस्तुत करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य नागरिकों के घरों को गिराने के मामले पर संज्ञान लिया। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस कार्रवाई को असंवैधानिक बताते हुए कड़ा ऐतराज जताया। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “क्या यह अनुच्छेद 21 की किसी भी तरह की रक्षा है?”
न्यायमूर्ति ओका ने कोर्ट के पहले के फैसले की ओर इशारा किया, जिसमें यह तय किया गया था कि किसी भी निर्माण को गिराने से पहले तय प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। कोर्ट ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि यदि राज्य ने इस तरीके से कार्यवाही की है तो वह अब पुनर्निर्माण का आदेश देगा। न्यायमूर्ति ओका ने राज्य को आदेश दिया कि वह अपने खर्चे पर ध्वस्त संरचनाओं का पुनर्निर्माण करे, क्योंकि यही एकमात्र उचित उपाय होगा।
याचिकाकर्ता, जिनमें वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद, दो विधवाएं और एक अन्य व्यक्ति शामिल थे, ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका आरोप था कि अधिकारियों ने उन्हें बिना उचित नोटिस दिए शनिवार रात को उनके घरों को गिराने का आदेश दिया और अगले दिन ही कार्रवाई कर दी, जिससे उन्हें इस पर आपत्ति जताने का मौका नहीं मिला। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि वे भूमि के वैध पट्टेदार थे और उनकी भूमि को फ्रीहोल्ड में बदलने के लिए उन्होंने आवेदन किया था।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य ने उनकी भूमि को गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद से जोड़ा, जिनकी 2023 में हत्या कर दी गई थी, जबकि यह आरोप गलत था।
इस मामले में राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने दावा किया कि याचिकाकर्ताओं को नोटिस का जवाब देने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था। हालांकि, न्यायमूर्ति ओका ने इस दावे पर सवाल उठाया और नोटिस भेजने के तरीके में विसंगतियां होने की बात कही।
अटॉर्नी जनरल ने मामले को उच्च न्यायालय में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे सीधे तौर पर और तुरंत सुनवाई की आवश्यकता है, और मामले को उच्च न्यायालय में ट्रांसफर नहीं किया जाएगा।