सपा में आज़म खां को लेकर घमासान : सांसद रुचिवीरा और पूर्व सांसद एसटी हसन आमने-सामने

लखनऊ/मुरादाबाद। समाजवादी पार्टी (सपा) में एक बार फिर से भीतरघात और गुटबाजी खुलकर सामने आ गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और सीतापुर जेल में बंद आज़म खां से जुड़ी बयानबाजी ने सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है। मुरादाबाद से सांसद रुचिवीरा और पूर्व सांसद डॉ. एसटी हसन अब आमने-सामने आ गए हैं।

विवाद की शुरुआत तब हुई जब आज़म खां की पत्नी तजीन फात्मा ने जेल में पति से मुलाकात के बाद कहा, “अब बस अल्लाह से उम्मीद है।” इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई और इसे आज़म खां की पार्टी से नाराजगी के संकेत के तौर पर देखा जाने लगा।

रुचिवीरा ने जताई आपत्ति, ‘एहसान फरामोश’ शब्द पर जताई नाराजगी

सपा सांसद रुचिवीरा ने तजीन फात्मा के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के लिए “एहसान फरामोश” जैसे शब्दों का उपयोग अनुचित है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मुलायम सिंह यादव और आज़म खां के बीच कभी कोई मनमुटाव नहीं रहा है और दोनों परिवारों के रिश्ते आज भी मजबूत हैं।

डॉ. एसटी हसन ने दी सफाई, ‘गलत मतलब निकाला गया’

पूर्व सांसद डॉ. एसटी हसन ने बयान पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने कभी जानबूझकर ऐसा कुछ नहीं कहा, जिसका राजनीतिक मतलब निकाला जाए। उन्होंने कहा कि आज़म खां उनके आदर्श नेता हैं, लेकिन पार्टी ने उनके लिए जो किया, उसे नकारा नहीं जाना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा, “पार्टी ने उनका साथ दिया है। हमें थैंकलेस नहीं होना चाहिए।” इसी “थैंकलेस” शब्द को लेकर बवाल खड़ा हो गया है, जिसे सोशल मीडिया पर खूब उछाला जा रहा है।

चंद्रशेखर आजाद से बढ़ती नजदीकियों की चर्चा

इसी बीच आज़म परिवार और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के बीच बढ़ती नजदीकियों ने सपा नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक मजबूत दलित-मुस्लिम गठजोड़ की नींव रखी जा रही है, जिससे सपा के पारंपरिक वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।

टिकट बंटवारे से उपजा विवाद बना जड़

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के दौरान रामपुर और मुरादाबाद सीट को लेकर सपा नेतृत्व और आज़म खां के बीच तनाव देखने को मिला था। आज़म खां ने रामपुर से अखिलेश यादव को लड़ाने और मुरादाबाद से रुचिवीरा को टिकट देने की सिफारिश की थी, जिसे ठुकरा दिया गया। इसके बाद रामपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर दिया था।

हालांकि, बाद में बैलेंस बनाने की कोशिश में अखिलेश यादव ने डॉ. एसटी हसन का टिकट काटकर रुचिवीरा को सिंबल थमा दिया था, लेकिन तब तक पार्टी में विभाजन की लकीरें साफ हो चुकी थीं।

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